मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की सहभागिता

Posted on 24 August 2018 by admin

18 अगस्त से 20 अगस्त तक मॉरीशस के पाय नामक स्थान में स्वामी विवेकानन्द अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन केन्द्र पर चलने वाले तीन दिवसीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रोफेसर सदानन्द प्रसाद गुप्त के नेतृत्व में पाँच सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल ने प्रतिभागिता की। इस प्रतिनिधि मण्डल के अन्य सदस्य थे - डॉ0 राजनारायण शुक्ल, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ, डॉ0 प्रदीप कुमार राव, सदस्य, कार्यकारिणी, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान, प्रोफेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह, सदस्य, कार्यकारिणी, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान तथा श्री शिशिर, निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान। श्री शिशिर प्रतिनिधि मण्डल के संयोजक रहे।
18 से 20 अगस्त, 2018 तक चलने वाले विश्व हिन्दी सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था ’हिन्दी विश्व और भारतीय संस्कृति’। सम्मेलन का उद्घाटन 18 अगस्त को प्रातः दस बजे हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे मॉरीशस गणराज्य के प्रधानमंत्री माननीय प्रवीण कुमार जगन्नाथ। समारोह में भारत की विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज तथा मॉरीशस गणराज्य की शिक्षा एवं मानव संसाधन, तृतीयक शिक्षा तथा वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्री श्रीमती लील देवी दूकन लछमन की विशिष्ट उपस्थिति थी। समारोह में मॉरीशस गणराज्य के पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अनिरुद्ध जगन्नाथ की प्रेरणाप्रद उपस्थिति भी रही।
उद्घाटन के उपरांत 18 और 19 अगस्त तक कुल आठ सत्रों में आठ विषयों पर चर्चा हुई। 18 अगस्त को कुल चार समानान्तर सत्र चले जिनमें हिन्दी संस्थान के प्रतिभागी सभी सत्रों में पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार सम्मिलित हुए। प्रथम समानान्तर सत्र ’भाषा और लोक संस्कृति के अन्तः सम्बन्ध’ विषय पर आयोजित था। इस सत्र में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से महाराणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जंगल घूसड़ के प्राचार्य डॉ0 प्रदीप कुमार राव ने प्रतिभाग किया। उन्होंने चर्चा में भाग लेते हुए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से निम्नांकित चार अनुशंसाएँ कीं -
1- लोक कथाओं, लोक गीतों इत्यादि के प्रकाशन को प्रोत्साहित किया जाय।
2- विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्व विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में लोक संस्कृति और लोक साहित्य का समावेश किया जाय।

3- लोक संस्कृति तथा लोक भाषा की शोध परियोजनाओं को वरीयता दी जाय।
4- हिन्दी भाषा एवं साहित्य के विकास के लिए कार्यरत संस्थाएँ ऐसी शोध परियोजनाओं को अपनी कार्य योजना का हिस्सा बनाएँ।
उपर्युक्त चार अनुशंसाओं में से ऊपर की तीन अनुशंसाएँ सम्मेलन द्वारा स्वीकार कर ली गयीं।
’प्रौद्योगिकी के माध्यम से हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का विकास’ विषय पर केन्द्रित द्वितीय सत्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डॉ0 योगेन्द्र प्रताप सिंह ने भाग लिया। डॉ0 योगेन्द्र प्रताप सिंह ने चर्चा में भाग लेते हुए निम्नांकित सुझाव दिए -
1- सरकारी कार्यालयों के निमित्त कम्प्यूटर खरीदने पर देवनागरी कुंजीपटल को अनिवार्य किया जाय।
2- भारत में खरीदे जाने वाले कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर अनिवार्य रूप से हिन्दी भाषा तथा देवनागरी लिपि के लिए अनुकूलित हों।
3- फॉण्ट की परस्पर परिवर्तनीयता को उपयोगी बनाने हेतु देवनागरी के फॉण्ट का व्यापक स्तर पर मानकीकरण किया जाय जिससे टंकित सामग्री भेजने में फॉण्ट परिवर्तित न हो जाये। इसके लिए सरकारी तथा प्रकाशन से सम्बन्धित सभी फॉण्ट निर्माताओं को उस मानक के अनुसार फॉण्ट निर्माण हेतु निर्देशित किया जाय। सी-डैक ख्ब्.क्।ब्, के सॉफ्टवेयर को अपडेट करने की आवश्यकता है जिससे वह उपयोगी हो सके।
उपर्युक्त अनुशंसाओं में अनुशंसा ’एक’ सम्मेलन द्वारा स्वीकृत हुई।
तृतीय सत्र ’हिन्दी शिक्षण में भारतीय संस्कृति’ विषय पर केन्द्रित था। विषय पर अनेक विद्वानों के विचार आए। हिन्दी संस्थान की ओर से भाग लेते हुए उ0प्र0 भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ0 राजनारायण शुक्ल ने निम्नांकित सुझाव दिये -

