संघ कार्य को एवम् अपने विचारों को समझने के प्रति पूरा विश्व अग्रसर हो रहा है

Posted on 27 March 2010 by admin

लखनऊ- परम पूजनीय सरसंघचालक, अखिल भारतीय पदाधिकारी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य गण, अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल के सभी माननीय अधिकारी, अन्य सदस्य गण, प्रतिनिधि बन्धुओं तथा इस अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा हेतु निमन्त्रित विविध कार्यों में कार्यरत माता, भगिनी एवं बन्धु गण! भगवान श्री कृष्ण ने संभ्रमित अर्जुन को गीतोपदेश करते हुए अधर्म पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा दी, ऐसे पावन कुरुक्षेत्र में हो रही अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में आप सभी का स्वागत है।

प्रतिनिधि सभा में अपने कार्य का सिंहावलोकन, सम्पन्न हुए विभिन्न कार्यक्रमों की समीक्षा, विचारों व अनुभवों के आदान-प्रदान के साथ ही देश के समक्ष वर्तमान चुनौतियों तथा परिस्थितियों के सन्दर्भ में हम विचार-विमर्श करेंगे तथा भविष्य की योजनाओं पर भी चिन्तन करते हुए कार्य योजना निश्चित करेंगे। आगे की प्रक्रिया प्रारम्भ करने के पूर्व उन महानुभावों का स्मरण स्वाभाविक है जो हमेशा अपने मध्य रहे, अपने परिश्रम, निष्ठा से तथा स्नेहमयी उपस्थिति मात्र से भी हमें प्रेरणा प्रदान करते रहे, राजनीतिक, सामाजिक जीवन में अपने कर्तव्य एवम् विचारों की अमिट छाप छोड़कर हमसे सदा के लिए विदा हो गये ऐसे सभी महानुभावों की अनुपस्थिति हमें वेदना की अनुभूति दे जाती है।

श्रद्धांजलि

अनेक वर्षो से जिनके सानिध्य से हम लाभान्वित होते रहे, जिन्हें श्रेष्ठ कर्मयोगी कहना ठीक होगा ऐसे श्रद्धेय नानाजी देशमुख ने 93 वर्ष की जीवन-यात्रा पूरी कर अपने जीवन को धन्य बनाया। राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करते हुए अपने चिन्तन, अध्ययन एवं अनुभवों को सामाजिक पुनर्रचना के कार्य हेतु समर्पित कर और अपना देहदान करके उन्होंने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। चित्रकूट एवम् गोण्डा प्रकल्प उनकी स्मृतियों को जागृत रखेंगे।

पूर्व में अखिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख और महाराष्ट्र प्रान्त के कार्यवाह के नाते प्रदीर्घ अवधि तक जिनका मार्गदर्शन हमें प्राप्त होता रहा ऐसे डॉ. श्रीपति शास्त्री जी का पुणे मे स्वर्गवास हो गया। डॉ. श्रीपति शास्त्री जी का चिन्तन, अध्ययन, वक्तृत्व, कर्तव्य संघ कार्य हेतु ही समर्पित रहा। महाराष्ट्र में और विशेषत: पुणे के सामाजिक व शैक्षिक क्षेत्र में उनका विशेष योगदान रहा है। उनकी मित्रता की कोई सीमा नहीं थी। ऐसा प्रेरक व्यक्तिमत्व आज हमारे मध्य नहीं है।

दक्षिण कर्नाटक प्रान्त के माननीय प्रान्त संघचालक डॉ. कृष्णमूर्ति जी जो हमें अपनी सादगी भरी जीवन-शैली, मृदु एवं मिलनसार स्वभाव से प्रभावित करने वाले थे, अल्पायु में ही कर्क रोग से संघर्ष करते हुए हमें छोड़कर चले गये। सौराष्ट्र के निवासी और जिन्हें गुजरात प्रान्त के संघ कार्य के नींव के पत्थर कहा जा सकता है ऐसे श्री नटवर सिंह जी वाघेला जो स्वयंसेवकों में बापू नाम से जाने जाते थे और वास्तव में अनेक कार्यकर्ताओं की पितृ-तुल्य चिन्ता करने वाले, मार्गदर्शक रहे, आयु जिनके परिश्रम व निरन्तरता में बाधक नहीं बनी, नित्य शाखा के प्रति आग्रही, तपस्वी एवम् सादगी भरा उनका जीवन सभी के सम्मुख आदर्श के रूप में रहा, वे हमारे मध्य नहीं रहे।

जम्मू-कश्मीर में जिनकी साधना से कार्य बढ़ा और उस प्रान्त के कार्य को प्रतिष्ठा प्राप्त हुई, माननीय प्रान्त संघचालक के रूप में जिनका मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा ऐसे माननीय ओम प्रकाश जी मैंगी तथा हिमाचल के संघ कार्य की वृद्धि में जिनका सह-प्रान्त कार्यवाह के रूप में योगदान रहा ऐसे डॉ. सुभाष जी अपने जीवन की यात्रा पूरी कर गये।

पश्चिम आन्ध्र के धर्मजागरण प्रमुख श्री भीमसेन राव देशपाण्डे जिन्होंने प्रचारक के नाते आन्ध्र के विभिन्न जिलों में कार्य किया तथा बाद में साप्ताहिक पत्रिका जागृति के सह सम्पादक के रूप में भी कार्य किया। केवल वे ही नहीं अपितु उनके सारे परिवारजन भी अपने कार्य में भूमिका निभाते रहे। समय-समय पर आयी आपदाओं के समय राहत कार्य में स्वयंसेवकों का मार्गदर्शन करते रहे, अनुसूचित जाति, जनजातीय बन्धुओं में जागरण कार्य करते रहे तथा जिन्होंने लगभग 100 ग्रामों में हनुमानजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठापना कराते हुए श्रद्धा के केन्द्र विकसित किये और इतनी व्यस्तताओं में भी श्री गुरुजी समग्र दर्शन के छठे खण्ड का तेलगु में अनुवाद करने का कार्य पूर्ण किया, ऐसे अत्यन्त प्रसन्न, मृदुभाषी व्यक्तिमत्व के धनी, अकस्मात् गम्भीर हृदयाघात के कारण स्वर्ग-गमन कर गये एवं जाते-जाते नेत्रदान के संकल्प के साथ अपने सामाजिक दायित्व का भी निर्वहन किया। पश्चिम उत्तर क्षेत्र के व्यवस्था प्रमुख श्री ब्रज किशोर जी भी अल्प बीमारी के बाद हमसे बिछुड़ गये।

तमिलनाडु के एक ज्येष्ठ प्रचारक श्री बी. उत्तमराज जी जिन्होंने स्व. शिवरामपन्त जी की प्रेरणा से सेवा के क्षेत्र में रक्तदान के पवित्र कार्य से प्रवेश किया, चेन्नई का अद्यतन रक्तकोष प्रकल्प हमेशा जिनकी स्मृतियों को जागृत रखेगा, वे अल्पकाल की शारीरिक अस्वस्थता से ही अनेक सहयोगियों को छोड़ परलोक गमन कर गये।

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के क्षेत्रीय संगठन मन्त्री, पूर्वी उत्तर प्रदेश में कभी प्रान्त बौद्धिक प्रमुख रहे ऐसे श्री कौशलानन्द जी सिन्हा को हमने खोया है। मणिपुर के प्रारंभकाल के स्वयंसेवकों में से एक, सांसद तथा वहां जनसंघ के अध्यक्ष रह चुके श्री रघुमणि जी शर्मा सरसंघचालक जी को अपना अन्तिम प्रणाम देकर विदा हो गये। इतिहास संकलन योजना के क्षेत्रीय संयोजक रहे श्री मिथिलेश जी श्रीवास्तव, सहकार भारती के अवध प्रान्त के अध्यक्ष रह चुके श्री गणेश दत्त जी सारस्वत, संस्कार भारती महाराष्ट्र के प्रान्त के अध्यक्ष तथा मराठी नाट्य मंचन के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखने वाले श्री चित्तरंजन जी कोल्हटकर, अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित प्रख्यात ज्ञानपद पुरस्कार प्राप्त तेलगु साहित्य के साधक, वि.हि.प. के पूर्व अध्यक्ष श्री विरदुराजु रामराजु जी, विद्याभारती आन्ध्र प्रदेश के भारतीय विचार केन्द्रम् के अध्यक्ष रहे श्री पूर्णम् लक्ष्मी नारायणन् जी - ये सभी महानुभाव हम से विदा हो गये।

