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मालिक के राग में राग मिलाना ही उसका प्रमुख कर्तव्य है

Posted on 22 October 2018 by admin

भारतीय केन्द्रीय जांच एजेंसी (सी0बी0आई0) केन्द्र सरकार का पालतू तोता है अपने मालिक के राग में राग मिलाना ही उसका प्रमुख कर्तव्य है चाहे कानून का शासन और उसके द्वारा स्थापित संस्थाएं और उनकी मर्यादा भले ही तार-तार हो जाये, यह बात तब साबित हुई जब उसे एक अभूतपूर्व स्थिति का सामना करते हुए अपने ही स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के विरूद्ध घूस लेने व आपराधिक षडयन्त्र का मुकदमा, मोईन कुरैशी के मनी लाण्ड्रिंग केस के मामले में जांच के घेरे में चल रहे एक कारोबारी सतीश सना से दो करोड़ रूपये रिश्वत लेने का मामला 15 अक्टूबर 2018 को दर्ज करना पड़ा।
राकेश अस्थाना प्रारम्भ से ही विवादास्पद रहे हैं। अस्थाना 1984 बैच के गुजरात कैडर के आई.पी.एस. अधिकारी हैं। ये 1996 में चारा घोटाले में लालू यादव को गिरफ्तार कर चर्चा में आये। इन्होने वर्ष 2002 में गुजरात के गोधरा काण्ड, अहमदाबाद बम ब्लास्ट व आशा राम केस के जांच का नेतृत्व किया था। यह अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर भी रह चुके हैं।
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता डा0 उमाशंकर पाण्डेय ने आज जारी बयान में कहा कि राकेश अस्थाना मोदी नीत भाजपा सरकार के विश्वस्त सीबीआई अधिकारी रहे हैं। सरकार और अस्थाना के बीच का यह गठबन्धन राकेश अस्थाना के स्पेशल डायरेक्टर के रूप में इनकी नियुक्ति के सम्बन्ध में नियमों एवं प्रक्रिया को ताक पर रखने से उजागर होता है।
स्पेशल डायरेक्टर पद पर इनकी नियुक्ति को ‘कामन काज’ नामक सामाजिक संगठन ने कोर्ट में चुनौती दी थी क्योंकि अस्थाना का नाम 2011 के स्टर्लिंग बायोटेक मनी लाण्ड्रिंग केस का आधार बनी डायरी में पाया गया था।
अस्थाना की नियुक्ति के लिए गठित समिति में सेन्ट्रल विजिलेन्स कमिश्नर के.वी. चैधरी थे जिनका खुद का नाम सहारा-बिरला डायरी की जांच में आया था। तत्कालीन सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने अस्थाना की नियुक्ति पर आपत्ति जतायी थी। दिल्ली पुलिस स्टेबलिसमेंन्ट एक्ट जिसके अधीन सी.बी.आई. का संचालन होता है में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सुपरिटेन्डेन्ट आफ पुलिस से ऊपर की नियुक्तियों में निदेशक की सहमति आवश्यक है। सहमति तो दूर निदेशक की आपत्ति के बाद भी राकेश अस्थाना की स्पेशल डायरेक्टर के पद पर नियुक्ति मोदी नीत केन्द्र सरकार द्वारा, पूर्व में किये गये सहयोग का पुरस्कार लगती है।
राकेश अस्थाना अप्रैल 2016 में सीबीआई एडीशनल डायरेक्टर पद पर नियुक्त हुए। 2 दिसम्बर 2016 से 18 जनवरी 2017 तक अनिल सिन्हा के आफिस छोड़ने के बाद इन्हें अन्तरिम निदेशक बनाया गया। जबकि, सीबीआई ने सेकेण्ड इन कमाण्ड रहे आर.के. दत्ता को सीबीआई निदेशक बनना था। इसके दो दिन पूर्व ही आर.के. दत्ता का स्थानान्तरण गृह मंत्रालय में विशेष सचिव पद पर कर दिया गया। ऐसा दशकों बाद पहली बार हुआ कि अपने कृपापात्र अधिकारी को सीबीआई निदेशक पद देने के लिए सीबीआई जैसी महत्वपूर्ण संस्था का पूर्णकालिक निदेशक नहीं नियुक्त किया गया। ज्वाइन्ट सेक्रटरी स्तर के अधिकारी को विशेष सचिव स्तर का उच्च पद दे समायोजन मूलतः राकेश अस्थाना को पदस्थापित करने का ही प्रयास था।
इस मामले का दुबई सम्बद्ध मध्यवर्ती व्यक्ति मनोज प्रसाद व उसके अनुज सोमेश्वर प्रसाद के अनुसार इसमें समत कुमार गोयल जो भारतीय खुफिया एजेंसी ‘राॅ’ के पश्चिमी एशिया डेस्क के प्रभारी हैं उनका नाम भी लिया गया है जबकि एफआईआर में उनका नाम नहीं है।
प्रवक्ता ने कहा कि राकेश अस्थाना अपने पद का बेजा प्रयोग करते हुए वेस्ट बंगाल कैडर के आईएएस अधिकारी भास्कर खुलबे जो प्रधानमंत्री तथा प्रधानमंत्री कार्यालय के बहुत ही विश्वस्त अधिकारियों की सूची में सम्मिलित थे और प्रमुख सचिव पी0के0 मिश्रा के बहुत ही खास थे उस वक्त के स्थानान्तरण एवं नियुक्तियों में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका जगजाहिर है। जिनका नाम कोयला घोटाले में जांच के घेरे में आया था। अस्थाना ने भास्कर खुलबे को अपराधी बनाने के स्थान पर उनके सम्बन्धों से प्रभावित होते हुए गवाह के रूप में दर्ज किया था।
प्रवक्ता ने कहा कि राकेश अस्थाना की नियुक्ति, अन्तरिम निदेशक पद पर उनकी प्रोन्नति व नियुक्ति समिति का नेतृत्व एक दागी व्यक्ति तत्कालीन सेन्ट्रल विजिलेन्स कमिश्नर के.वी. चैधरी के हाथों में देना। तत्कालीन व वर्तमान सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की संस्तुति न लेना, उनके आपत्ति को खारिज कर नियमों एवं प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ाना यह साबित करता है कि मोदी नीत केन्द्र सरकार सीबीआई को अपने राजनीतिक एजेण्डा को लागू करने का राजनीतिक हथियार बनाना चाहती थी।
वर्तमान मोदी सरकार द्वारा भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ इन संस्थानों का इस तरीके से व्यक्तिवादी एवं राजनीतिक हितों को साधने का प्रयोग इन संस्थानों की गरिमा, इनकी कार्य संस्कृति को न सिर्फ प्रभावित करता है बल्कि यह संविधान के शासन की शुचिता एवं भारतीय लोकतंत्र के आधार को अघात पहुंचा कमजोर करने का प्रयास करता है। वर्तमान सरकार काल में निर्वाचन आयोग, सतर्कता आयोग, सीबीआई एवं राॅ जैसे संवेदनशील इंटेलीजेंस एजेंसी का केन्द्र सरकार द्वारा राजनीतिक प्रयोग देश व उसकी आत्मा के साथ छल जैसा है।

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