लखनऊ । उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में जो बेढ़ंगी चाल पिछली सरकार में थी, वह चाल योगी सरकार में भी कायम है। जिसके चलते प्रदेश के करोड़ों छात्र-छात्राओं का भविष्य अंधकारमय बन ही रहा है, शिक्षा विभाग के अधिकारियों और विभाग की लापरवाही के चलते इस वर्ष भी शिक्षा सत्र के दो माह बीत जाने के बाद भी किताबें हासिल हो पाना दूर की कोड़ी साबित हो रहीं हैं।
बेसिक शिक्षा विभाग के पाठ्य पुस्तक अधिकारी द्वारा २६ फरवरी २०१८ को पुस्तकों के प्रकाशन के लिए टेण्डर निकाले गए। लगभग ३०० करोड़ रूपए के प्रकाशन के इन टेण्डरों पर अन्य क्षेत्रों के माफियाओं की तरह कागज माफियाओं की नजर गढ़ गई और ऐसी चाल चली गई कि अब तक मात्र ३० फीसदी काम उठाया जा सका, बांकी ७० फीसदी काम हांसिए पर पड़ा है। जिसके चलते छात्र-छात्राओं को पुस्तकें हासिल हो जाएं, यह दिखाई नहीं देता। प्रदेश की बेसिक शिक्षा मंत्री कुम्भकर्णी नींद लेकर सो रही हैं। आखिर ऐसा क्या है कि भ्रष्टाचार को खत्म करने का संकल्प लेने वाली योगी सरकार प्रदेश के नौनिहालों को सर्दी में स्वेटर, ड्रेस, जूते और किताबें सभी कुछ समय पर उपलब्ध न कराकर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पाठ्य पुस्तक अधिकारी उत्तर प्रदेश ने २६ फरवरी २०१८ को लगभग २५ करोड़ किताबें छापे जाने का टेण्डर मांगा था, प्रकाशकों ने निविदाएं डालीं लेकिन कागज माफियाओं ने सरकार में बैठे आला अधिकारियों से सांठगांठ कर ऐसे नियम बनवा दिए जिसके चलते ढ़ेरों कागज की मिलें उत्कृष्ठ कागज बनाने के बावजूद भी निविदादाताओं को कागज देने से वंचित हो गयीं। बानगी के तौर पर एक शर्त डाल दी गयी कि १०० टन से अधिक कागज प्रतिदिन उत्पादन करने वाली मिल से ही कागज लिया जाए। इसके चलते जो कुछेक मिलें रह गईं, उन्होंने अपनी मोनोपॉली बना ली और निविदादाताओं से टेण्डर में लगाने के लिए नमूना दिए जाने के पूर्व २० लाख रूपए की माँग कर डाली। कागज का रेट मिलें ही तय करेंगी। यह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में काला अध्याय कहा जाएगा, जिसमें मात्र नमूना देने के लिए बिना दर खोले लाखों की माँग मिलें करके उन निविदादाताओं को काम लेने से वंचित करने पर उतारू हो गयीं, जो पुस्तकें प्रकाशित कर अपने व्यापार के साथ सरकार को समयबद्ध तरीके से किताबें उपलब्ध कराना चाहते थे।
अब खेल शुरू हुआ निविदा डालने का, तो कागज माफियाओं और कुछ प्रकाशकों ने चाल चलकर सरकार और छात्र-छात्राओं को ऐसा चूना लगाया कि निम्नतम दर ऐसी डाली जिस पर वह स्वयं १०० प्रतिशत काम नहीं कर सकते। विभाग ने निम्नतम पर का आधार लेकर जब सभी प्रकाशकों से काम करने को कहा, तो २-३ प्रकाशकों को छोड़कर सभी प्रकाशकों ने हाथ खड़े कर दिए। बतौर निविदादाताओं के यह निविदा दर अप्रासांगिक है, इतनी कम दर पर देश के कोई भी प्रकाशक निविदा शर्तों के अनुसार काम नहीं कर सकते। जब काम पूरा नहीं उठा, तो पाठ्य पुस्तक अधिकारी, निदेशक बेसिक शिक्षा ने प्रकाशकों से सम्पर्क कर काम करने को कहा, तब सभी प्रकाशकों ने वस्तुस्थिति समझाई और काम करने में असमर्थता व्यक्त कर दी। शिक्षा अधिकारियों ने एक बार पूरे देश में पुनरू दरवाजा खोल दिया और किसी भी प्रकाशक को इस दर पर काम