Categorized | झांसी

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा तुझे पाने कितना खर्च करना होगा पैसा

Posted on 19 March 2010 by admin

ललितपुर - जिले की अभी भी सैकड़ों एकड़ भूमि असिंचित है,सात बांधों के निर्माण के पश्चात भी जमीन की प्यास बाकी रह गई। शासन द्वारा पांच बाधों का निर्माण कराने की दिशा में प्रक्रिया चल रही है। इसके बावजूद कई एकड़ भूमि फिर भी प्यासी बनी रहेगी। जिले में कितने बाध बनेंगे इसका अन्दाजा लगा पाना अभी मुश्किल होगा। एक तरफ जहां आजादी के दौरन  चिन्हित किये गये स्थानों पर तो बांध नहीं बनाये गये, वहीं नये स्तर से कई बांधों के भराव क्षेत्र में ही बाध बनाना शुरू कर दिये गये है। कुछ बाध ऐसे भी है जो उत्तर प्रदेश के लिए कम मध्यप्रदेश के लिए ज्यादा मुफीद साबित होंगे। जिले में बांधों को लेकर किसान तबके में चर्चा गरमायी हुई है।

अपेक्षित राजनैतिक पैरवी के अभाव में जनपदवासी आज तक राजघाट बाध से उत्पादित बिजली का उपभोग नहीं कर पा रहे है। बिजली मध्यप्रदेश ले रहा है। पानी के लिए भी उत्तर प्रदेश के किसान तरसते रहते है, जहां पिछले वर्ष मध्यप्रदेश के किसानों को पानी आसानी से मिल गया था वहीं इस क्षेत्र के लोगों को पुन: आन्दोलन करने के पश्चात कुछ भी हासिल नही हुआ था। इसी तरह अन्य बांधों से भी टेल तक पानी नहीं मिल पाता है।

विभागीय आकड़े भले ही कुछ भी पुष्टि करते हो लेकिन हकीकत कागजी कार्यवाही से जुदा होती है। किसी भी राजनेता ने कागजी व हकीकत की कार्यवाही को मिलान करवाने की जहमत नहीं उठायी। यही वजह है कि एक पर एक क्षेत्र के साथ नाइसाफी हो रही है। चर्चा पांच बाधों के निर्माण को लेकर है। सरकार द्वारा अकेली तहसील महरौनी में ही पांच बांध बनाने का प्रस्ताव दिया गया है।

उन्होंने जिलाधिकारी पंचायत के पदाधिकारी खासतौर से किसानों के साथ हो ही ज्यादती पर मोर्चा सम्भाले हुए है। उन्होंने जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर जनपदवासियों के हित को प्राथमिकता देने की मांग उठायी। बताया गया कि भोंरट बाध, कचनोन्दा, उटारी, क्योलारी, लोअर रोहिणी पांच बांध बनाये जाने है। इनके डूब क्षेत्र में आने वाले किसानों का शोशण हो रहा है।

जनपद में पानी उपलब्ध कराने की योजनाओं में ईमानदारी के अभाव से ज्यों -ज्यों दवा दी गई मर्ज बढ़ता गया। अब भी सारा दारोमदार वर्षा जल पर आश्रित है। गर्मी शुरू होते ही यहा पेयजल की मारा मारी शुरू हो गई है। गांव देहता तो दूर मुख्यालय में भी हाहाकार है। कारण यह है कि किसी जन प्रतिनिधि ने इस दिशा में ठोस व कारगर प्रयास की भी जरूरत नहीं समझी। सारी जन सेवा चहेतों के घर के पास है येाजना हैण्डपम्प लगवाने तक सीमित रह गई।

बीते साल जनपद के लिये भारी जलसंकट के रहे। हालत यह थी कि मुख्याल सहित विभिन्न स्थानां की जलापूर्ति टैंकरों द्वारा करनी पड़ी। शासन व प्रशासन की सक्रियता से प्यास से मौते तो नहीं हुई पर बाकी सारी दुर्दशा हुई। बावजूद इसके जन प्रतिनिधियों ने जनजीवन से जुड़ी इस अहम समस्या को खास जरजीह नहीं दी। उनकी सारी जनसेवा अपने चहेतों के घर के पास हैन्डपम्प लगवाने तक सिमट कर रह गई। निधि में कमीशन के खेल के चलते इसमें भी भारी कंजूसी हुई। सीसी सड़क व अन्य निर्माण की तुलना में पानी के मद में एक चौथाई पैसा भी जनप्रतिनिधि नहीं दे सके। जल प्रबंधन से जुड़े विभागीय अधिकारी भी स्थायी विकास की जगह कमाई की योजनायें बनाने को ज्यादा तहरीर देते है। 27 करोड़ की महोबा पुनर्गठित पेयजल योजना इसका नमूना है। इस बांध के पहले ही नदी के मध्यप्रदेश क्षेत्र में एक दर्जन से ज्यादा बड़े चेकडेम बन चुके है इससे पर्याप्त वर्षा होने पर ही यहांपानी आयेगा। गत वर्ष सूखे के दौरान सभी ने स्वीकार किया था कि उर्मिल बांध का विकल्प मान इसकी बड़ी योजना का कोई औचित्य तर्क दे इसे भविश्य में केन बेतवा गठजोड़ व  के लिये लाभ दायक साबित हो सकता है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

November 2024
M T W T F S S
« Sep    
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
-->









 Type in