1- भारतीय भाषाओं में प्रवीणता के मूल्यांकन के लिए एक उपयुक्त मानदण्ड हो।
2- हिन्दी पाठ्यक्रम का सैद्धांतिक आधार पर विवेचन हो।
3- सिद्धांतों के आधार पर शिक्षकों का प्रशिक्षण हो।
4- भारतीय डायसपोरा देशों में भारतीय संस्कृति के संवर्धन के लिए अधिक प्रयत्न किया जाय।
चतुर्थ समानान्तर सत्र हिन्दी साहित्य में संस्कृति चिन्तन विषय पर आयोजित था। इस सत्र में उ0प्र0 हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त ने भाग लिया इस सत्र की अध्यक्षता मॉरीशस की डॉ0 राजदानी गोविन्द ने की, सह-अध्यक्ष थे गगनाँचल के सम्पादक डॉ0 हरीश नवल। चर्चा में भाग लेते हुए डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त ने भारतीय संस्कृति के विषय में फैलाये गये भ्रम पूर्ण धारणा का खण्डन करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति मिली-जुली संस्कृति नहीं है। डॉ0 गुप्त नें भारतीय संस्कृति के मूलभूत तत्वों - आत्मा की अमरता का सिद्धांत, काल की चक्रीय अवधारणा, कर्मफल तथा पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रकृति और मनुष्य के बीच अंगागि सम्बन्ध की अवधारणा, चराचर की पवित्रता के सिद्धांत की चर्चा की। उन्होंने निम्नांकित सुझाव दिये -
1- भाषा साहित्य तथा संस्कृति के अन्तः सम्बन्ध पर कार्यशालाएँ एवं विचार गोष्ठियाँ आयोजित की जायँ।
2- भारतीय संस्कृति के मूलभूत तत्वों को स्पष्टता के साथ रेखांकित किया जाय।
3- भारतीय संस्कृति के आधार - आचरण की पवित्रता, परिवार, संस्था के मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाले कलात्मक साहित्य के सृजन को प्रोत्साहित किया जाय।
4- भारतीय भक्ति साहित्य के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाय।

5- स्वातंन्न्योत्तर ललित निबंध साहित्य तथा गीत विधा साहित्य का विस्तृत मूल्यांकन किया जाय।
6- मॉरीशस में रचित साहित्य में चित्रित भारतीय संस्कृति और भारतीय साहित्य में चित्रित भारतीय संस्कृति का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय।
सम्मेलन के दूसरे दिन अर्थात् 19 अगस्त को चार समानान्तर सत्र चार विषयों पर आयोजित हुए। इनके विषय थे - ’फिल्मों के माध्यम से भारतीय संस्कृति का संरक्षण’, ’संचार माध्यम और भारतीय संस्कृति’, ’प्रवासी संसार : भाषा और संस्कृति’ तथा ’हिन्दी बाल साहित्य और भारतीय संस्कृति’।
’फिल्मों के माध्यम से भारतीय संस्कृति का संरक्षण’ विषय पर उ0प्र0 हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त ने प्रतिभागिता की। इस सत्र की अध्यक्षता फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष तथा प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एवं निर्देशक श्री प्रसून जोशी ने की। इस सत्र में डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त ने निम्नांकित लिखित सुझाव दिए-
1- भारतीय हिन्दी सिनेमा में भारतीय संस्कृति के प्रमुख घटकों परिवार संस्था तथा समाज संस्था को विरूपित ढंग से दिखाए जाने को रोका जाय। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारतीय देवी-देवताओं के विषय में फैलायी जाने वाली विकृत धारणाओं को प्रोत्साहित नहीं किया जाय।
2- संस्कार निर्माण करने वाले भारतीय पौराणिक चरित्रों, पंचतंत्र, हितोपदेश की कथाओं पर रोचक तथा कलात्मक ढंग से लघु फिल्में बनायी जायँ तथा इन्हें प्रदर्शित किया जाय।
द्वितीय सत्र ’संचार माध्यम और भारतीय संस्कृति’ विषय पर केन्द्रित था। इस सत्र में भाग लेते हुए डॉ0 योगेन्द्र प्रताप सिंह ने तीन अनुशंसाएँ दी जो स्वीकृत हुईं -
1- क्षेत्रीय स्तर पर सामुदायिक चैनल और सामुदायिक रेडियों को बढ़ावा दिया जाय। इन क्षेत्रीय चैनलों को बाजार के हाथों से बचाते हुए संस्कृति कर्मी को सौंपा जाय।

