लखनऊ - उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री मायावती भलीभान्ति जानती हैं कि वर्ष 2010 में होने वाले विधान सभा चुनाव के मैदान राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस से निपटना आसान नहीं होगा। यही कारण है कि अमेठी के वोटबैंक को बसपा की तरफ आकर्षित करने के लिए उन्होंने अमेठी को जिला घोषित कर दिया। सही मायने में अमेठी वालों के लिए यह काफी बड़ा उपहार है, लेकिन अमेठी का नाम बदलने के पीछे मायावती की मंशा क्या है? ये सिर्फ राजनीति है या फिर से पैसे की बर्बादी ?
ये सवाल उत्तर प्रदेश की जनता के सामने बहुत बड़े प्रश्नचिन्ह के साथ खड़े हुए हैं। एक तरफ मायावती ने अमेठीवासियों को उनके कसबे को जिले में परिवर्तित कर बड़ा उपहार दिया है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को मुंह चिढ़ाने के लिए उसका नाम बदलकर छत्रपति शाहू जी महाराज नगर रख दिया। नाम क्या रखा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन नाम बदलने में अब कितना पैसा खर्च होगा इसका अन्दाजा शायद जनता को नहीं होगा।
सरकारी विभाग के दस्तावेजों को बदलने में एक बार फिर करोड़ों रुपए खर्च होंगे। इन सभी में करोड़ों रुपए एक बार फिर खर्च होंगे। यही नहीं इस नए जिले को नए नाम के साथ राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में एक बार फिर नए सिरे से शुरुआत करनी होगी। अपने कार्यकाल में अब तक मूर्तियों व पार्कों पर ढाई हजार करोड़ रुपए बहा चुकी राज्य सरकार इस मद में 100.200 करोड़ रुपए और बहाएगी। हर स्कूल कॉलेज, सरकारी व गैर सरकारी इमारतों पर नया नाम रखा जाएगा। तहसील, कोर्ट आदि से लेकर हर जगह नाम बदले जाएंगे। सबसे बड़ी बात यह कि गत मार्च में सभी सरकारी विभागों के दस्तावेज की स्टेशनरी तैयार की जा चुकी हैए जिनमें सभी विभागों के आगे अमेठी लिखा है। अब एक बार फिर बड़ी कसरत के साथ इसके बदल कर छत्रपति शाहूजी महाराज नगर करना होगा।
Vikas Sharma
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