करने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन कमाई के वजाय घाटे के सीधे आसारों को देखते हुए पूरे देश या विदेश से कोई भी निविदादाता इन दरों पर काम करने के लिए आगे नहीं आया। जिसके चलते विगत २५ मई २०१८ को एक बार फिर निविदायें आमंत्रित की गईं, लेकिन पुराने प्रकाशकों को उनकी धरोहर राशि वापस न करके नई निविदा डालने से वंचित कर दिया गया। इसके पीछे सीधे करोड़ों रूपए के लेनदेन और भ्रष्टाचार की तस्वीर दिखाई पडने लगी।
जिन प्रकाशकों की दरें निम्नतम दरों से अधिक थीं, निविदा में दी गई शर्तों के अनुसार उनके निविदा पास न होने के कारण एक महीने के अन्दर उनकी धरोहर राशि वापस की जानी थी, जिसे विभाग ने अब तक वापस न करके एक तरफ इन प्रकाशकों को लाखों का चूना लगा दिया है, तो वहीं २५ मई को भी यह कार्य पूर्णतरू को प्राप्त नहीं हो सका। जिसके चलते अब नए सिरे से फिर टेण्डर निकालने की कवायद शिक्षा अधिकारी करने लगे हैं।
गौरतलब है कि शिक्षा विभाग में बैठे हुए पढ़े-लिखे और जानकार अधिकारी आखिर वस्तुस्थिति का अध्ययन क्यों नहीं कर रहे हैं और उनकी जिद करोड़ों बच्चों के पढने की किताबें नहीं दे सकेगी। इस बात को गम्भीरता से संज्ञान में नहीं लेकर प्रदेश की शिक्षा नीति का यह कैसा भद्दा मजाक उड़ाया जा रहा है। यह सरकार की समझ से परे है।
निविदा डालकर सफल नहीं होने वाले प्रकाशकों ने पाठ्य पुस्तक अधिकारी व निदेशक बेसिक शिक्षा के साथ ही प्रमुख सचिव स्तर तक पूरे मामले की जानकारी देते हुए कहा है कि २-१ व्यक्तियों की माफियागिरी के चलते यह स्थिति बन रही है, इसके कारण देश के किसी भी प्रान्त के प्रकाशक उत्तर प्रदेश में बार-बार निविदा निकाले जाने के बावजूद कोई रूचि नहीं ले रहे हैं। क्योंकि सरकार निम्नतम दर पर अड़ी है, जो न्यायसंगत नहीं हैं।
बेसिक शिक्षा विभाग में प्रतिवर्ष होने वाला करोड़ों रूपए का भ्रष्टाचार इसका मूल कारण है। अन्यथा अन्य राज्यों में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक आदि प्रान्तों की तरह प्रदेश सरकार प्रकाशकों को कागज उपलब्ध कराती है और निविदा निकालकर छपाई का मूल्य तय करते हुए समय से छात्र-छात्राओं को किताबें उपलब्ध करा दी जाती हैं।
एक प्रमुख समाचार पत्र ने १२ मई, २०१८ की सम्पादकीय में सरकार के दावों की पोल खोलते हुए इसे सरकार की बड़ी नाकामी सिद्ध की है। सरकार ने दावे तो बहुुत किए थे, लेकिन शिक्षा सत्र के ४० दिन बीत जाने के बाद भी विद्यालयों में अभी तक नई किताबें नहीं पहुंच पाई हैं। प्रदेश में हर साल ऐसा ही हो रहा है। अधिकारी और मंत्री बयानबाजी करते हैं और विद्यालयों में छात्र पुस्तकों का इंतजार करते रहते हैं।
पिछले वर्ष भी अर्द्धवार्षिक परीक्षा के समय किताबें बंट सकीं, इस वर्ष कब बटेंगी, कोई बताने को तैयार नहीं। बुनियादी शिक्षा में छात्र-छात्राओं के साथ इस तरह का खिलबाड़ विभाग और मंत्री की क्षमता को कठघरे में खड़ा करता है।
प्रदेश में १,१२,७४७ प्राथमिक विद्यालय हैं और ४५,६४९ उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं, यानि कुल १,५८,३९६ विद्यालय हैं। इन स्कूलों में करोड़ों छात्र-छात्राओं का नामांकन हो चुका है और पुस्तकें कब मिलेंगी इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नहीं।