शिक्षा के मौलिक अधिकार की व्यवस्था लागू करने के मामले में केन्द्र सरकार के सामने पैसे की कमी का रोना रोकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री ने अपनी बेबसी का ही नहीं बल्कि नकारेपन का सबूत दिया है।
एक तरफ राजधानी में सख्त और तंगदिल पत्थरों के शहर में तब्दील करने पर 6हजार करोड़ रूपये से भी ज्यादा रकम खर्च किये जा चुके हैं और अभी भी जनता की जेब से भरे जाने वाले सरकारी खजाने का मुंह पत्थरों के शहर के विस्तार के लिए लगातार खुला हुआ है। वहीं एक मजबूत और सक्षम देश व प्रदेश के निर्माण के लिए जरूरी “शिक्षा के मौलिक अधिकार´´ को सार्थक बनाने के मामले में प्रदेश की मुख्यमन्त्री पैसे की कमी का रोना रो रही हैं।
उ0प्र0 सरकार की मुखिया का शिक्षा का मौलिक अधिकार बनाने के प्रति यह अफसोसजनक रवैया निश्चित तौर पर संविधान निर्माता डॉ0 बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की आत्मा को अत्यन्त कष्ट पहुंच रहा होगा, आखिर वह बाबा साहब ही थे जिन्होने देश के तमाम वंचितों, दलितों, निर्धनों केा सक्षम और समृद्ध बनाने के इरादे से संविधान की रचना करते वक्त “शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया था´´। इसमें कोई शक नहीं कि शिक्षा के मौलिक अधिकार की श्रेणी में शामिल करने से समाज के उसी वर्ग को सबसे ज्यादा लाभ होगा जिस वर्ग का सबसे बड़ा हिमायती होने का दावा बहुजन समाज पार्टी करती है। इससे एक बात और स्पष्ट होती है कि मुख्यमन्त्री की न तो संवैधानिक मूल्यों में आस्था है और न ही बाबा साहब अम्बेडकर की उन नीतियों के प्रति विश्वास है जिन नीतियों के बलबूते बाबा साहब ने दलितों और वंचितों के उत्थान का सपना देखा था।
प्रदेश कंाग्रेस के प्रवक्ता द्विजेन्द्र त्रिपाठी ने आज यहंा जारी बयान में कहा कि कांग्रेस पार्टी ने एक बार यह साबित कर दिया है कि वह संविधान निर्माताओं के संकल्प और दलितों, वंचितों के उत्थान के प्रति पूरी तरह संकल्पबद्ध है। कंाग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और प्रधानमन्त्री डा0 मनमोहन सिंह विपक्ष के द्वारा खड़ी की जा रही तमाम बाधाओं के बावजूद समाज के सबसे निचले तबके को ऊंचा उठाने के लिए जो प्रयास कर रहे हैं उनमेें मनरेगा, इिन्दरा आवास योजना, किसानों की कर्जमाफी और शिक्षा के मौलिक अधिकार के साथ ही राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना तथा जवाहर लाल नेहरू अर्बन डेवलपमेंट योजना जैसी योजनाएं जगजाहिर हैं और यह भी जगजाहिर है कि केन्द्र सरकार द्वारा मनरेगा जैसी योजनाओं के लिए उपलब्ध करायी गई राशि को सुश्री मायावती के नेतृत्व में सूबे के अधिकारियों ने जिस तरह लूट-खसोट मचायी है वह किसी से छुपा नहीं है। मनरेगा के तहत गरीबों, दलितों और वंचितों को जो पैसा मिलना था प्रदेश की मुख्यमन्त्री उसी पैसे से बनी नोटों की माला पहन रही हैं। इस बात की क्या गारण्टी है कि सबको शिक्षा के लिए मुख्यमन्त्री केन्द्र सरकार से जिस राशि की मांग कर रही हैं वह रूपया आगामी रैली में नोटों की एक और माला के रूप में नज़र आये।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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