बिहार-झारखण्ड क्षेत्र के सदा प्रसन्न रहने वाले और रखने वाले विद्याभारती के संगठन-मन्त्री श्री उद्यम जी, गम्भीर हृदयाघात को सहन नहीं कर पाये। विश्वास करना भी कठिन है कि वे आज हमारे साथ नहीं हैं। ऐसे कई ज्येष्ठ बन्धु आज हमारी आंखों से ओझल हो गये।

युवावस्था में सामान्य रोजगार में लगे और बंगाल प्रान्त से प्रकाशित होने वाली पत्रिका स्वस्तिका पढ़कर स्वयंसेवक बने, प्रचारक जीवन को स्वीकार किया, राजनीतिक क्षेत्र में बंगाल के अत्यन्त प्रतिकूल वातावरण में भी अपने विचारों की प्रतिष्ठापना में निरलस रहकर कार्य करने वाले श्री मनमोहन राय जी शान्ति से स्वर्गस्थ हो गये। दुर्भाग्य से उसी दिन उनके छोटे भाई भी उन्हीं के साथ इस महायात्रा में सहभागी बन गये।

पुणे के सुप्रसिद्ध उद्योजक व सामाजिक कार्यकर्ता के नाते से परिचित, 1941 में तृतीय वर्ष प्रशिक्षित और पुणे की स्वरूपविर्धनी संस्था में आधार-स्तंभ रहे श्री पुरुषोत्तम भाई श्रॉफ पुणे में 84 वर्ष की अवस्था में सफल जीवन यात्रा पूरी करके चले गये।

इसी कालखण्ड में अपने कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे तथा विद्याभारती के सहयोगी के रूप में खड़े रहने वाले कटक (उड़ीसा) के श्री ब्रह्मानन्द जी पण्डा, बाल्यकाल के स्वयंसेवक तथा जनसंघ के समय से राजनीतिक क्षेत्र में रहे जूनागढ़ (गुजरात) के श्री सूर्यकान्त जी आचार्य, पूर्व में प्रचारक रहे आन्ध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के श्री दिव्वेल कृष्णमूर्ति जी, कानपुर के जिला व महानगर संघचालक रहे श्री रामावतार जी महाना, मध्यभारत के प्रान्त प्रचारक रहे स्व. शरद जी मेहरोत्रा के भ्राता कन्नौज के प्रमुख व्यवसायी श्री प्रमोद जी मेहरोत्रा, जबलपुर कार्यालय में प्रदीर्घकाल तक काम देखने वाले बहुत पुराने प्रचारक श्री बाबूलाल जी नामदेव, असम क्षेत्र के कारबियांगलांग के श्री गान्धीराम जी टिमंगू तथा एकही सड़क दुर्घटना में महाकौशल प्रान्त के दो प्रचारकों श्री कमलेशकुमार (सिंगरौली जिला प्रचारक) एवं श्री विपिन नामदेव (तहसील प्रचारक) ने अन्तिम सांसें ली हैं। केन्या के हिन्दू स्वयंसेवक संघ के कार्य के आधारस्तम्भ रहे, सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा प्राप्त ऐसे श्री नरेन्द्र भाई शाह भी नही रहे।

राजनीतिक जीवन में प्रदीर्घ काल तक मुख्यमन्त्री रहे ऐसे पश्चिम बंगाल के श्री ज्योति बसु जी, समाजवादी विचारों के पुरोधा जिन्हें लोग छोटे लोहिया के नाम से जानते थे ऐसे श्री जनेश्वर जी मिश्र, संगीत के क्षेत्र में अपनी साधना से स्वनामधन्य श्री अश्वत्थ जी, जिन्होंने शिक्षा व संस्कार को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर शैक्षिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त संस्थानों का निर्माण किया एवं स्वयं के द्वारा स्थापित संस्थानों में धर्म-अध्यात्म-संस्कृति सम्बन्धी शिक्षा का प्रावधान किया, स्वयंसेवकों के द्वारा किये जाने वाले विविध कार्यों में जिनका हमेशा तन-मन-धन से सहयोग प्राप्त होता रहा ऐसे श्री शान्ति लाल जी सोमय्या, दलित समाज के जागरण-प्रबोधन के कार्य में अपना जीवन, चिन्तन समर्पित करते हुए, भिन्न मार्ग से चलते हुए अपने सुपुत्र को संघ कार्य के लिए अनुमति प्रदान करने वाले श्रेष्ठ महानुभाव श्री अरुण कांबले जी अन्तिम क्षणों तक कार्यरत रहते हुए अपने जीवन की अन्तिम यात्रा के मार्ग पर प्रस्थान कर गये। कर्नाटक सिने जगत के श्री विष्णुवर्धन जी, व्यक्तिगत भावजीवन से सामाजिक वास्तविकता तक का व्यापक अनुभव रखनेवाले, निर्भीक तथा निस्पृह व्यक्तित्व के धनी, साहित्यकार तपस्वी और ज्ञानपीठ पुरस्कार के विजेता, 92 वर्षीय श्री गोविन्द विनायक उपाख्य विन्दा करन्दीकर जी - ऐसे सामाजिक, राजनीतिक, कला के क्षेत्र में अपने क्रतव्त से सम्मान प्राप्त कई महानुभावों को हमने खोया है।

एसे अविचल भाव से मानै तपस्वी की भाँति अपने जीवन को समपिर्त करने वाले तथा ध्यये पथ को अपने जाज्वल्यमान जीवन से द्यितमान करने वाली विरागी-दीप-मालिका को एवं देश- विदेश में प्राकृतिक एवं मानव-जनित आपदा दुर्घटना में बलि चढे आतकं वाद-उग्रवाद के शिकार बने एसे  सभी दिवगंत बन्ध का हम कृतज्ञता पवूर्क मानै श्रद्धाजंलि अपिर्त करते हैं तथा उन सभी बन्ध के परिवार जनो, सहयात्रियों के अन्त:करण की वदेना के प्रति हादिर्क सहानभूति व्यक्त करते है।

कार्यस्थिति

प्रतिवर्षानुसार मई-जून 2009 में सारे देशभर में 68 स्थानों पर संघ शिक्षा वर्ग सम्पन्न हुए। प्रथम वर्ष के प्रशिक्षण वर्ग प्रान्तों की योजनानुसार एवम् द्वितीय वर्ष के प्रशिक्षण वर्ग क्षेत्रों की योजनानुसार हुए। कुछ क्षेत्रों में जैसे दक्षिण मध्य व पूर्व क्षेत्रों में भाषाओं की कठिनाई को ध्यान में रखकर भाषानुसार वर्गों का आयोजन किया गया।

प्रथम वर्ष 47 स्थानों पर, जिसमें 10,623 शिक्षार्थी 7078 स्थानों से तथा द्वितीय वर्ष 13 स्थानों पर, जिसमें 2581 शिक्षार्थी 2116 स्थानों से सम्मिलित हुए। तृतीय वर्ष के वर्ग में 859 स्थानों से 923 शिक्षार्थी आये थे। प्रथम वर्ष विशेष 7 स्थानों पर, जिसमें 346 शिक्षार्थी 289 स्थानों से आये थे। इस वर्ष दिसम्बर में तृतीय वर्ष विशेष वर्ग का भी आयोजन हुआ था, जिसमें 251 स्थानों से 310 शिक्षार्थी सहभागी हुये। गत वर्ष द्वितीय वर्ष विशेष वर्ग का आयोजन नहीं किया गया। इस वर्ष मई-जून में देशभर में चयनित स्थानों पर द्वितीय वर्ष के विशेष वर्गो का आयोजन होने वाला है।

