Categorized | मथुरा

पाँच दिवसीय छठवें वार्षिक भण्डारा सत्संग-मेला

Posted on 17 May 2018 by admin

मथुरा, 17 मई। बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के पाँच दिवसीय छठवें वार्षिक भण्डारा सत्संग-मेला में संस्था के राष्ट्रीय उपदेषक सतीष चन्द्र व बाबूराम ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित किया। प्रातः 4 बजे घण्टी बजने पर लोगों ने सत्संग मैदान में बने मंच के सामने सुमिरन, ध्यान, भजन की सामूहिक साधना का अभ्यास किया।32623076_459348361166387_4144040714994450432_n1
बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने लोक कल्याण और विष्व शान्ति का संदेष देकर निजधामवासी हो गये। उन्होंने सन् 1952 से अपनी आध्यात्मिक-वैचारिक क्रान्ति की शुरुआत किया और धीरे-धीरे लोग जुड़ते चले गये। महापुरुष हमेषा अपने निषाने पर चलते हैं। जीवों के कल्याण के लिये काम करते हैं। उनकी आध्यात्मिक वैचारिक क्रान्ति को आगे बढ़ाने का काम श्रद्धेय पंकज जी के साथ हम सभी लोगों का है। जिसका जैसा स्वभाव होता है, वह अपने स्वभाव के अनुसार व्यवहार करता है। जगत-भगत के बैर की कहावत प्रचलित है। लोग महात्माओं की जान के दुष्मन बन गये लेकिन वे अपनी दयालुता को नहीं छोड़ते हैं। साधु प्रवृत्ति के लोग बुराईयों में भी अपने हित की बात तलाष लेते हैं। दुनियां वालों की तरह वे किसी बात को गांठ बांध कर नहीं रखते। बाबा जी ने बिना किसी बात की परवाह किये अच्छे समाज के निर्माण के लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहे। उक्त उद्गार जयगुरुदेव आश्रम में प्रातःकालीन सत्संग में उपदेषक बाबूराम ने व्यक्त किया।
हरि, हरिजन जे दुई कहै, ते नर नरकै जाय। हरि हरिजन अन्तर नाहि, ज्यूं फूलन में बास। पंक्ति की व्याख्या करते हुये कहा कि परमात्मा संतों के अन्दर समाहित होते हैं। संत और सतपुरुष में कोई अन्तर नहीं है। संत एक बिचैलिये की तरह काम करते हैं। वे पानी की बूंद रूपी जीवात्मा को समुद्र रूपी सतदेष में पहुंचा देते हैं। यदि आप अपने निजघर सतलोक पहुंचकर प्रभु का दर्षन करना चाहते हैं तो उन्हें संतो के शरीर रूपी दर्पण में देख लें। संतों की महिमा अवर्णनीय है।
सायंकालीन सत्संग में उपदेषक सतीष चन्द्र ने संतों-महापुरुषों के सत्संग की महिमा धर्म ग्रन्थों में इस प्रकार है - सत्संग महिमा है अति भारी। पर कोई जीव मिलै अधिकारी।। कलयुग में सभी लोग पाप कर्म में संलिप्त हैं जिससे तन और मन दोनों ही गन्दा हो गये हैं। सत्संग रूपी जल से ही ये गन्दगी साफ होगी। इसलिये कलयुग में सत्संग की महत्ता अधिक बढ़ गई है। क्योंकि जब बीमारियाँ नहीं रहेंगी या कम रहेंगी तो डाक्टर का महत्व कम होता है। लेकिन जब सभी लोग बीमार रहेंगे तो डाक्टर का महत्व बढ़ जाता है। ठीक इसी प्रकार सत्संग है। जिन लोगों के अच्छे संस्कार होते हैं उन्हीं को संतो महापुरुषों का सत्संग सुनने का अवसर मिलता है। यह संस्कार कई जन्मों में धीरे-धीरे बनता है। महापुरुष जीवों पर संस्कार डालते हैं। उनके वचन को सुनने से जीव में अच्छे संस्कार पड़ते हैं। गुरु के वचन को सुनकर उस पर अमल करना चाहिये। जब अमल करते हैं तो गुरु जीव को अपने निजघर सतलोक पहुंचा देते हैं और संसार के सारे रगड़े-झगड़े समाप्त हो जाते हैं। सत्संग से ही बच्चों में चरित्र निर्माण होता है। इसलिये महापुरुषों के सत्संग में बच्चों को लाना चाहिये। श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी है। भारी संख्या में श्रद्धालु चले आ रहे हैं।

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

May 2024
M T W T F S S
« Sep    
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  
-->









 Type in