Categorized | समाज

उत्तम सन्तान प्राप्ति के लिए

Posted on 02 July 2010 by admin

किसी भी देश का भविष्य बालकों पर निर्भर करता है | जो दम्पति सुविचारी, सदाचारी एवं पवित्रात्मा हैं तथा शास्त्रोक्त नियमों के पालन में तत्पर हैं ऐसे दम्पति के घर में दिव्य आत्माएं जन्म लेती हैं | ऐसी सन्तानों में बचपन से ही सुसंस्कार, सदगुणों के प्रति आकर्षण एवं दिव्यता देखी जाती है |वर्त्तमान में देश के सामने बालकों में संस्कारों की कमी यह एक प्रमुख समस्या है, जिससे उबरने ले हेतु सन्तानप्राप्ति के इच्छुक दम्पति को ब्रह्मज्ञानी सन्तों-महापुरुषों के दर्शन-सत्संग का लाभ लेकर स्वयं सुविचारी, सदाचारी बनना चाहिए, साथ ही उत्तम सन्तानप्राप्ति के नियमों को भी जान लेना चाहिए|

वास्तव में पत्थर, पानी, खनिज देश की सच्ची सम्पत्ति नहीं हैं अपितु ॠषि-परम्परा के पवित्र संस्कारों से सम्पन्न तेजस्वी बालक ही देश की सच्ची सम्पत्ति हैं लेकिन मनुष्य धन-सम्पत्ति बढ़ाने में जितना ध्यान देता है उतना सन्तान पैदा करने में नहीं देता | यदि शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में गर्भाधान कर सन्तानप्राप्ति की जाय तो वह परिवार व देश का नाम रोशन करनेवाली सिद्ध होगी |

उत्त्म सन्तानप्राप्ति के लिए सर्वप्रथम पत-पत्नी का तन-मन स्वस्थ होना चाहिए | वर्ष में केवल एक ही बार सन्तानोत्पत्ति हेतु समागम करना हितकारी है |

हमारे पुराने आयुर्वेद ग्रन्थों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रन्थों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है।

यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहां माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
पांचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
पन्द्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपनी पुस्तक संस्कार विधि में स्पष्ट रूप से कर दी है। प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि पूर्णरूप से की है।´ दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।

-प्राचीन संस्कृत पुस्तक सर्वोदय में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
-यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अण्डकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।
-चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रियाए पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।


Vikas Sharma
bundelkhandlive.com
E-mail :editor@bundelkhandlive.com
Ph-09415060119

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

May 2024
M T W T F S S
« Sep    
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  
-->









 Type in