वर्तमान में जो जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार देशभर में 27089 स्थानों पर 39823 शाखाएं  चल रही हैं। 7356 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन तथा 6949 स्थानों पर संघ मण्डली के रूप में एकत्रीकरण होते हैं।

संख्यात्मक जानकारी कार्यस्थिति को प्रकट करती है। हम गत 3-4  वर्षो से अनुभव कर रहे हैं कि संख्या में घट-बढ़ होती रहती है। थोड़ी स्थिरता अनुभव में आती है। गुणात्मकता की ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। शाखा टोली, उपक्रमशीलता आदि बातों की ओर कार्यकर्ताओं का ध्यान बढ़ रहा है। गत वर्ष में सम्पन्न हुए कार्यक्रम निश्चित रूप से इन बातों का संकेत दे रहे हैं कि हम दृढ़ीकरण व गुणात्मकता की ओर क्रमश: अग्रसर हो रहे हैं।

अपने विभिन्न प्रशिक्षण वर्गो में संख्या के साथ-साथ अधिक स्थानों व अधिक शाखाओं का प्रतिनिधित्व बढ़े इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।

अखिल भारतीय योजना के अन्तर्गत विभिन्न प्रान्तों में हुए सभी अधिकारियों के प्रवास से संगठन के विस्तार एवं दृढ़ता की दृष्टि से चिन्तन की प्रक्रिया को गति प्राप्त हो रही है। विभिन्न प्रान्तों में सम्पन्न हुए कार्यक्रम इस दिशा में सभी स्तरों पर इस प्रक्रिया के गतिमान होने के पर्याप्त संकेत प्रदान कर रहे हैं।

परम पूजनीय सरसंघचालक जी का प्रवास

अपनी परम्परानुसार परम पूज्य सरसंघचालक का दायित्व आने पर माननीय मोहन जी भागवत के प्रवास की योजना देश के प्रमुख स्थानों पर जाने की बनी। इस प्रवास में संगठन की दृ़ढ़ता की दृष्टि से सरसंघचालक प्रणाम का कार्यक्रम एवम् सामाजिक सद्भाव बैठकों का आयोजन हो तथा चयनित स्थानों पर पत्रकार वार्ता हो ऐसा विचार किया गया था।

स्थान-स्थान पर कार्यकर्ताओं ने परिश्रमपूर्वक आयोजन किये। विशेष रूप से दिल्ली,महाकौशल तथा केरल के कार्यक्रम बहुत ही प्रभावी रहे। केरल का कार्यक्रम सम्भवत: आज तक का सबसे विशाल कार्यक्रम रहा है। एक ही स्थान पर लगभग 92,000 गणवेशधारी स्वयंसेवकों की उपस्थिति अपने आप में ही विशेष है। सभी प्रसार माध्यमों ने उचित प्रसिद्धि देते हुए संघ की शक्ति का सम्मान किया है।

आज तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार देशभर के सभी कार्यक्रमों में 260,231 स्वयंसेवकों की गणवेश में तथा प्रचुर मात्रा में माता-भगिनी तथा बन्धुओं की उपस्थिति रही है। प्रकट कार्यक्रमों में भुवनेश्वर तथा तिरुअनन्तपुरम के कार्यक्रम बहुत ही अच्छे स्तर के हुए।

सद्भावना बैठकें :- पन्थ, सम्प्रदाय तथा विभिन्न जाति-बिरादरी के प्रमुखों की बैठकों का भी आयोजन किया गया। 3,000 से अधिक प्रमुख व्यक्ति सम्मिलित हुए।

मुम्बई में विभिन्न भाषा-भाषी समूह रहते हैं अत: वहां पर समूहों का प्रभावी नेतृत्व करने वाले व्यक्तियों की विशेष बैठक का आयोजन किया गया था। जम्मू-कश्मीर की विशेष परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए वहां विशेष प्रकार का आयोजन किया था जिसमें 1,000 से अधिक महानुभाव उपस्थित रहे। 9 स्थानों पर पूज्य सन्तों के सामूहिक रूप
से मिलने के कार्यक्रम सम्पन्न हुए जिनमें 150 पूज्य सन्त उपस्थित रहे। इस प्रकार, सभी स्तर पर संवाद की प्रक्रिया चले यह प्रयास रहा। हम सभी एक ही माता के पुत्र हैं यह भाव प्रकट हुआ। अपने समाज को विभाजित कर टुकड़ों-टुकड़ों में बांटने का प्रयास करने वालों से हमें सावधान रहना चाहिए। ऐसे विभाजनकारी षड्यन्त्रों से अपने समाज की रक्षा हमें करनी चाहिए, यही भाव इन सामाजिक सद्भाव बैठकों में प्रकट हुआ है।

अपने समाज में गलत आस्थाओं के प्रचलन से कई प्रकार की कुरीतियों तथा समस्याओं से प्रभावित समाज कैसे सुरक्षित हो यह हम सबके चिन्तन का विषय है। हम अपने-अपने दायरे में जागरण का कार्य कैसे करें आदि विषय चर्चा में आये। मिन्दर प्रवेश, भेदभाव-मुक्त व्यवहार, कुरीतियों का निर्मूलन, अन्तर्जातीय विवाह, वंचित बस्तियों में सन्त-महन्तों द्वारा प्रबोधन कार्य एवम् स्वधर्म में लौटे लोगों की सम्मानपूर्वक स्वीकृति आदि विषयों पर सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया गया।

समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि स्नेह व आस्था मन में लेकर तथा संघ से बहुत अपेक्षाएं  लेकर आये थे। इसलिये भविष्य में स्थान-स्थान पर अनुवर्तन के प्रयासों को अधिक योजनापूर्वक करना होगा। प्रकट कार्यक्रमों में विशेष रूप से सीमा-सुरक्षा, घुसपैठ का संकट, बढ़ता उग्रवाद, नक्सलवाद, राजनीतिक पटल पर बढ़ता क्षेत्रवाद और उसके परिणामस्वरूप आपसी संघर्ष, अविश्वास, असुरक्षा का वातावरण बनना आदि संकटों की ओर संकेत किया गया। अमेरिका व चीन की विस्तारवादी मनोभूमिका का ध्यान रखना होगा। आर्थिक क्षेत्र में उपभोगवाद से विश्व प्रभावित हो रहा है। दूरगामी दुष्परिणामों को समझते हुए हमारी परम्परागत ग्राम आधारित विकेिन्द्रत व्यवस्था तथा कृषि आधारित रोजगार बढ़ाने वाली नीति बनानी होगी। यही एक मात्र विकल्प है।

आज देश की समस्याओं का समाधान केवल हिन्दुत्व में है और हिन्दू समाज में देशात्मबोध, आत्म-सम्मान की भावना प्रबल करना ही एकमात्र विकल्प है। यही कार्य संघ कर रहा है। यही इस सम्पूर्ण प्रवास का सार संक्षेप है।

पत्रकारों से वार्तालाप के कार्यक्रम भी अच्छे रहे। विशेषत: दिल्ली में सम्पन्न पत्रकार वार्ता सर्वाधिक संख्या वाली रही। सभी प्रसार माध्यमों ने उसमें अच्छा सहयोग दिया है। नागपुर, चण्डीगढ़, तिरुअनन्तपुरम् में वार्ताएं पत्रकारों द्वारा आहूत की गई थीं।

संघ कार्य को एवम् अपने विचारों को समझने के प्रति पूरा विश्व अग्रसर हो रहा है। विश्व के कुछ देशों के प्रतिनिधियों से भी परम पूज्य सरसंघचालक जी का मिलना हुआ। अत्यन्त सकारात्मक ढंग से संघ के विचारों को समझने का प्रयास रहा ऐसा अनुभव है।

