लखनऊ दिनांक 08.05.2018 दिन मंगलवार अषोक लाल प्रस्तुतिकरण के अन्तर्गत आज सांयकाल 06ः30 बजे राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह, कैसरबाग लखनऊ में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय (संस्कृति विभाग), नई दिल्ली के सहयोग से सुप्रसिद्ध नाट्य रचनाकार श्री डी0पी0 सिन्हा, पूर्व आई0ए0एस0 की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित सम्राट अषोक का नाट्य मंचन नगर के वरिष्ठ रंग निर्देषक अषोक लाल को सषक्त निर्देषन में मंचित किया गया है। नाटक के कथानक के अनुसार दया प्रकाष सिन्हा द्वारा लिखित इस नाटक में न अषोक और तिष्यरक्षिता अथवा कुणाल और तिष्यरक्षिता के प्रसंग को अहमियत दी गई है और न ही अषोक द्वारा बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लेने की घटना को मुखरित किया गया है बल्कि इसमें अषोक के सिंहासन पर बैठने से लेकर उसके अंतिम दिनो के क्षणों तक समेटने की कोषिष की गई है। ज बवह तुगलक और शाहजहाँ की भांति अपने ही कारागार से नितान्त अकेला होता जाता है। इस नाटक में अषोक अपनी पत्नी को छोड़कर पाटलीपुत्र चला जाता है और वहंा महामंत्री राधागुप्त के साथ मिलकर बिन्दुसार के बाद अपने आप को राजा घोषित कर लेता है। सुसीम और कंलिग को युद्ध में मार कर अपना साम्राज्य आगे बढ़ाता है। कुछ समय पश्चात् वह बीमार पड़ता है तो राधागुप्त वैद्य चक्रपाणी को बुलाते है परन्तु वह अपनी जगह अपनी भांजी तिष्यरक्षिता को भेज देता है जो कि कलिंग कन्या होती है वह अपने माता-पिता की मृत्यु का बदला लेने की नियत से अषोक के पास उसका उपचार करने लगती है।
अषोक तिष्यरक्षिता से विवाह कर लेता है। तिष्यरक्षिता अषोक के पुत्र कुणाल को जान से मरवाने की कोषिष करती है, उस राज्य में भिक्खु सागरमते जो कि अषोक के दरबार में आते-जाते हैं उसका प्रेम उस महल की दासी नंदिता से होता है यह बात तिष्यरक्षिता जान जाती है और सागरमते को अपने इषारे पर नचाने लगती है। इधर अषोक बौद्ध की शरण में रहते हुए उसके प्रचार-प्रसार में सारी धन सम्पत्ति खर्च कर रहा होता है। बाद मंे सागरमते तिष्यरक्षिता की सारी हकीकत अषोक को बतादेता है तब अषोक तिष्यरक्षिता को मृत्युदण्ड दे देता है। इधर महामंत्री राधागुप्ता अषोक द्वारा राज्य की सारी सम्पत्ति अभिधर्म के प्रचार में खर्च करने से रूष्ट हो जाता है और सेनापति और अन्य मंत्रीमण्डल के साथ मिलकर अषोक को राज सिंहासन से हटाकर उसे बंदी बना देता है। बाद में राधागुप्ता अषोक को बंदीगृह से निकालकर राज्य से बाहर अन्य स्थान पर भेजने का प्रबन्ध करता है किन्तु अषोक मना-कर देता है और बंदीगृह में नितांत अकेला होता जाता है। सम्राट अषोक की प्रधान स्वयं नाट्य निर्देषक अषोक लाल द्वारा अभिनीत किया गया। सम्राट अषोक की पहली पत्नी देवी की भूमिका में तान्या सूरी तथा दूसरी पत्नी तिष्यरक्षिता की भूमिका में दीपिका श्रीवास्तव एवं दासी की प्रधान भूमिका में अचला बोस महामंत्री राधागुप्त की भूमिका में तारिक इकबाल तथा बिन्दुसार एवं शब्दाकार दोहरी भूमिका में नगर के वरिष्ठ रंग निर्देषक प्रभात कुमार बोस ने अपने सषक्त अभिनय से दर्षको को भाव विभोर कर दिया। इसके अतिरिक्त चक्रपाणी की भूमिका में आनन्द प्रकाष शर्मा एवं तिस्स की भूमिका में धु्रव सिंह एवं सागरमते की भूमिका में ऋषभ तिवारी एवं भिक्खू समुद्र की भूमिका में राकेष चैधरी, कात्यायन एवं गुप्तचर की भूमिका में अभिषेक गुप्ता, उपगुप्त की भूमिका में सुजीत कुमार रावत तथा कुणाल की भूमिका में अर्पित यादव और सैनिक-1 की भूमिका में अजय गुप्ता तथा रूपकार की भूमिका आदर्ष तिवारी इत्यादि कलाकारों ने अपने सषक्त अभिनय से दर्षको को अत्यधिक प्रभावित किया। सेट डिजाइनिंग नाट्य निर्देषक अषोक लाल का था। प्रकाष परिकल्पना की कमान ए0एम0 अभिषेक ने संभाली संगीत निर्देषन निखिल श्रीवास्तव का अत्यधिक प्रभावी रहा। रूप सज्जा षिव कुमार श्रीवास्तव ‘‘षिब्बू’’ का था। 60 दिवसीय कार्यषाला के अन्तर्गत तैयार की गयी इस नाट्य प्रस्तुति के सम्पूर्ण परिकल्पना एवं निर्देषन अषोक लाल का था। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सम्राट अषोक का नाट्य मंचन अत्यधिक सफल रहा।