चित्रकूट - बढ़ रहा है प्रदूषण, नष्ट हो रही प्राकृतिक सुन्दरता, समाप्त होने को है नदियों का अस्तित्व, बरबाद हो रहे हैं उपजाऊ खेत, शिकायत कर्ताओं पर ही होती है विभागीय कार्रवाई, विरोध करने पर सहना पड़ता है ग्रामीणों को दबंगों का कहर। आखिर कौन है इन सबका जिम्ममेदार यदि हम इन सब बातों पर गौर करें तो केवल बस यही निष्कर्ष निकलता है कि इसकी जिम्मेदारी जिले में चल रही अवैध बालू खदानों और बिना मानक के अंधाधुंध चलने वाले क्रेशर उद्योग को ही दी जा सकती है। जहां एक ओर अवैध बालू खदानों के गोरख धंधे में शामिल लोग अच्छीखासी कमाई कर रहे है वहीं प्रतिदिन हजारों रुपये का सरकारी राजस्व की चोरी भी हो रही है। प्रभू श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट जिले में आज भी उनकी कृपा बनी हुई है। जिसके चलते यहां जड़ी-बूटियों के साथ-साथ पर्याप्त मात्रा में खनिज पदार्थ भी पाया जाता है। जहां एक ओर पहाड़ों से निकलने वाला ग्रेनाइट पत्थर लोगों को मालामाल कर रहा है वहीं दूसरी ओर जिले के विभिन्न स्थानों से निकलने वाली छोटी-बड़ी नदियों के घाटों में मौजूद रेत भी सोना साबित हो रही है। हालांकि इनका व्यापार करने के लिए प्रशासन द्वारा ठेकेदारों को खदानों का पट्टा दिया जाता है लेकिन इनसे अच्छी कमाई होने के चलते दबंगों द्वारा अवैध खदाने चलाई जाने लगी। जिसके चलते नदियों और पहाड़ों का अस्तित्व तो संकट में आ ही गया है साथ ही बिना मानकों के चल रहे क्रेशर उद्योग प्रदूषण बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहा है।
जिले में मौजूद है अपार प्राकृतिक खनिज संपदा जहां एक ओर जिले की सीमा में प्रहरी के रूप में खड़ी विंध्यपर्वत श्रृंखलाओं में तमाम तरह की जड़ी-बूटियों के साथ-साथ ग्रेनाई पत्थर अच्छी खासी मात्रा में पाया जाता है तो वहीं दूसरी ओर पहाड़ी, मऊ, राजापुर आदि ग्रामीण इलाकों से निकलने वाली नदियों के किनारे अच्छी गुणवत्ता वाली भरपूर बालू भी निकलती है। जिसके चलते जिले में बालू व पत्थर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रशासन द्वारा पट्टे पर खदानें दी जाती हैं। जिनके माध्यम से ठेकेदार तो फायदा उठाते ही हैं सरकारी राजस्व की भी बढ़ोत्तरी होती है।
चल रही है अवैध खदानें पट्टे पर पत्थर व बालू की खदानों के ठेकेदारों की अच्छी कमाई को देख जिले के दबंग और असरदार लोगों ने अपनी हनक के बल पर अवैध खदानें चलानी शुरू कर दी। जिसके चलते एक ओर लौरी, हनुमानगंज, इटवा, भौंरी, लोखरी, भरतकूप, रसिन आदि गावों के किनारे स्थित पहाड़ों में अवैध पत्थरों की खदाने चल रही है। इसी तरह पहाड़ी थानान्तर्गत ओरा, नहरा, लोहदा, दरसेड़ा, परसौंजा, चिल्ला, कहेटा, सकरौली, ममसी, राजापुर व मऊ आदि के नदी किनारे बसे गांवों में बालू माफियाओं द्वारा प्रतिदिन अवैध खनन कर सैकड़ों ट्रैक्टर बालू निकाली जा रही है। जिसके चलते ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों का आरोप है कि अवैध खदानों के संचालन में दबंगों का साथ सम्बंधित सरकारी मशीनरी के लोग भी देते हैं। जिसका फायदा अवैध खदानों को चलाने वाले लोग उठाते हैं।
बढ़ रहा है प्रदूषण समाप्त हो रही है प्राकृतिक सुन्दरता वैसे देखा जाए तो चित्रकूट का प्राकृतिक सौन्दर्य अपनी चरम सीमा पर है लेकिन इसमें विंध्यपर्वत श्रृंखला की छोटी-छोटी पहाड़ियों में छाई हरियाली और बरसात के समय इनसे गिरने वाले झरने यहां की सुन्दरता में चार चान्द लगाते हैं। इन सबके बावजूद भी दशकों से दस्यु समस्या झेल रहे इस पूरे इलाके में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा नहीं मिल सका। इसके अलावा जब इन पहाड़ों व नदियों की प्राकृतिक सुन्दरता में अवैध खनन करने वाले माफियाओं की नज़र पड़ी तो इसमें जैसे ग्रहण ही लग गया। जिसके कारण जिलेे में प्रदूषण तो बढ़ा ही साथ ही साथ नदियों के अस्तित्व पर भी खतरा मण्डराने लगा है। आपरेशन पोस्ट भरतकूप के अलावा जिले के अन्य कई स्थानों पर चल रहे क्रेशर उद्योगों का प्रभाव आस-पास के इलाके में मौजूद प्राकृतिक वनस्पतियों पर पड़ने लगा है। जिसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ता है।
मिल रहा है बढ़ावा अवैध खनन को