अ.भा. महाविद्यालयीन एवं बाल कार्य प्रमुखों की बैठक,

भोपाल :- प्रान्त

महाविद्यालयीन विद्यार्थी प्रमुखों तथा बाल कार्य प्रमुखों की अखिल भारतीय बैठक भोपाल में दिनांक 8 व 9 अगस्त, 2009 को संपन्न हुई। उसमें 38 प्रान्तों से 49 महाविद्यालयीन कार्य के तथा 23 प्रान्तों से 33 बाल-कार्य के प्रमुख कार्यकर्ता उपस्थित रहे। उस समय देशभर में महाविद्यालयीन विद्यार्थियों की 440 शाखा (गत वर्ष से 96 अधिक), साप्ताहिक मिलन 728 (गत वर्ष से 225 अधिक) व संघ मण्डली 191 (गत वर्ष से 26 अधिक)  थीं। बालों के लिये शिविर तथा अन्य संस्कार प्रधान कार्यक्रम एवं महाविद्यालयीन विद्यार्थियों के लिये 4 कार्यक्रम अर्थात् स्वामी विवेकानन्द जयन्ती, अखण्ड भारत संकल्प दिवस, साहसिक कार्यक्रम तथा वर्ष में एकबार शारीरिक प्रधान उत्सव मनाना, सेवा प्रकल्प आदि देखने-दिखाने का क्रम चलाना, कक्षा 10वीं के छात्रों व उनके अभिभावकों से सतत सम्पर्क बनाये रखने की दृष्टि से उनकी अलग-अलग बैठकें करनी चाहिये, इत्यादि विषय तय हुए।

विशेष सम्पर्क योजना :- देश में राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय ख्याति के प्रबद्धुनागरिकों से सम्पर्क हेतु बनी विशेष सम्पर्क याजेना की अ.भा. बठक मुंम्बई मदि. 5, 6 सितम्बर, 2009 को संपन्न हई। 22 प्रांतो के 36 कार्यकर्ता उसमे उपस्थित रहे। इस विशेष श्रेणी के साथ सम्पर्क के लिये प्रशिक्षण की चर्चा इस दो दिवसीय बैठक हुईयोजना की अगली बठक 19-20 मार्च 2010 को दिल्ली में सपंन्न हुई। इस बैठक मे 32 प्रांतो के 66 कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

विशिष्ट शिक्षा संस्थानों के कार्यकर्ताओं की बैठक:- महाविद्यालयीन विद्यार्थी कार्य देशभर में जोर पकड़ रहा है। इसके अन्तर्गत देशभर में व्याप्त प्प्डए प्प्ज्ए केन्द्रीय विश्वविद्यालय जैसे विशिष्ट शिक्षण संस्थानों के कार्यकर्ताओं की बैठक दि. 29, 30 दिसम्बर, 2009 को मुम्बई में संपन्न हुई। देश के 4 प्रान्तों के 22 शिक्षण संस्थानों से 54 कार्यकर्ताओं ने इस बैठक में भाग लिया। इन विशिष्ट संस्थानों में संघ की गतिविधियां बढ़ाने के विषय पर विस्तृत चर्चा और कार्यशालायें हुई।

सामाजिक समरसता अभ्यास वर्ग :

जयपुर, गया तथा भाग्यनगर में सामाजिक समरसता वर्गों का आयोजन किया गया था। विविध क्षेत्रों में कार्य करते हुए सामाजिक विषयों का अध्ययन व उनमें क्रिया-कलाप करने वाले कार्यकर्ताओं को अपेक्षित किया गया था।

समरसता के उद्देश्य से चलने वाले प्रयासों की समीक्षा,

आरक्षण : संवैधानिक स्थिति एवम् आज का यथार्थ, राष्ट्र-विरोधी शक्तियों के षड़यन्त्र, परिवार में और परिवार द्वारा समरसता के प्रयास, ग्राम और समरसता इत्यादि विविध विषयों पर चर्चा-सत्रों का आयोजन किया था। संघ और जन संगठनों के कार्यकर्ता इन वर्गों में उपस्थित रहे। पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर अन्य सभी प्रान्तों के कार्यकर्ता उपस्थित थे। पूर्वोत्तर की विशेष परिस्थिति को ध्यान रखकर अलग से उनका वर्ग होने वाला हैं।

प्रान्त-प्रान्त में सम्पन्न विशेष कार्यक्रम

आशास्पद विद्यार्थी बैठक:- भाग्यनगर

विगत कुछ वर्षो में महाविद्यालयीन विद्यार्थियों में अपना कार्य बढ़ाने की दृष्टि से प्रयास प्रारम्भ हुए हैं। पश्चिम आन्ध्र में स्नातक पाठ्यक्रम में अध्ययनरत छात्रों की सूचियां बनाकर जिला, विभाग स्तरों पर कार्यक्रम आयोजित किये गये। जनवरी 2010 में ऐसे चयनित विद्यार्थियों का दो-दिवसीय अभ्यास वर्ग सम्पन्न हुआ। 107 विद्यार्थी सम्मिलित हुए। इनमें से 30 छात्र अन्तिम वर्ष के थे।

अवकाश प्राप्त एवम् निकट भविष्य में अवकाश प्राप्त होने वाले स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण:- पश्चिम आन्ध्र प्रान्त में ऐसे 200 स्वयंसेवकों की सूची बनी। जनवरी मास में सम्पन्न बैठक में 120 स्वयंसेवक उपस्थित थे। परिणाम अच्छा रहा। 8 स्वयंसेवकों ने पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनने की इच्छा प्रकट की। प्रतिदिन 8-10 घण्टे का समय देने की इच्छा अनेक बन्धुओं ने प्रकट की।

उग्रवाद विरोध दिवस :

भाग्यनगर:- हिन्दू वाहिनी के सहयोग से भाग्यनगर में 17 सितम्बर, 2009 को `उग्रवाद विरोध दिवस´ मनाया गया। इसमें 5,000 युवक सम्मिलित हुए। अधिकांश युवक नये थे। संघ का परिचय भी उनको प्रथम बार ही हुआ।

विभागश: तरुण स्वयंसेवकों का हेमन्त शिविर :

पूर्व आन्ध्र:- 10 वर्ष के अन्तराल के पश्चात् इस वर्ष पूर्व आन्ध्र प्रान्त में विभागश:

तरुण स्वयंसेवकों के द्वि-दिवसीय हेमन्त शिविरों का आयोजन किया गया। नये पुराने स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण, स्वयंसेवकों की सक्रियता, कार्यकर्ताओं की योजकता, व्यवस्था कौशल्य में वृद्धि आदि उद्देश्यों को सामने रखा था। पूरे वर्ष भर अच्छे प्रयास हुए। अच्छा सफल प्रयोग रहा।

पूरे प्रान्त से 870 स्थानों से 5,130 स्वयंसेवक सम्मिलित हुए। इन शिविरों में 90 प्रतिशत पुराने स्वयंसेवक थे, उनमें से 50 प्रतिशत 15 से 25 आयु वर्ग के थे। दोनों समूह एक साथ रहकर प्रभावित हुए। एक और विशेषता रही कि दो श्रेणी रचना का सुनियोजित क्रियान्वयन होने से उसी कालखण्ड में `विश्व मंगल गौ-ग्राम यात्रा´ का

कार्यक्रम भी सुनियोजित सम्पन्न हुआ।

विदर्भ प्रान्त का विशेष बाल शिविर:- 16 से 20 दिसम्बर 2009 को चयनित बालों का शिविर अमरावती में सम्पन्न हुआ। कक्षा 7 से 9 वीं तक की कक्षाओं में पढ़ने वाले नगरीय शाखा के स्वयंसेवक अपेक्षित थे। पूरे प्रान्त से 2300 स्वयंसेवकों का चयन किया गया। चयन हेतु कुछ बिन्दु तय किये थे, जैसे गुरु पूजन व विजयादशमी उत्सव में गणवेश में उपस्थित रहना, प्रतिदिन शाखा में उपस्थित रहकर निर्धारित शारीरिक एवं बौद्धिक कार्यक्रमों का अभ्यास करना आदि। एक माह पूर्व नगरश: सामूहिक अभ्यास हेतु स्वतन्त्र शाखा चलायी गई। चयनित सूची में नाम आने के पश्चात् भी एक नगर से केवल 22 स्वयंसेवक ही चुने जायेंगे यह बताया गया था। इस कारण वे सभी प्रयत्नशील थे तथा आयोजित सभी प्रतियोगिताओं में उत्साह से सहभागी हुए। एक बाल स्वयंसेवक ने 3,200 प्रहार तो एक ने 552 सूर्य नमस्कार निकालकर व्यक्तिगत उच्चांक स्थापित किया। सुभाषित, अमृतवचन, शिविर गीत तथा कम से कम एक अन्य गीत कण्ठस्थ करना था। कई स्वयंसेवकों ने 10-10 सुभाषित कण्ठस्थ किये। वनवासी क्षेत्र के एक स्वयंसेवक ने तो 72 कथाएं तैयार की थीं। अन्त में 1565 स्वयंसेवकों का चयन हुआ, उनमें से 1545 स्वयंसेवक शिविर में पहुंचे। परीक्षा के कारण 20 स्वयंसेवक नहीं आ सके।

