सुल्तानपुर - शिक्षा का अधिकार अधिनियम उपर से ठोस अन्दर से खोखला प्रतीत होता है। जिससे क्षेत्रीय लोग तरह तरह की चर्चाओं में मशगूल है। सूत्रों के अनुसार केन्द्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू कर दिया है। जिसमे सभी चौदह वर्ष के बच्चो को नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। ऐसे में शिक्षा का अधिकार अधिनियम कही कागजी शेर बनकर न रह जायें, जिसे लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में चर्चाओं की बाजार गर्म है।
सरकौड़ा ग्राम निवासी भाजपा नेता अशोक कुमार यादव ने केन्द्र व राज्य सरकार पर जमकर प्रहार करते हुए कहा कि उक्त दोनो सरकारे नही चाहती कि शिक्षा का शुरूआती ढ़ांचा ठोस हो जिसमें बच्चे स्वावलम्बी बन सके। उन्होने कहा कि यहद उक्त दोनो सरकारों में इमानदारी है तो बच्चों का प्राथमिक विद्यालय परिवार का स्थान हासिंल किये आगंनबाड़ी केन्द्रों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों को कुपोषण से बचाने का जिम्मा उठाये आगनबाड़ी से संचालित हाट कुक्ड योजना के बदले छात्रबृत्ति योजना महामाया बालिका आर्थिक मदद योजना, के तर्ज पर टी0सी0, जन्म, मृत्यु प्रमाण पत्र व जनगणना सम्बन्धित मूल विवरण आदि का अधिकार अनिवार्य रूप से देकर शिक्षा में अमूल चूल सुधार किया जा सकता है।
जबकि विजय कुमार अग्रहरि का कहना है कि मतदाता सूची का सही आंकलन आंगनवाड़ी केन्द्रो से सम्भव है जो अठ्ठारह वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले मतदाताओं की प्रतिवर्ष सूची बना सकती है। इसी कड़ी मे अकिन्त उर्फ दीपू चौरसिया कुडवार का कहना है कि आंगनवाडी केन्द्र से विना जारी स्थानान्तरण प्रमाण पत्र के प्राइमरी विद्यालय व प्राइवेट संस्था में किसी बच्चे का नाम नही लिखा जायेगा तो ग्रामीण के अधिकतर लोग अपने बच्चों की सुदृढ विकास के लिए आंगनबाडी केन्द्रों पर ध्यान रखेगें और आंगनबाड़ी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अकुंश लगेगा।
जबकि कुछ ग्रामीणों का कहना है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम सरकार अपने हितो को ध्यान में रखकर बनायी है जिसमें उनकी राजनीति खूब फूले-फले, और शासन प्रशासन की जेब भी यदि सरकारे व राजनेता उक्त समस्याओं की इमानदारी से निदान करे तो धुसपैठ-आतंकवादी जैसे देश धातक समस्याये स्वत: समाप्त हो जायेगी। क्षेत्रीय ग्रामीणों के बीच गहमा गहमी जारी बहस में शिक्षा का अधिकार अधिनियम उपर से जितना ठोस है अन्दर से उतना ही अधिक खोखला प्रतीत होता है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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