भरतकूप के अलावा जिले के अन्य इलाकों में चलने वाली क्रेशर मशीनों में पत्थरों की अच्छी खासी खपत को देखते हुए पहाड़ियों में खदानों की संख्या भी बढ़ गई है। इनमें से कुछ का तो खनिज विभाग से पट्टा है लेकिन ज्यादातर अधिकतर खदाने अवैधरूप से चल रही हैं। सूत्रो की माने तो पट्टे की खदानों से महंगे दामों में पत्थर खरीदने के बजाए ज्यादातर क्रेशर उद्योग मालिक क्षेत्रा में चल रही अवैध खदानों से निकलने वाले पत्थरों को खरीदते हैं। जिससे यहां अवैध पत्थर खदानों को बढ़ावा तो मिल ही रहा है साथ ही पहाड़ भी खोखले होते जा रहे हैं। इसी तरह ग्रामीण विकास में होने वाले निर्माण कार्यों को कराने वाले ठेकेदार व सम्बंधित लोग भी बालू व पत्थर के अवैध खनन को बढ़ावा दे रहे हैं।
होती है मानकों की अनदेखी
बिना मानकों के चलने वाले क्रेशर उद्योग से आसपास इलाके का पूरा वातावरण को प्रदिूषत होता जाता है। लोग बताते हैं कि जब क्रेशर मशीनें चलती हैं उस समय इतनी गर्द हवा में मिल जाती है कि सांस लेना भी दूभर हो जाता है। इसके अलावा इन मशीनों से निकलने वाली धूल शाम होने से पहले ही अंधेरा कर देती है। जिसके कारण नजदीक का नजारा भी नहीं दिखाई देता। ग्रामीणों का कहना है कि मशीनें चलने के बाद शाम के समय सामने से आ रहे वाहनों की स्थिति भी उनके काफी पास आ जाने पर ही समझ में आती है। जिसके कारण कभी-कभी भयानक हादसे की स्थिति बन जाती है। लोग बताते हैं मशीनों से निकलने वाली धूल से छायी धुंध के चक्कर में अक्सर उनको मार्ग दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। सूत्र की माने तो शायद ही किसी के पास पर्यावरण विभाग का प्रमाणपत्र हो। इसके अलावा क्रेशर मशीन चलाते समय पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए जबकि उद्योग संचालकों द्वारा ऐसा नहीं किया जाता ।
बरबाद हो रहे हैं खेत
आपरेशन पोस्ट भरतकूप क्षेत्र में अंधाधुंध चल रहे स्टोन के्रशर उद्योग के प्रदूषण से आस-पास क्षेत्रो में मौजूद ग्रीन बेल्ट भी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। जिसका खामियाजा ग्रामीणों का भुगतना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि मशीनों से निकली धूल से आदमी ही नहीं पेड़ पौधों का जीना भी मुहाल हो गया है। क्रेशर मिल के आस-पास मौजूद खेतों व पेड़ों को देखा जाए तो इनके पत्ते हरे दिखाई देने के बजाए पूरा पेड़ सफेद दिखाई देता है। इतना ही नहीं मशीनों से निकली वाली धूल खेतों में गिरने के कारण मशीनों के नजदीक स्थित खेतों का उपजाऊपन भी नष्ट हो चला है। वहीं दूसरी ओर रात के अंधेरे में अवैध खदानों से बालू भर कर निकलने वाले वाहनों के कारण खेतों की मिट्टी खराब होती है। ग्रामीण बताते हैं कि जब उनकी फसलें खेतों में खड़ी होती हैं उस समय उनको भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
चायपान की दुकान व ढाबे चलाने वाले लोग भी हैं परेशान
आपरेशन पोस्ट भरतकूप के मुख्य मार्ग में अपनी छोटी-छोटी चाय पान की दुकान व ढाबों आदि के जरिए रोजी रोटी चलाने वाले लोग भी यहां क्रेशर उद्योग के कारण बढ़े प्रदूषण के चलते हलाकान हो गए हैं। उनका कहना है कि खाने पीने की चीजें बनाते समय उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मशीनों से उठने वाली धूल उनकी दुकानों तक भी आती है जिसके कारण खाने पीने का सामान खराब होता है।
आजिज आ चुके लोगों को है कार्रवाई का इन्तजार
क्रेशर उद्योग संचालकों द्वारा मानकों की अनदेखी व मनमानी से आजिज आ चुके ग्रामीणों का कहना है कि इस उद्योग से जुड़ा हर विभाग इनकी मनमानी जानता है लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती। ग्रामीणों का कहना है कि अब उन्हें मानकों की अनदेखी करने वाले क्रेशर संचालकों के खिलाफ कार्रवाई होने का इन्तजार है। वहीं लोगों का कहना है कि यदि इनका विरोध किया जाता है तो दबंगों के कहर का शिकार होना पड़ता है। इसके अलावा यदि प्रशासन से शिकायत की जाती है तो उल्टे शिकायत कर्ता के खिलाफ ही कार्रवाई हो जाती है और किसी को सम्बंधितों की नोटिस मिल जाती है तो किसी पर शिकायत वापस लेने का दबाव डाला जाता है।
नरेन्द्र मिश्रा