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बेतवा नदी के तटवर्ती इलाके में तीन हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले

Posted on 04 May 2010 by admin

लखनऊ- बुन्देलखण्ड का झांसी मण्डल पाषण युग और गुप्तकाल के रहस्यमय इतिहास के  उत्खनन के बाद एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में उभरने की दिशा में अग्रसर है। इस रहस्य का पर्दा उठाने के लिए प्रदेश का पुरातत्व विभाग एक महत्वपूर्ण शोध के तहत अन्वेषण का कार्य कर रहा है। क्योंकि भारतीय इतिहास के शिलालेख पर आज भी तमाम ऐसे अनछुए पहलू है जिनसें हम सब अनभिज्ञ हैं। इन्ही में से एक है पाषाण युग और गुप्त काल। इन युगों के बारे में लोगों को जानकारी तो है लेकिन इनके बीच के कालखण्ड के रहस्यों से पर्दा नहीं उठ सका है। अब अगर पुरातत्ववेत्ताओं को सफलता मिली तो जल्द ही इनके बीच की जानकारी से भी रुबरू हो सकेंगे क्योंकि यूपी पुरातत्व विभाग को बुन्देलखण्ड के झांसी जनपद में बेतवा नदी के तटवर्ती इलाके में तीन हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले है।

सहायक पुरातत्व अधिकारी डा. सुरेश कुमार दुबे के नेतृत्व में शुरू किए गये इस अभियान में बराटा, घुसगवां, कुकरगांव, कोछभावर और पहुंच नदी के तटवर्ती गांव खिरियाराम में खुदाई की गई। सूत्र बताते है कि इस दौरान यहां से मध्यकालीन मन्दिर और मूर्तियों के अवशेष, कृष्णलोपित मृदभाण्ड, काला और लाल मृदभाण्ड के अवशेष प्राप्त हुए है। यही नहीं कुकरगांव से मृदभाण्डों के अलावा हनुमान, विष्णु और अंजनी माता की मूर्तियां भी प्राप्त हुई है। इसी गांव के एक अन्य स्थल से भारी मात्रा में लौहमल भी मिला है जिससे जानकारी मिलती है कि भूतकाल में यहां लोहा बनाने की एक बड़ी उद्योगशाला रही होगी। उधर कोछाभाव से मिले अवशेषों के आधार पर पुरातत्ववेत्ताओं ने यहां तक दावा किया कि झांसी जिले की बसावट चन्देलकाल से नही बल्कि उससे भी तीन हजार साल पुरानी है।

सभ्यता की जानकारी की दृष्टि से महत्वपूर्ण बेतवा नदी की घाटी से एरच से एक मात्र पुरानी सभ्यता के बारे में जानकारी मिली थी। राज्य पुरातत्व विभाग के निदेशक राकेश कहते है जिस हिसाब से हमें अवशेष मिल रहे है उससे उम्मीद है कि जल्दी ही पता चला जायेगा कि पाषाण काल और गुप्त काल के बीच के समयान्तराल में क्या हुआ था।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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