भाजपा व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरू( तमाम क्षेत्रीय दल एक जुट होने लगे हैं। उत्तर प्रदेश में धुर विरोधी सपा-बसपा का एक होना एक नये सामाजिक समीकरण का सूत्रपात किया है और सामभावित इस गठबंधन की देखा- देखी देश के तमाम क्षेत्रीय व छोटे दल महागठबंधन बनाने की कवायद में जुट गये हैं। 31 मई को 4 लोक सभा व 10 विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव परिणाम से भाजपा सकपका गई है और अब वह अपने वोट बैंक को बढाने के लिए गम्भीर मंथन में जूट गई है। भाजपा व संघ अपना वोट बैंक 31 प्रतिशत से 50 प्रतिशत करने के लिए कई बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार कर रहा है। उत्तर प्रदेश व बिहार ही देश की सत्ता तक पहुचने का रास्ता तय कराते हैं। जहां 120 लोक सभा की सीटें हैं। ये दोनो राज्य सामाजिक न्याय व आरक्षण के लिहाज से अति संवेदनशील राज्य है और कमोबेश दोनो राज्यों का सामाजिक समीकरण व जातिगत गणित लगभग एक समान ही है। उत्तर प्रदेश व बिहार में यदि भाजपा कमजोर होती है तो उसका सत्ता से बाहर होना तय है। विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगियों सहित दोनो राज्यों से 110 सीटों पर कब्जा किया था और अकेले उसके हिस्सें 109 सीटें आई थीं। भाजपा इस बडी जीत को गैर यादव व गैर जाटव/चमार जातियों के मजबूत समर्थन से हासिल किया था। लोक सभा चुनाव- 2019 में इन्हें अपने पाले में बनाये रखने के लिए ठोस जतन करने की जरूरत पड़ेगी।
भाजपा को बिहार में राष्ट्रीय जनता दल- कांग्रेस गठबन्धन व उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा- कांग्रेस- रालोद आदि महागठबंधन से दो-दो हाथ करना पड़ेगा। राजद, सपा व बसपा के पास खुद का आधार वोट बैंक है, वहीं भाजपा व कांग्रेस के पास कोई बेसिक वोट बैंक नहीं है। बिहार में यादव व मुस्लिम 15-15 प्रतिशत हैं जो राजद के मजबूत वोट बैंक है, वहीं उत्तर प्रदेश में 9 प्रतिशत यादव, 19 प्रतिशत मुस्लिम व 11-12 प्रतिशत जाटव/ चमार हैं। अपने जातिगत वोट बैंक के साथ सपा व बसपा मुस्लिम वोट बैंक पर दावा करते हैं, पर दोनों के दलों के साथ आने से इनका वोट बैंक लगभग 40 प्रतिशत हो जायेगा। बिहार में जहां मध्यवर्ती पिछड़ी जातियां ;कुर्मी-कोयरीद्ध 6 प्रतिशत हैं तो उत्तर प्रदेश में लगभग 10 प्रतिशत हैं। बिहार में कुर्मी व कोयरी तथा उत्तर प्रदेश में कुर्मी, कोयरी, जाट, गुजर, लोधी, सोनार, कलवार आदि मध्यवर्ती पिछड़ीं जातियां हैं। बिहार व उत्तर प्रदेश में अत्यन्त पिछड़ी जातियों की संख्या 33-34 प्रतिशत से अधिक है और दोनों राज्यों में हिन्दू सवर्ण जातियों की संख्या 13-16 प्रतिशत है। भाजपा का वोट बैंक अतिपिछड़ीं/मध्यवर्ती व अत्यन्त पिछडी तथा अतिदलित जातियां ही हैं और जब-जब यह भाजपा के साथ रहीं, भाजपा अव्वल रही।
गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के बाद कैराना लोकसभा व नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद भाजपा पशोंपेश में है और भविष्य की रणनीति बनाने के मंथन में डूबी हुई है। भाजपा का सबसे भरोसेमंद वोट बैंक निषाद मछुआरों को माना जाता हैं, पर इस समय यह भाजपा से समाज की राजनीतिक उपेक्षा व वादा खिलाफी से बेहद नाराज है। जय प्रकाश निषाद भाजपा संगठन से जुडे वफादार नेता रहें हैं और तीसरी बार विधायक निर्वाचित होने के बाद भी इन्हें योगी मंत्रीमण्डल में राज्यमंत्री बनाया गया है। जिससे निषाद बिन्द, कश्यप, केवट, मल्लाह समाज काफी नाराज है गोरखपुर व फूलपुर में भाजपा की हार में निषादों, तो कैराना व नूरपुर में कश्यप/निषादों की अहम भूमिका रही है, कारण कि इन क्षेत्रों में निषाद मछुआरा जातियों का खासा वोट बैंक है। निषादों की नाराजगी का एहसास भाजपा नेतृत्व व संघ परिवार को हो गया है, सो इस बड़े जातीय समूह को अपने पाले में करने के लिए रूप रेखा तय कर लिया है। शीघ्र ही संगठन व सरकार में बडा बदलाव किया जायेगा। जयप्रकाश निषाद को कैबिनेट का दर्जा देने के साथ पश्चिम से फतेहाबाद के विधायक जीतेन्द्र वर्मा व चरथावल विधाय विजय पाल सिंह कश्यप को मंत्रीमण्डल में शामिल किया जा सकता है। पार्टी सूत्रों की माने तो भाजपा के पूर्व उपाध्यक्ष व वर्तमान में उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष बाबू राम निषाद को डाॅ0 महेन्द्र नाथ पाण्डेय की जगह अध्यक्ष बनाकर निषाद मछुआरों व अतिपिछडा़ें की नाराजगी को दूर करने का निर्णय पार्टी नेतृत्व ले सकता है। 12.91 प्रतिशत आबादी रखने वाला निषाद मछुआरा समाज उत्तर प्रदेश की राजनीति में परिवर्तन लाने में काफी अहम है। जिन 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुद्दा डेढ दशक से राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है उसमें 13 उपजातियां निषाद मछुआरा समुदाय की हैं और केन्द्र सरकार इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा देने का भी कदम उठाने पर विचार कर रही है।
गोरखपुर, फूलपुर के बाद कैराना, नूरपुर और बिहार की जोकीहाट उपचुनाव परिणाम में मोदी मुक्त भारत की संभावना को आगे बढा दिया है। भाजपा व संघ परिवार ओबीसी व दलित उपवर्गीं करण को तुरूप के पत्ते के रूप में इस्तेमाल करने पर गम्भीर हो गई है। कर्पूरी ठाकूर की तरह संघ परिवार व भाजपा नेतृत्व नरेन्द्र मोदी को सामाजिक न्याय का मसीहा बनाने के काम में जूट गया है। विगत अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को भंग कर दिया था और उसका नामकरण राष्ट्रीय सामाजिक शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग कर संवैधानिक दर्जा देने का कदम उठाया था, जिसे राज्य सभा में समर्थन नहीं मिलने से अटका हुआ है। राम मंदिर निर्माण व ओबीसी उपवर्गीकरण भाजपा के तरकश के 2 खास तीर हैं, जिससे विपक्ष को धरासायी कर सकते हैं। ये दोनो मुद्दे आज भी पूर्व की भांति सत्ता दिलाने में प्रभावी हैं । भाजपा के तरकश में सबसे मारक तीर आरक्षण उपवर्गीकरण है, जिसकी काट खोजना विपक्ष के वश की बात नहीं होगी।
संयुक्त विपक्ष जिन दलितों, पिछड़ों, अकलियतों के सामाजिक समीकरण के जरिये मोदी राज को खत्म करने का गणित तैयार कर रहा है, उपवर्गीकरण से वह गडबडा सकता है। विपक्ष के जातिगत सामाजिक समीकरण को क्षत-विक्षत कर देने वाला तीर ओबीसी का उपवर्गीकरण के साथ दलित आरक्षण के उपवर्गीकरण तक विस्तारित हो सकता है । भाजपा इस मारक तीर का इस्तेमाल करने से पूर्व इस दिशा में बुद्धिजीवियों को सक्रिय कर दिया है । भाजपा सलाहकार मण्डल का सुझाव है कि इससे 50 प्रतिशत वोट बैंक के आकड़े को छुवा जा सकता है ।