2- सामुदायिक चैनलों का लाइसेंस प्रदान किये जाने की पद्धति को आसान बनाया जाय।
3- ह्वाट्स ऐप्प जैसे तकनीकी नवाचारों का उपयोग सांस्कृतिक पत्रिका निकालने के लिए किया जाय।
विचार का तृतीय सत्र ’प्रवासी संसार : भाषा और संस्कृति’ विषय पर केन्द्रित था। इस सत्र में डॉ0 राजनारायण शुक्ल ने सहभागिता की। डॉ0 शुक्ल ने इस सत्र में निम्नांकित सुझाव दिये -
1- इंडियन डायसपोरा देशों के भारतीय संस्कृति का संवर्धन हो।
2- युवा पीढ़ी की जरूरतों के अनुरूप कार्यक्रम बनाए जायँ।
3- क्रियोल में सृजित साहित्य को हिन्दी में लाया जाए।
4- देश-विदेश में प्रकाशित पाठ्य सामग्री का संग्रह हो।
5- शिक्षकों के द्वारा हिन्दी भाषा साहित्य का शिक्षण करते समय भारतीय मूल्यों को विशेष रूप से रेखांकित किया जाय।
चतुर्थ सत्र ’हिन्दी बाल साहित्य और भारतीय संस्कृति’ पर केन्द्रित था। इस सत्र में डॉ0 प्रदीप कुमार राव ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी तथा निम्नांकित संस्तुतियाँ दीं-
1- बाल-सुलभ पद्यात्मक साहित्य को प्रोत्साहित किया जाय।
2- हितोपदेश, पंचतंत्र जैसी भारतीय संस्कृति केन्द्रित बोधपूर्ण कथाओं को चित्रकथा के माध्यम से बाल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाय।
3- उत्कृष्ट पौराणिक चरित्रों को भी बाल पाठ्यक्रम का अंग बनाया जाय तथा भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित जीवन मूल्यों को लघु बोध कथाओं के रूप में रुचिकर ढंग से दृश्य संचार माध्यमों से प्रसारण हो।
इस सत्र में मॉरीशस के बाल साहित्यकारों द्वारा बाल साहित्य के प्रकाशन की कठिनाइयों का जिक्र किया गया। उनकी इस समस्या पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान

की ओर से हिन्दी में भारतीय संस्कृति आधारित बाल साहित्य को प्रकाशित करने का प्रस्ताव डॉ0 प्रदीप राव ने प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव पर मॉरीशस के बाल साहित्यकारों, महात्मा गाँधी संस्थान, मॉरीशस के अध्यापकों द्वारा प्रसन्नता व्यक्त की तथा आभार व्यक्त किया तथा समापन सत्र में इसकी विशेष चर्चा की गयी।
2018 के विश्व हिन्दी सम्मेलन में पहली बार संस्थान की ओर से पाँच सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल ने प्रतिभागिता की। इस सम्मेलन की संस्थान की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की ओर से पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन। विदेश मंत्रालय के सहयोग से इस प्रदर्शनी का आयोजन संभव हुआ। पुस्तक प्रदर्शनी के आयोजन की जिम्मेदारी सम्भाली उ0प्र0 हिन्दी संस्थान के निदेशक श्री शिशिर ने। विदेश मंत्रालय के अनुरोध पर उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने प्रदर्शनी में भेजी गयी पुस्तकें विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरीशस के पुस्तकालय को भेंट कर दीं।
19 अगस्त को ही विश्व हिन्दी सम्मेलन की ओर से ’अप्रवासी घाट’, ’विश्व हिन्दी सचिवालय’ तथा ’महात्मा गाँधी संस्थान’ के भ्रमण का कार्यक्रम था, जिसमें हिन्दी संस्थान के प्रतिनिधि मण्डल ने भाग लिया। ’अप्रवासी घाट’ वह स्थान है, जहाँ पहली बार 1834 में गिरिमिटिया मजदूर भारत से ले जाये गये थे। महात्मा गाँधी संस्थान में हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था है।
दिनाँक 20 अगस्त को प्रातः 11ः00 बजे से सत्र का आयोजन हुआ समापन सत्र के मुख्य अतिथि थे मॉरीशस गणराज्य के कार्यवाहक राष्ट्रपति महामहिम श्री परमसिवम पिल्लै वैयापुरी तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में अनिरुद्ध जगन्नाथ एवं भारत की विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज तथा मॉरीशस की शिक्षा मंत्री श्रीमती लीला देवी दूकन लछमन की उपस्थिति रही। समापन सत्र की अध्यक्षता पश्चिम बंगाल के राज्यपाल माननीय श्री केशरीनाथ त्रिपाठी ने की। इसी सत्र में सम्मेलन में स्वीकृत अनुशंसाओं का वाचन भी हुआ।

(1) उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने मॉरीशस पर एक अध्ययन रिपोर्ट के प्रमुख बिन्दु निर्धारित किये हैं जिन पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगा तथा प्रकाषित करेगा।
(2) मॉरीशस में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में पहली बार संस्थान की ओर से पुस्तक प्रदर्शनी लगायी गयी।
(3) उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने मॉरीशस में हिन्दी भाषा में भारतीय संस्कृति आधारित बाल साहित्य के प्रकाशन का उत्तरदायित्व लिया। हिन्दी संस्थान के लिए यह गर्व की बात है।

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