मुख्यमन्त्री मायावती ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के लागू करने में राज्य सरकार की असमर्थता जताकर प्रदेश की जनता के साथ एक अपराधिक कृत्य किया है, जिसकी जितनी निन्दा की जाए कम है। इस अधिनियम के लागू करने पर राज्य को मात्र 45 प्रतिशत खर्च करना पड़ेगा, उससे भी वे हाथ खींच रही हैं। वे दरअसल यह नहीं चाहती हैं कि प्रदेश में शिक्षा का प्रसार हो, नई पीढ़ी सुशिक्षित हो, क्योंकि वे जैसा अपनी सभाओं में कहती हैं, उनके वोटर अखबार नहीं पढ़ते हैं। उनकी मंशा दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को निरक्षर बनाए रखने की है, क्योंकि पढ़ा लिखा दलित उनकी सामन्ती आदतों, लूट-वसूली के धंधें की कलाबाजी और दलित की बेटी बनकर दौलत की महारानी बन जाने की सच्चाई भी जान जाएगा।
हमारे बच्चे पढ़ लिखकर एक नई जिन्दगी जिएं यह वायदा तो संविधान में ही दर्ज है। दुर्भाग्य से देश पर 50 साल से ज्यादा ‘ाासन करने वाली कांग्रेस भी इस बुनियादी विशय की उपेक्षा करती रही है। उसने अंग्रेजों की तर्ज पर ऐसी शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा दिया जिससे आम आदमी और ‘ाासक वर्ग के बीच खाई बनी रहे ताकि देश का एक बड़ा वर्ग लुटता रहे और चन्द लोग लूटते रहें, सुश्री मायावती को यही आदशZ प्रिय है।
मुख्यमन्त्री को कोई भी जनहितकारी योजना आए उसमें वे पहले अपने हित की सेंध लगाने लगती हैं। आदतन केन्द्र से ज्यादा से ज्यादा धन उगाही के लिए चिट्ठी-पत्री करने लगती हैं। उनका विकास ऐसे ही “डाक´´ के जरिए होता है। बुन्देलखण्ड का मसला हो या बाढ़-सूखा संकट का उन्हें बस केन्द्र से धन की ही दरकार रहती है। अब शिक्षा को सर्व सुलभ बनाने में भी उन्हें पूरा का पूरा बजट चाहिए। ज्यादा से ज्यादा धन में ही उनका मन मगन होेता है। करोड़ों की नोटों की माला से कम उन्हें स्वीकार्य नहीं। शिक्षा प्रसार जैसे पुण्य कार्य में भी संसाधनों का रोना रोने में उन्हें संकोच नहीं होता है।
जब श्री मुलायम सिंह यादव मुख्यमन्त्री थे, उन्होंने केन्द्रीय सहायता के भरोसे प्रदेश का विकास नहीं किया था। वे जाते हुए 24,000 करोड़ रूपए सरकारी खजाने में छोड़ गये थे, मायावती तो दिवाला निकालकर ही जाएगीं। सुश्री मायावती अखबारों में बड़े-बडे़ विज्ञापन छपवाकर विकास का झूठ भले प्रचारित कर लें पर हकीकत तो यही है कि वे प्रदेश को निरक्षर, कानून व्यवस्था में जर्जर, बिजली पानी से वंचित अंधकार में रखने का काम कर रही हैं। उन्हें प्रदेश की गरीब जनता की नही, अपनी प्रतिमाओं की सुरक्षा की चिन्ता सताती है। बिना कानून या अध्यादेश के राजभवन को ठेंगे पर रखकर वे विशेश स्मारक सुरक्षा बल भी बना लेती हैं। इसके लिए संविधान, लोकतन्त्र सबकी धज्जियॉ उड़ाने में उन्हें कतई संकोच नहीं होता है। केन्द्र सरकार को ऐसी असंवैधानिक एवं जनविरोधी और शिक्षा विरोधी प्रदेश सरकार के प्रति अपना रूख स्पश्ट करना चाहिए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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