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आदिवासी समूहों के बीच अपनी छवि सुधार के प्रचार प्रदर्शन में ही खर्च किया गया है

Posted on 25 November 2018 by admin

भारत राष्ट्र जहां कल भारतीय गणराज्य का संविधान स्थापना दिवस मना रहा है वहीं कल संविधान द्वारा उपेक्षित दलित व शोषित जातियों को सशक्त करने की संवैधानिक भावना व चेतना को वर्तमान की भाजपा नीत सरकारें, उनके लिए आवंटित बजटीय समर्थन को चिन्हित योजनाओं में नहीं खर्च कर, अपने प्रचार व प्रदर्शन में खर्च कर रही हंै।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अभिषेक राज ने आज जारी बयान में कहा कि दलित आदिवासियों के लिए 2016 मंे गठित एससी/एसटी हब योजना जिसमें 2020 तक खर्च हेतु 490 करोड़ रूपये आवंटित थे इसमें से मात्र 72 करोड़ रूपये ही अभी तक खर्च हो पाये हैं जिसमें से मात्र 7 से 8 करोड़ रूपये ही चिन्हित दलित आदिवासी समूहों पर खर्च हो पाये हैं बाकी राशि भाजपा सरकारों द्वारा दलित आदिवासी समूहों के बीच अपनी छवि सुधार के प्रचार प्रदर्शन में ही खर्च किया गया है।
प्रवक्ता ने कहा कि अनुसूचित जातियों व जनजातियों को सशक्त व समृद्ध करने के संविधान द्वारा प्रदत्त प्रयासों की बखिया उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा तब उधड़ती नजर आयी जब समस्त प्रदेश में चारों तरफ दलितों पर प्रताड़ना के समाचार आने लगे। वाराणसी में एक दलित बस्ती जबरन खाली करा दी गयी, कौशाम्बी में एक दलित बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया, जौनपुर में पान खाने पर एक दलित युवक का हाथ तोड़ दिया गया, आजमगढ़ में भाजपा का झण्डा लगी गाड़ी में एक दलित किशोरी का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार किया गया, 19 नवम्बर को कानपुर आईआईटी के दलित प्रोफेसर का उत्पीड़न किया गया, केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर द्वारा जयपुर में दलित के घर भोजन करने के कार्यक्रम में भाजपा नेत्री सुमन शर्मा से भोजन पकवाया गया और कन्नौज में एक दलित शिक्षा मित्र का इस कदर उत्पीड़न किया गया कि उसने मजबूर होकर फांसी लगा ली।
दलितों पर हो रहे इस निर्मम अत्याचार के माहौल में भी भाजपा दलितों को जातियों व उपजातियों में बांट अपना वोट बैंक बना व दलित प्रेम दिखा अपनी राजनीतिक बिसात पर गोट बिछाने हेतु दलित एकता को खण्डित कर जातियों एवं उपजातियों का सम्मेलन लखनऊ में कर रही है।
प्रवक्ता ने कहा कि संविधान व उसकी आत्मा द्वारा प्रेरित भारतीय समाज का समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष व लोकतंत्रात्मक भावना को आहत करते हुए भाजपा का यह प्रयास, भारतीय समाज की विविधता की शक्ति को विभेदित करते हुए एक अस्मिता को दूसरी अस्मिता के विरूद्ध खड़ा करना, भारतीय राष्ट्र, उसकी शक्ति व उसकी एकता को खण्डित करने जैसा है।

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