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उ0प्र0 नगर पालिका (सदस्यों, पार्षदों, सभापतियों और महापौरों का निर्वाचन) नियमावली 2010 के विरूद्ध आपत्तियां

Posted on 10 June 2010 by admin

विषय-उ0प्र0 सरकार द्वारा प्रकाशित अधिसूचना संख्या 418/9-1.10-1सा/10 दिनांक 11 मई 2010 द्वारा प्रस्तावित उ0प्र0 नगर पालिका (सदस्यों, पार्षदों, सभापतियों और महापौरों का निर्वाचन) नियमावली 2010 के विरूद्ध आपत्तियां।

महोदय,

उपरोक्त नियमावली को उ0प्र0 नगरपालिका अधिनियम की धारा 300 एवं महापालिका अधिनियम की उपधारा 2 के अन्र्तगत प्रकाशित कर आपत्तियां आमन्त्रित की गई हैं जिनके प्रकाशन होने के दिनांक से 30 दिन की समय सीमा के अन्दर अपनी आपत्तियां एवं सुझाव प्रस्तुत करना है। उपरोक्त सूचना प्रदेश के किसी भी प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित नही की गई है और न ही इस सम्बंध में कोई सूचना सरकार द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में ही दी गई है। जिस कारण 11 मई 2010 को कथित रूप से प्रकाशित अधिसूचना की जानकारी जन साधारण को नही हो पायी है और यह उपरोक्त विर्णत उ0प्र0 नगर निगम अधिनियम, 1959 (उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या-2 सन् 1959) की धारा 87 की उपधारा (1) और उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1916 उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या (2) सन् 1916 की धारा 296 की उपधारा (2) के खण्ड (क) और धारा 540 के साथ पठित उपधारा (2) के खण्ड (क) और धारा 300 के साथ पठित उपधारा (1) के अधीन शक्ति का प्रयोग  भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है अत: इस नियमावली को पुन: प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित कर पुन: 30 दिन का समय देकर आपत्तियां एवं सुझाव विधिक रूप से आमन्त्रित किया जाना आवश्यक है।

हम लोगों को भी इस अधिसूचना के प्रकाशन की जानकारी दिनांक 09.06.2010 के पहले नही हो सकी और जब उपरोक्त अधिसूचना की जानकारी कुछ पत्रकारों के माध्यम से प्राप्त हुई तब तक काफी विलम्ब हो चुका था। जिस कारण से नियमावली का विधिवत् अध्ययन कर सुचारू रूप से आपत्तियां एवं सुझाव देना सम्भव नही है, परन्तु फिर भी कुछ आपत्तियां एवं सुझाव आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। जो निम्नलिखित हैं-

1. यह कि उपरोक्त प्रस्तावित नियमावली के नियम-4 (2) में प्रस्तावित प्राविधान के अन्र्तगत नगर पालिकाओं के सदस्यों, पार्षदों, सभापति और महापौर के पदों के लिए निर्वाचन राजनैतिक पार्टियों के आधार पर नही लड़े जाने का प्राविधान किया गया है जो कि किसी भी दृष्टि से उचित नही है।

2. यह कि नगर पालिका अधिनियम 1916 एवं नगर निगम अधिनियम 1959 में राजनैतिक पार्टियों के आधार पर चुनाव लड़ने पर कोई प्रतिबंध लगाना अधिनियम के मूल मंशा के विरूद्ध एवं असंवैधानिक है।

3. यह कि यदि नगर पालिका एवं नगर निगमों के चुनाव में राजनैतिक पार्टियों के आधार पर चुनाव लड़नें में प्रतिबंध  लगाया जाता है तो इनमें स्थायित्व  नही आयेगा एवं निर्वाचित सदस्यगण निरंकुश होकर नगर पालिका एवं नगर निगमों के कार्य में अपने निजी स्वार्थवश नगर पालिका एवं नगर निगमों के विकास कार्यों में अवरोध उत्पन्न करेंगे।

4. यह कि राजनैतिक पार्टियों के आधार चुनाव लड़ने का प्राविधान प्रदेश में 50 वर्ष से अधिक समय से लगातार चला आ रहा है।

5. यह कि उक्त अधिसूचना द्वारा प्रस्तावित नियमावली संविधान के 73 वे संशोधन की मूल भावना के विपरीत होगा जिसमें पंचायतों को स्थायित्व प्रदान करने हेतु 5 वर्ष का कार्यकाल निर्धारित किया गया है।

6. यह कि उपरोक्त नियमावली लागू होने पर यदि चुनाव राजनैतिक पार्टियों के आधार पर नही लड़ा जायेगा तो इसमें धनबल एवं बाहुबल के द्वारा नगर पालिका के अध्यक्ष एवं नगर निगम के महापौर का पद प्राप्त करने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जायेगी। जो लोकतन्त्र के लिए घातक है।

7. यह कि यदि राजनैतिक पार्टी के आधार पर चुनाव नही होते तो अध्यक्ष एवं महापौर कार्य करने में सदस्यों का अनावश्यक दबाव रहेगा, जिससे वे अपने दायित्वों का निर्वहन ठीक प्रकार से नही कर सकेंगे और इसका विपरीत प्रभाव विकास कार्यों पर पड़ेगा।

8. यह कि उपरोक्त नियम के आधार पर चुनाव होने पर सत्ताधारी पार्टी द्वारा इसका दुरूपयोग कर अपने व्यक्तियों को सत्तासीन करने की प्रबल संभावना होगी। जो पूर्णतया लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं के प्रतिकूल होगा।

9. यह कि इसके अतिरिक्त उपरोक्त प्रतिबंध लगाने का कोई उचित आधार नही है और न ही यह व्यावहारिक है।

अत: महोदय से अनुरोध है कि लोकतान्त्रिक हित को ध्यान में रखते हुए उपरविर्णत आपत्तियों/सुझावों पर सम्यक रूप से विचार कर उपरोक्त प्रस्तावित नियमों में संशोधन के प्रस्ताव को निरस्तकर राजनैतिक पार्टियों के अधिकृत चुनाव चिन्ह के आधार पर चुनाव लड़ने के प्राविधान को यथावत बनायें रखें।

(सूर्य प्रताप शाही)प्रदेश अध्यक्ष भाजपा, उ0प्र0

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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