आकिस्मक वर्षा के कारण व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हु लेकिन अनुशासन में कोई कमी नहीं आयी। शिविर में 240 स्वयंसेवकों का घोष दल आकर्षण का विषय रहा। शारीरिक कार्यक्रम इतने अच्छे हुये कि कार्यक्रम के पश्चात् नागरिकों की ओर से उत्स्फूर्त तालियां बजीं। प.पू.सरसंघचालक जी की उपस्थिति में समापन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। अनुवर्तन की दृष्टि से प्राथमिक शिक्षा वर्ग में सहभागिता, प्रतिमास अभ्यास वर्ग, वन भ्रमण, विभागश: शिविर आदि योजनाएं बन रही हैं।

महाल प्रभात शाखा, नागपुर का विशेष उपक्रम:- संकल्प एवं नियोजन करें तो एक शाखा क्या-क्या कर सकती है इसका अद्भुत उदाहरण नागपुर की महाल प्रभात शाखा ने प्रस्तुत किया है। प.पू. डॉक्टर जी का पैतृक आवास जिस क्षेत्र में है उसी क्षेत्र में यह प्रभात शाखा चलती है। प. पू. सरसंघचालक जी का 4 मास पूर्व शाखा सन्दर्शन का कार्यक्रम तय हुआ।

2-3 कार्यक्रमों की श्रखला निश्चित कर सूची बनाना, गट व्यवस्था, प्राथमिक बैठकें प्रारम्भ हुईं। बस्ती के नागरिक भी सहभागी बनें इस दृष्टि से प्रतिवेदन 7  चित्रकला स्पर्धा का आयोजन किया गया। विश्व मंगल गौ-ग्राम यात्रा के निमित्त से हस्ताक्षर संग्रह, धन संग्रह, उपयात्रा आदि कार्यक्रमों के माध्यम से घर-घर सम्पर्क की योजना बनायी।  गटश: बैठकें, उपस्थिति सप्ताह, नागरिकों की बैठकें भी आयोजित की गई। 100 नये स्वयंसेवकों की भर्ती भी हुई। 1700 परिवारों में सम्पर्क किया गया। 9 फरवरी, 2010 को प्रत्यक्ष कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। प्रभात शाखा में प.पू. सरसंघचालक जी के साथ स्वयंसेवकों का वार्तालाप कार्यक्रम रखा गया। 222 तरुण उपस्थित रहे।

उसी दिन प्रबुद्ध नागरिकों का एकत्रीकरण किया गया जिसमें 28 नागरिक बन्धु उपस्थित हुए। सायंकाल प्रकट सभा का आयोजन किया गया, जिसमें 261 माताएं और 950 पुरुष मिलाकर 1211 संख्या उपस्थित रही। प.पू. सरसंघचालक जी का पूज्य डॉक्टर जी के जीवन पर भाषण हुआ। एक प्रभात शाखा द्वारा आयोजित यह उपक्रम प्रेरक एवम् अनुकरणीय है।

सूर्यनमस्कार एवम् प्रहार प्रतियोगिता यज्ञ-

उत्तर बंगाल :- उत्तर बंग प्रान्त में निश्चित किये गये सूर्य नमस्कार यज्ञ के 19, 20 व 21 फरवरी, 2010 में से एक दिन के कार्यक्रम में 207 स्थानों की 207 शाखाओं में 5,500 स्वयंसेवकों ने 2,66,006 सूर्यनमस्कार लगाये। मालदा जिले की एक शाखा ने 14895 सूर्य नमस्कार का सर्वोच्चांक रखा। वहीं एक स्वयंसेवक ने 7 घण्टे 10 मिनट तक लगातार सूर्य नमस्कार करते हुये 1,700 का उच्चांक स्थापित किया।

23, 24 व 25 नवम्बर, 2009 के मध्य 128 शाखा स्थानों पर 3000 स्वयंसेवकों ने 17 लाख प्रहार लगाये। उत्तर मुर्शिदाबाद जिले की एक शाखा सबसे अधिक 4,81,536 प्रहार लगाने वाली रही और एक स्वयंसेवक ने सर्वाधिक अर्थात् 37,377 प्रहार लगाये।

चित्तौड़ प्रान्त के प्रौढ़ स्वयंसेवकों का द्वि-दिवसीय शिविर संपन्न हुआ जिसमें 113 स्थानों के 928 स्वयंसेवक सहभागी हुए। श्री रंगा हरि जी व श्री भागय्या जी उपस्थित रहे।वानप्रस्थी योजना, प्रौढ़ स्वयंसेवकों की सामाजिक भूमिका की दृष्टि से यह शिविर उपयुक्त सिद्ध होगा।

कानपुर प्रान्त का महाविद्यालयीन छात्रों का शिविर संपन्न हुआ। पूर्व तैयारी की दृष्टि से अखण्ड भारत संकल्प दिवस, संघ परिचय वर्ग आदि 125 स्थानों पर छोटे-बड़े कार्यक्रम आयोजित किये थे। शिविर में 881 छात्र उपस्थित रहे जिसमें 20: नये थे। प.पू. सरसंघचालकजी और सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले जी द्वारा मार्गदर्शन हुआ। शिविर के पश्चात् 15 नयी शाखाएं, 5 साप्ताहिक मिलन तथा 5 संघ मण्डलियों का शुभारंभ हुआ है। 2 विद्यार्थी विस्तारक बनकर गये तथा 50 विद्यार्थी प्राथमिक शिक्षा वर्ग में सहभागी हुए।

काशी प्रान्त के सोनभद्र विभाग के 4 जिलों में सूर्य नमस्कार प्रतियोगिता सम्पé हुई। इस हेतु 165 कार्यकर्ताओं की योजना की गई। परिणामत: 176 शाखाओं के 10,657 स्वयंसेवकों ने भाग लिया और 3,53,699 सूर्य नमस्कार लगाये।

शाखा दर्शन-

झारखण्ड- एक कार्यकर्ता एक ही शाखा पर लगातार 4 दिन जायेंगे और साथ ही आस-पास के ग्रामों में सम्पर्क हेतु भी जायेंगे यह तय किया था। इस हेतु पूरे प्रान्त में 1 से 4 अक्टूबर तक की अवधि निश्चित की गई। कुल 338 कार्यकर्ताओं द्वारा 319 ग्रामीण शाखाओं पर और समीपवर्ती 294 ग्रामों में सम्पर्क किया गया। परिणामस्वरूप शाखाओं की संख्या 322 से बढ़कर 400 तक पहुंच गई है।

प्रवासी कार्यकर्ताओं की सक्रियता एवम् उत्साहवर्द्धन हुआ है। महाकौशल प्रान्त का महाविद्यालयीन छात्र शिविर - 2008 से निरन्तर प्रयास के द्वारा महाकौशल प्रान्त में महाविद्यालयीन विद्यार्थियों की शाखा, मिलन व संघ मण्डलियों में अच्छी वृद्धि हुई है। सितम्बर 2009 में जिलाश: प्राथमिक शिक्षा वर्गों का आयोजन किया गया। जिसमें 556 विद्यार्थी सम्मिलित हुए। तहसीलश: बैठकों का आयोजन किया गया जिनमें 20,000 छात्रों ने भाग लिया।