सामाजिक न्याय समिति-2001 ने उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग का तीन व अनुसूचित जातियों का 2 श्रेणीयों में उपवर्गीकरण का सुझाव दिया था। राजनाथ सरकार ने इसे मूर्तरूप देने का कदम भी उठाया, पर सपा व बसपा के विरोध के कारण संम्भव नहीं हो सका। पिछले अक्टूबर में केन्द्र सरकार ने ओबीसी उपवर्गीकरण के उद्देश्य से दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रोहिणी के नेतृत्व में राष्ट्रीय ओबीसी उपवर्गीकरण आयोग का गठन किया। इस आयोग को 3 महीने में अपनी रपट देनी थी, लेकिन उसका कार्यकाल बढता रहा, पर पिछली बार कार्यकाल बढाते समय केन्द्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि 20 जून के बाद इसका कार्यकाल नहीं बढाया जायेगा। यह आयोग स्पष्ट करेगा कि पिछड़ें, अतिपिछड़े व अत्यन्त पिछड़े वर्ग में कौन-कौन सी जातियां रखीं जायेंगी।
ओबीसी को 3 श्रेणीयों में विभक्त कर 9-9 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा केन्द्र सरकार कर सकती है। उच्च पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अक्टूबर में केन्द्र व उत्तर प्रदेश सरकार उपवर्गीकरण की घोषणा कर राजनीति को गर्म करने का कदम उठायेंगी। उत्तर प्रदेश सरकार ने 8 जून को जस्टिस राघवेन्द्र कुमार समिति का गठन करते हुए उसे 3 महीने में अपनी रपट देने का निर्देश दिया है। इस संबंध में सामाजिक न्याय चिंतक लौटन राम निषाद ने उपवर्गीकरण की सवैधानिकता पर बताया की इस पर प्रश्न चिन्ह खडा नहीं किया जा सकता, पर भाजपा का असल मकसद सामाजिक न्याय देना कम राजनीतिक लाभ उठाना व पिछड़ों में नफरत की भावना पैदा करना अधिक है। इससे पिछड़ों, दलितों में नफरत की भावना पैदा कर राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा है। उनका कहना था कि ओबीसी की जनगणना रिपोर्ट उजागर कर एससी/एसटी की भांति ओबीसी को कार्यपालिका, विधायिका के साथ सर्वव्यापी आरक्षण की घोषणा करनी चाहिए। जिसके तहत न्यायपालिका, सेना, मीड़िया सहित निजी व सरकारी क्षेत्र की सभी प्रकार की नौकरियों, डीलरशीप, ठेका/पट्टा आदि में संख्यानुपाती आरक्षण देने का कदम उठाना चाहिए। 27 प्रतिशत आरक्षण के विभाजन से ओबीसी लाभ उठाने की बजाय नुकसान में रहेगा।
उनका कहना था कि भाजपा की मंशा ठीक नहीं है। वह गैर यादव व गैर जाटव जातियों को झूठा झांसा देकर सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करने का षडयंत्र कर रही है। आखिर सेंसस-2011 के अनुसार ओबीसी की जनगणना को उजागर क्यों नहीं किया गया ? इससे कौन सी राष्ट्रीय क्षति हो रही थी ? विधानसभा चुनाव में अतिपिछड़ों के साथ मुख्यमंत्री बनाने के सवाल पर वही पटकथा दोहराई गई कि - शादी के लिए गोविन्दा को दिखाया गया और शादी शक्तिकपूर से करा दी गई। भाजपा की इस चाल को पिछड़ा - अतिपिछड़ा समाज समझ चुका है। उत्तर प्रदेश के साथ- साथ महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखण्ड में ठीक एक समान छल-कपट व झूठ फरेब की राजनीति का परिचय भाजपा ने दिया। संघ लोक सेवा आयोग में कैडर निर्धारण फाउण्डेशन कोर्स व ओबीसी के लिए क्रिमीलेयर की नई परिभाषा से लुटा-पीटा ओबीसी अब भाजपा के झांसे में व झूठे दिलासे में आने वाला नहीं है।