लखनऊ, विधान भवन, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उ0प्र0 के तत्वावधान में साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन मुख्य भवन, उ0प्र0 सचिवालय परिसर स्थित संस्थान में अध्यक्षता संस्थान के वरिष्ठ उपाध्यक्ष शीलेन्द्र कुमार सिंह चैहान ने की। गोष्ठी का संचालन हरी प्रकाश ‘हरि’ ने किया।
गोष्ठी में काव्यपाठ प्रस्तुत करते हुए रामलखन यादव ने गीत प्रस्तुत किया ‘सारे जग की है यह शान, हमारा भारत देश महान’ गीत सुनाया। केवल प्रसाद ‘सत्यम’ ने सामाजिक समरसता के दोहे सुनाये, ‘पानी पानी शब्द हैं, पानी पानी बोल, पानी पानी आचरण, समझ न पायें मोल। बलदेव त्रिपाठी जी ने कहा ‘बात कहनी थी जो वो न हम कह सके, तुम न फिर मिल सके, हम न फिर मिल सके। संजीव तिवारी ने लोकगीत प्रस्तुत किया ‘उजरैं न दियाबे अपन गाँव मेरे मितवा, फिरि होइ है बरगद कै छाँव मोरे मितवा। अनन्त प्रकाश तिवारी ने ‘भीतर भीतर पतझर, बाहर ऋतु बासन्ती है’ गीत सुनाकर देश के यथार्थ से सभी को परिचित कराया। श्री हरी प्रकाश ‘हरि’ ने अपनी पुस्तक ‘शिवा सन्देश’ के कुछ अंश ‘यदि अब भी संदेश शिवा का समझ सकें जय सिंह भारत के, तो निश्चय ही लौट सकेंगे फिर से स्वर्णिम दिन भारत के’ सुनाया। नरेन्द्र भूषण ने ‘पैताने यदि बैठ कभी उससे बतियाते हो, तो समझो थोड़ा सा उसका कर्ज चुकाते हो’ गीत से सभी सन्तानों को उनके कर्तव्यों का भान कराया।
इसके अतिरिक्त श्रीमती सुफलता त्रिपाठी, श्रीमती निशा सिंह, सुशील श्रीवास्तव, डाॅ0 रविशंकर पाण्डेय, सुनील कुमार बाजपेयी, विजय प्रसाद त्रिपाठी श्री बलदेव त्रिपाठी, श्रीमती अंजू शर्मा, पं0 बेअदब लखनवी एवं अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत’ ने भी काव्य-पाठ किया।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि शरद मिश्र ‘सिन्धु’ ने ‘गरज उठा मन का आडवाणी, राम लला हम आएंगे’ सुनाया। अति विशिष्ट अतिथि कमलेश मौर्य ‘मृदु’ ने ‘चेहरे पर चेहरे हैं, चेहरा चेहरा हैं हम, बाहर से आश्रम हैं बाहर से गुफा हैं हम’ समेत अनेक गीत, छन्द सुनाये। इसी क्रम में मुख्य अतिथि डाॅ0 रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ ने राम की उँगलियों के पीठ में निशान लिये, आज राम प्रेम पगी घूमती गिलहरी’ जैसे अनेक मधुर गीत प्रस्तुत किये। अन्त में मंचासीन सभाध्यक्ष श्री शीलेन्द्र कुमार सिंह चैहान ने ‘तुम आये तो हँसी खिड़कियाँ दरवाजे मुस्काये, पाकर परिचित गंध द्वार ने स्वागत गीत सुनाए’ गीत प्रस्तुत किया व अध्यक्षीय वक्तव्य के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।