29, 30 व 31 जनवरी, 2010 को जबलपुर में महाकौशल प्रान्त का शिविर संपन्न हुआ। छात्रों के साथ ही 52 प्राध्यापक, 80 शिक्षक, 180 अन्य और 1170 छात्र मिलाकर कुल 1482 बन्धु शिविर में सहभागी हुए। विशेषता यह रही कि एक पूर्व एवं एक वर्तमान कुलपति पूर्ण समय उपस्थित रहे।

तहसील कार्यवाह वर्ग - महाकौशल प्रान्त के तहसील कार्यवाहों का 3 दिन का वर्ग 19, 20 व 21 फरवरी, 2010 को मैहर में सम्पé हुआ। 160 तहसील तथा 26 जिला केन्द्रों से 182 कार्यकर्ता उपस्थित रहे। शाखा से सम्बधित कुछ बातों जैसे - मिलन, मण्डली देखकर तथा शाखा टोली की बैठक लेकर आने के लिए बताया था। 70: कार्यवाह उपरोक्त बातें करके आये।

राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा आयोजित सेवा संगम :-

6, 7 व 8 फरवरी, 2010, बंगलौर में सेवा संगम का आयोजन सम्पन्न हुआ। सेवा विभाग का कार्य प्रारम्भ हुए 20 वर्ष पूरे हो गये हैं। उचित समय पर ही इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। 10 विविध अखिल भारतीय संस्थाओं द्वारा देश में आज 1 लाख 56 हजार सेवा कार्य चल रहे हैं। लगभग 60,000 सेवा कार्य ऐसे हैं जो नगर व जिला स्तर पर निर्मित न्यासों द्वारा संचालित किये जाते हैं। ऐसे न्यासों के समन्वय, प्रशिक्षण, प्रचार-प्रसार के उददेश से ही कुछ वर्ष पूर्व राष्ट्रीय सेवा भारती नामक संस्था का निर्माण हुआ है। राष्ट्रीय सेवा भारती के तत्वावधान में ही सेवा संगम का आयोजन किया गया।

बंगलौर में सम्पन्न इस कार्यक्रम में देशभर से 452 संस्थाओं के 930 प्रतिनिधि उपस्थित थे, जिनमें 75 बहिनें थी। उद्घाटन समारोह में पूर्व सरसंघचालक माननीय सुदर्शन जी तथा पूज्य श्री श्री रवि शंकर जी की उपस्थिति प्रेरक रही। बंगलौर के गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में प्रकट कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, परम पूज्य सरसंघचालक माननीय मोहन जी भागवत तथा योगगुरु पूज्य श्री रामदेव जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। कर्नाटक के मुख्यमन्त्री विशेष रूप से उपस्थित थे।

अन्य सत्रों में आदरणीय सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले व श्री मदन दास जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। समारो में माननीय सरकार्यवाह श्री भय्या जी जोशी उपस्थित रहे। यह सेवा संगम भविष्य में कार्यवृद्धि की दृष्टि से मील का पत्थर सिद्ध होगा। संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि का संकल्प लेकर कार्यकर्ता जाएं यही इस समारोह का सन्देश रहा।

सेवा कार्य

उज्जैन में स्वयंसेवकों द्वारा क्षिप्रा नदी की सफाई:- अल्पवर्षा तथा रासायनिक कचरे के कारण क्षिप्रा जैसी पवित्र नदी का प्रवाह बाधित हो गया था, परिणामत: जल संग्रहण क्षमता भी घट गई थी। तब, उज्जैन के स्वयंसेवकों ने समाज को साथ लेकर क्षिप्रा नदी की सफाई के भगीरथ-कार्य को करने का संकल्प लिया।

प्रथम चरण में 900 मीटर का सफाई कार्य सम्पन्न किया गया। स्वयंसेवकों के इस कार्य में उज्जैन महानगर की विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक, सेवा भावी संस्थाओं को सहभागी किया गया। 190 स्वयंसेवी संगठनों के सहयोग से 11,950 श्रमदानी कार्यकर्ताओं का योगदान रहा। 21 दिन यह अभियान चला। उसमें 41,998 घन मीटर गहरीकरण किया गया। अपने आप में यह एक अभिनव प्रयोग है।

आन्ध्र में बाढ़ का प्रकोप:- अक्टूबर 2009 में भीषण बाढ़ से दो जिले कार्नुल तथा पालमूर (महबूब नगर) अति प्रभावित हुए। कहा जाता है कि 100 वर्षो के इतिहास में ऐसी बाढ़ कभी नहीं आयी। सामान्यत: ये दोनों जिले हमेशा सूखाग्रस्त रहते हैं। इस बाढ़ में करोड़ों की सम्पत्ति जलमय हुई, 200 जन तथा अनेक पशु इस बाढ़ के शिकार बने। सेवा भारती आन्ध्र-प्रदेश के तत्वावधान में स्वयंसेवकों ने त्वरित राहत कार्य प्रारम्भ किया। 156 ग्रामों में भोजन तथा जीवनावश्यक सामग्री की व्यवस्था की गई। लगभग 65,500 परिवारों तक राहत सामग्री पहुंचायी गई। 83 ग्रामों में चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करायी। राहत कार्य में कुल 2,800 कार्यकर्ताओं ने काम किया। 8.71 करोड़ रुपये व्यय किये गये। विभिन्न सामाजिक, सेवाभावी संस्थाओं के सहयोग से ही यह हो पाया।

राष्ट्रीय परिदृश्य

देश का राजनैतिक परिदृश्य चिन्ता का कारण बन रहा है। जम्मू-कश्मीर के अन्दर कुछ वर्षो से शान्ति का वातावरण बन रहा था, परन्तु लगता है कि पुन: एक बार भारत विरोधी ताकतें और अलगाववादी शक्तियां सक्रिय हो रही हैं। और, यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि केन्द्र और जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार की नीतियां अप्रत्यक्ष रूप से इन ताकतों को बल प्रदान करने में लगी हैं। परिणामत: राष्ट्र हितों को दुर्बल करने वाली सिद्ध हो रही हैं।

न्यायमूर्ति सादिर अहमद समिति द्वारा राज्य को अधिक स्वायत्तता देने की सलाह अलगाववादी तत्वों को बल प्रदान करेगी। इस समिति के निष्कर्षो की समीक्षा कर उनको खारिज करना चाहिए। वास्तव में, धारा 370 द्वारा प्रदत्त विशेष अधिकारों को समाप्त कर समग्र देश के साथ जोड़ने का प्रयास होना चाहिए, न कि स्वायत्तता के नाम पर उन विशेष अधिकारों को बनाये रखने की कसरत।

केन्द्र सरकार का रवैया विपरीत ही लगता है। आतंकवादी, अलगाववादी गतिविधियां बढ़ रही हैं और घुसपैठ में भी तेजी आयी है। परन्तु, दूसरी ओर सरकार घाटी से सेना हटाकर राष्ट्र विरोधी ताकतों के मनोबल को बढ़ाने का ही काम कर रही है।  कई दशकों से राज्य और केन्द्र सरकारों की उपेक्षा से पश्चिमी पाकिस्तान से आए हुए पीड़ित शरणार्थी, सुरक्षा के अभाव में पलायन के लिए मजबूर घाटी से आये हुए कश्मीरी पण्डित तथा अन्यान्य कारणों से सीमावर्ती क्षेत्रों से जिनको विस्थापित होना पड़ा ऐसे हिन्दू बान्धवों की स्थिति चिन्ताजनक बनी हुई है। लगता है कि राज्य सरकार अपने दायित्व के प्रति गम्भीर नहीं है। केन्द्रीय गृहमन्त्री पाक-व्याप्त कश्मीर में छिपे हुए आतंकियों सहित अन्य लोगों को वापस आने का निमन्त्रण दे रहे हैं। पुनर्वास के नाम पर समग्र सहयोग देने की चेष्टा हो रही है।

देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने नक्सलियों के विरुद्ध सशस्त्र कार्यवाही शुरू करके केन्द्र और सम्बन्धित राज्य सरकारों ने सराहनीय कार्य किया है। इस कार्यवाही को दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ाना चाहिए और नक्सली ताकतों को पूर्णरूप से समाप्त करना चाहिए। विकास के अभाव को नक्सलियों की वृद्धि का कारण बताने वाले लोग एक मौलिक सत्य को भूल जाते हैं कि वास्तव में नक्सली ही विकास के शत्रु हैं। इसीलिए विकास और नक्सलवाद को जोड़कर देखना गलत सोच का ही परिचायक है। सराहनीय रूप से नक्सल विरोधी कार्यवाही आगे बढ़ाते समय गृहमन्त्री द्वारा नक्सलियों के साथ वार्ता की बात करना अत्यन्त अनुचित है। अनुभव यही बताता है कि हर बार सरकारों की इस वार्ता के आºवान के मौके का लाभ उठाकर नक्सली फिर से सशक्त हुए हैं और अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाया है।

पाकिस्तान के साथ वार्ता करने का भारत सरकार का एकपक्षीय निर्णय भी देश हित के अनुकूल नहीं है। मुम्बई के 26/11 के आतंकवादी हमले के बाद जब तक पाक सरकार आतंकवाद पर कार्यवाही नहीं करती तब तक वार्ता पुन: प्रारम्भ नहीं करने का संकल्प अपनी सरकार ने लिया था। आज भी पाकिस्तान सरकार मुम्बई आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार ताकतों पर कार्यवाही करने से इन्कार कर रही है। भारत के द्वारा दिये गये तमाम साक्ष्यों का उपहास कर रही है। पाक स्थित आतंकवादियों ने हाल में ही मुजफ्फराबाद में खुली सभा करके भारत पर जिहाद जारी रखने की घोषणा की है।

उनको रोकने का कोई भी प्रयास पाकिस्तान सरकार की ओर से नहीं हुआ है। फिर भी, वार्ता शुरू करने के सरकार के निर्णय से लगता है कि किसी बाहरी ताकत के दबाव में आकर भारत सरकार काम कर रही है। यह देश हित के लिए घातक होगा।

पाकिस्तान-अफगानिस्तान क्षेत्र में निर्माण हो रहीं परिस्थितियों से अपने आपको बचाने के लिए ये पश्चिमी ताकतें भारत को बलि का बकरा बनाना चाहती हैं। भारत सरकार को इस षड्यन्त्र से अपने आपको बचाना चाहिए और पाकिस्तान-अफगानिस्तान संघर्ष के अपने देश के ऊपर होने वाले परिणामों की तरफ सतर्कता से ध्यान देना चाहिए।

इसी प्रकार की सतर्कता उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में रखना अत्यन्त आवश्यक है जहां  पर कि चीन की आक्रमणकारी गतिविधियां तेजी से चल रही हैं। लÌाख के प्रशासनिक अधिकारी द्वारा की गई जांच में यह बात निकल कर आई है कि चीन हमारी सीमाओं के क्षरण में लगातार लगा है और नीति के चलते धीरे-धीरे भारत की भूमि पर कब्जा जमाता जा रहा है। अरुणाचल पर उसका दावा यथावत् है और अपने देश के प्रधानमन्त्री जी के ईटानगर प्रवास का विरोध करने तक उसकी निर्लज्ज दुराक्रमण वृत्ति बढ़ गई है। भारत चीन से सटी हुई सीमा की सम्पूर्ण सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे।

परम पूज्य दलाई लामा एवं लाखों के तिब्बती समाज को भारत में प्रवेश किये 50 वर्ष पूर्ण हो गये हैं, परन्तु उनकी समस्याओं एवं मांगों को चीन सरकार लगातार ठुकराती जा रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की सरकार भी इस विषय में मौन ही रहती आयी है। लाखों तिब्बतियों को आतिथ्य देने वाले भारत की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह चीन सरकार से इन विस्थापितों के विषय में और तिब्बत की स्वायत्तता के विषय में सक्रिय वार्ता करे। धार्मिक संस्थानों में शासन का बढ़ता हस्तक्षेप - व्यवस्थापन ठीक करने को निमित्त बनाकर सरकारी तन्त्र का धार्मिक संस्थानों में हस्तक्षेप बढ़ रहा है। धार्मिक गतिविधियों की निर्णय प्रक्रिया प्रभावित की जाती है जो कि सर्वथा अनुचित है। विशेष रूप से हिन्दु समाज के धार्मिक संस्थान प्रभावित हो रहे हैं।

न्यासी मण्डल में शासकीय प्रतिनिधि की उपस्थिति, वहां पर दान के रूप में प्राप्त होने वाले धन का उसी धर्म के तीर्थक्षेत्र के विकास हेतु उपलब्ध न होना। संक्षेप में कहना हो तो गतिविधियों में हस्तक्षेप कर जन सामान्य की भावनाओं को ठेस पहुंचाने से शासन व्यवस्था को दूर रहना चाहिए, अन्यथा जन-आक्रोश प्रकट होगा और केरल के गुरवायुर मिन्दर की घटना की पुनरावृत्ति होती रहेगी (शासन को मुस्लिम पन्थानुयायी न्यासी की नियुक्ति वापस लेनी पड़ी)।

धार्मिक आधार पर आरक्षण - रंगनाथ मिश्रा आयोग ने मतान्तरित ईसाई एवम् मुस्लिमों को अनुसूचित जाति की सूची में जोड़ने की संस्तुति की है। इस संस्तुति के पीछे केवल शिक्षा और नौकरी में स्थान पाना मात्र ही नहीं अपितु वे आरक्षित स्थानों पर चुनाव लड़ने का प्रावधान भी चाहते हैं।

हिन्दू समाज के अन्तर्गत विभेद की स्थिति को देखते हुए संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित जाति तथा जनजातीय बन्धुओं का विकास सुनिश्चित करने के उÌेश्य से आरक्षण का प्रावधान किया है। इस भावना की रक्षा करनी होगी।

आन्ध्र के उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर फैसला देते हुए ऐसी मांग को अस्वीकार किया है। अनुसूचित जाति आरक्षण बचाओ मंच के तत्वावधान में व्यापक जन-जागरण प्रारम्भ हुआ है। सामाजिक नेतृत्व, सांसद-विधायक, साहित्यकार, लेखक,चिकित्सक, अधिवक्ता, अवकाश प्राप्त अधिकारी, समाजसेवी आदि बड़ी संख्या में उपरोक्त मंच के द्वारा आयोजित प्रदर्शन में सहभागी हो रहे हैं।

हरिद्वार में संपन्न राष्ट्र रक्षा सम्मेलन फोरम फॉर इण्टीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी द्वारा राष्ट्र-रक्षा सम्मेलन में 700 से अधिक संख्या में विशेषज्ञ सम्मिलित हुए। प्रशासकीय सेवा व सुरक्षा से सम्बंधित विशेषज्ञों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। दि. 9, 10 मार्च को सम्पé इस सम्मेलन में पुणे की घटना (जिसने एक बार फिर मुम्बई हमले के जख्मों को ताजा कर दिया) के साथ -साथ वर्तमान सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति पर भी चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने अपने-अपने अध्ययन-पत्र प्रस्तुत किये। शासन, स्वयंसेवी संस्थाओं, वैज्ञानिकों, सुरक्षा से सम्बन्धित संस्थाओं की भूमिका पर विशेषज्ञों ने अपने विचार, बृहद् चिन्तन, तज्ञों के अभिमत, दृष्टिकोण प्रस्तुत किये। आवश्यकता है कि आयोजित सम्मेलन में आये हुए सुझावों एवम् अभिमतों को केन्द्र सरकार गम्भीरता से ले।

