शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले , वतन पर मर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा, ये लाइने भले ही वशोंZ पूर्व किसी नें लिखी है लेकिन आज भी जो जब्जा शहीदों को नमन करता हुआ अमेठी सुलतानपुर के संग्रामपुर में नज़र आया। जब दन्तेबाड़ा में शहीद हुए जवान विनोद यादव का पार्थिव शरीर असके गॉव लाया गया। अन्तिम दशZन को उमड़े हजारों के हुजूम जहॉ गमजदा थे पहीं परिवार वालों पर मानों पहाड़ ही टूट पड़ा। ‘ाहीद विनोद की शहादत पर उन्हें गर्व तो है पर परिवार की आशाएं भी विनोद के साथ चकना चूर हो गई हैं। दो दिन पूर्व ही गर्भ में जहॉ बेटी ने दम तोड़ा था वहीं दो बच्चोंके सिर से नक्लियों ने पिता का साया भी छीन लिया।
शहीद विनोदके पिता बताते हैं कि विनोद बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का था एवं मेहनत कश थां विनोद बचपन से ही गॉव वालों का दुलारा था तभी तो एक राश्टीय पार्टी ने उसे ग्राम सभा अध्यक्ष बलनाया था। सी0आर0पी0एफ0 में भर्ती होने के साथ ही गॉव परिवार की जिम्मेदारी अपने छोटे भाई को छोड़ कर देश रक्षा में चल पड़ा था । घर की कच्ची देहरी इस इन्तजार में थी कि अब पक्का मकान बनेगाा। बेटी एवं बेटे को पापा का के आने पर स्कूल डेस एवं स्कूल जाने का इन्तजार था तो अस्पताल में भर्ती पत्नी , पति मिलनन की आश पर बैठी थी पर नियत ने क्रूर खेला , अब तो पिता के पास यादों का ही सहारा है, जो जीवन भर बूढ़े कंधों पर ढोनी है। शहीद विनोद के भाई अब अपने भाई के द्वारा दी गई जिम्मेदारी जो गॉव और परिवार की हैउसे निभाने हि हैं परन्तु उसे लगता नहीे है कि उसका भाई अब इस दुनिया में नहीे है। उसे तो अब भी यही लगता है कि उसका भाई अब भी शरहद की रक्षा करने गया है।, परन्तु सच्चाई का एहसास होते ही ऑखे और चेहरा सब वयॉ कर देतें हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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