मणिपुर की वर्तमान चिन्ताजनक स्थिति - मणिपुर की वर्तमान बिगड़ी हुई परिस्थिति के कारण देशभर की जनता चिन्तित है। 1980 से हुई अनियिन्त्रत उग्रवादी घटनाओं ने वहां के सामान्य जन-जीवन को भी संकट में ला दिया है। 2005 में बहुमूल्य ग्रन्थों और पाण्डुलिपियों का केन्द्रीय पुस्तकालय जला दिया गया। गोविन्दजी तथा इम्फाल के मिन्दरों में बम विस्फोट कर हिन्दुओं की हत्या की गई। उग्रपिन्थयों के आदेशानुसार 2009 जुलाई से 2010 जनवरी तक हिन्दू क्षेत्र की सभी शिक्षण संस्थाओं को बन्द रखा गया और चार लाख से भी अधिक विद्यार्थियों का भविष्य संकट में आ गया।

इस प्रकार मणिपुर की वैष्णव-हिन्दू जनता को मणिपुर छोड़ने को बाध्य किया जा रहा है। काश्मीर की घाटी के बाद मणिपुर दूसरा प्रान्त है जहां से हिन्दू लोग लगातार पलायन कर रहे हैं। उग्रपिन्थयों द्वारा अवैध वसूली के कारण सभी प्रकार का आर्थिक विकास अवरुद्ध हो गया है। सुरक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर हो गई है कि राजभवन और मुख्यमन्त्री के दफ्तर में भी विस्फोट हुआ। केन्द्रीय गृहमन्त्री महोदय ने भी वहां की स्थिति की गम्भीरता स्वीकार की है।

हमारा सभी राष्ट्रवादी शक्तियों, केन्द्र एवं राज्य सरकारों से आग्रह है कि मणिपुर की परिस्थिति को सामान्य करने के लिये सभी सम्भव प्रयास करें।

विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा - ईधन मूल्य वृद्धि के कारण जिस प्रकार पूरी अर्थव्यवस्था के ही, विशेषकर सामान्य व्यक्तियों के जीवन-यापन के लिये लगने वाले व्यय की वृद्धि के सन्दर्भ में भय व आशंका व्यक्त की जा रही है उससे जीवन की एकांगी व पृथगात्म दृष्टि के कारण निर्माण होने वाले संकट एक बार फिर चर्चा में आ गये है। सम्पूर्ण विश्व के लिये तारणहार समग्र व एकात्म भारतीय दृष्टि ही है यह बात अब सभी के ध्यान में आ रही है, इस दृष्टि से देश में हाल ही में संपन्न `विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा´ कार्यक्रम का उल्लेख उचित रहेगा।

देश के प्रमुख सन्तों द्वारा आयोजित तथा विश्व हिन्दू परिषद, गायत्री परिवार, पतंजलि योगपीठ सहित देश के अनेकविध संगठनों द्वारा पुरस्कृत विश्व मंगल गौ-ग्राम यात्रा इस वर्ष का विशेष कार्यक्रम रहा। गौ-रक्षा के सन्दर्भ में व्यापक जनजागरण, कृषि क्षेत्र एवं पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने हेतु व्यापक ग्राम-सम्पर्क और नगरवासियों के अन्त:करण में ग्राम के प्रति गौरव व सम्मान का भाव जागृत हो यह प्रयास इस यात्रा का मुख्य उददेश आयोजकों की कल्पना में था।

यह यात्रा पूर्णत: एक सकारात्मक आन्दोलन के रूप में रही। न तो प्रशासन के सम्मुख `याचना´ को लेकर जाने वाला और न ही संघर्ष का शंखनाद करने वाला अपितु नगर-ग्राम-वनवासी सभी को जगाने वाला यह व्यापक आन्दोलन रहा।

वास्तव में, कहा जाये तो प्रकृति, गौ-ग्राम से सम्बन्धित वर्तमान संकट के प्रति जागरण तथा गौ-ग्राम के संरक्षण और समर्थन में ही `विश्व का मंगल´ है। यह सन्देश प्रसारित करने के उÌेश्य से आयोजित यह यात्रा इन मापदण्डों पर सफल सिद्ध हुई।  8,35,67,041 नागरिकों के हस्ताक्षर और यात्रा व उपयात्राओं के द्वारा 2,33,400 ग्रामों में
कार्यक्रमों का आयोजन तथा 4,11,737 ग्रामों तक सम्पर्क इस यात्रा की सफलता को दर्शाता है।

मुख्य यात्रा में 492 स्थानों पर आयोजित सभाओं में 11,32,117 माता-भगिनी एवम् बन्धु उपस्थित हुए। हस्ताक्षर संग्रह में 75,668 ईसाई तथा 10,73,142 मुस्लिम मतावलिम्बयों के हस्ताक्षर होना यात्रा के प्रति व्यापक समर्थन को प्रदर्शित करता है। 201 सांसद तथा 867 विधायक बन्धु-भगिनियों ने हस्ताक्षर कर अपना समर्थन प्रकट किया है। मुख्य-यात्रा देश के सभी राज्यों का भ्रमण करती हुई 108 दिनों में पूर्ण हुई।

देश के सभी राज्यों में उपयात्राओं का आयोजन किया था। 2,33,400 स्थानों पर 1,48,43,274 नागरिकों की उपस्थिति में सभाएं हुईं। 26,000 किमी. दूरी का मार्ग रहा। आयोजन में 9,271 पूर्णकालीन और 1,41,035 अन्य कार्यकर्ता मिलकर 1,50,306 कार्यकर्ता सम्मिलित हुए।

कुरुक्षेत्र से 28 सितम्बर, 2009 को प्रारम्भ होकर 17 जनवरी, 2010 को नागपुर में इस यात्रा का समापन हुआ। जाति, सम्प्रदाय, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक मान्यताओं की संकुचित भावनाओं से ऊपर उठकर एकात्मता एवम् समरसता का दर्शन इस यात्रा में हुआ। यह इस यात्रा की विशेषता रही।

दिनांक 31 जनवरी, 2010 को विभिन्न सामाजिक-धार्मिक-सम्प्रदायों के महानुभावों के प्रतिनिधित्व वाला 18 बन्धुओं का प्रतिनिधि-मण्डल महामहिम राष्ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभाताई पाटिल जी से मिला तथा उन्हें हस्ताक्षर समर्पण द्वारा जनभावनाओं से अवगत कराया।

आयोजकों सहित सभी भलीभांति जानते हैं कि इस दिशा में यात्रा एक चरण मात्र है और यह पर्याप्त नहीं है। हमारा उददेश पूर्ण हो इस दिशा में अधिक परिश्रमपूर्वक प्रयास करने होंगे।

आवाहन

अपने कार्य की सफलता न तो अनुकूल-प्रतिकूल वातावरण पर निर्भर करती है और न ही केवल कार्यपद्धति पर। समर्पित और प्रतिबद्ध कार्यकर्ता किसी भी परिस्थिति में परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। आज तो सर्वत्र अनुकूलता का वातावरण है किन्तु बिना परिश्रम के कोई भी कार्य सफल नहीं होता, सफलता हेतु मूल्य चुकाना ही पड़ता है। सहजता से, निरहंकारी वृत्ति से, मुस्कराते हुए अपने स्वयं स्वीकृत मार्ग पर निरन्तरता और आत्मविश्वास के साथ चलते रहे यही हम सबसे अपेक्षा है, यही पुरुषार्थ है।

स्वामी विवेकानन्द जी के उन शब्दों का स्मरण करें, जिनमें वे कहते हैं कि वे भीषण की पूजा करते हैं और संकटों में जीवित रहना उन्हें प्रिय है। स्नायुओं में यौवन की जोशीली शक्ति तथा नेत्रों में आदर्शवाद की चमक लिए हुए सम्मोहनों एवम् प्रतिकूलताओं के सभी तूफानों में सु-स्थिर खडे़ रहकर अपने चारों ओर प्रेरणा की किरणें विकीर्ण करते हुए विजयिष्णु भाव से आगे बढ़ते जाते हैं। जब तक उन्हें अपने स्वप्नों का लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता, वे एक के बाद दूसरी सफलता को प्राप्त करते हुए आगे ही बढ़ते जाते हैं।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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