लखनऊ 12 फरवरी 2018, देश में सत्तर साल के बाद सरकार की आर्थिक नीतियां आम आदमी के लिए खुशियों की सौगात लेकर आयी है। केन्द्र की भाजपा सरकार और देश के उन्नीस राज्यों में चल रही भाजपा की सरकारों की आर्थिक योजनाएं समाज के अंतिम व्यक्ति से आरंभ हो रही हैं। किसान युवा महिला और समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के आधार पर देश की वित्तीय नीतियां तय हो रही है। पं. दीनदयाल जी ने अपने चिन्तन में आम मानव से जुड़ी जिन चिंताओं और समाधानों को समझाने का प्रयास आज से दशकों पहले किया था, आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश की आदित्य कर रही हैं। भारत और भारतीयता के संवाहक एवं संचारक के रूप दीन दयाल उपाध्याय के विचार किसी आदर्शलोक का दर्शन होने की बजाय व्यवहारिकता के धरातल पर बेहद मजबूती से टिकते नजर आते हैं। यह उदगार भाजपा प्रदेश मुख्यालय में पं. दीनदयाल उपाध्याय की 50वीं पुण्यतिथि पर आयोजित व्याख्यांन माला में इटवा के विधायक एवं अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डा सतीश चंद्र द्विवेदी ने व्य्क्त किया।
डा. द्विवेदी ने कहा कि पंडित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा एकात्म मानववाद का विकल्प उस कालखंड में दिया गया जब देश में समाजवाद, साम्यवाद जैसी आयातित विचारधाराओं का बोलबाला था। भारत में भारतीयता को पुनर्जीवित करने वाली विचारधारा की बजाय समाजवाद एवं साम्यवाद जैसी आयातित विचारधाराओं का बोलबाला होना भारतीयता के लिए अनुकूल नहीं था। पंडित जी ने भारत की समस्या को भारत के सन्दर्भों में समझकर उसका भारतीयता के अनुकूल समाधान देने की दिशा में एक युगानुकुल प्रयास किया। पंडित जी मानते थे कि राष्ट्र के निर्माण और उसकी मजबूती में उसकी विरासत के मूल्यों का बड़ा योगदान होता है। देश के आम जन जीवन की बेहतरी, आम जन-जीवन की सुरक्षा, आम जनता को न्याय आदि के संबंध में एक समग्र चिन्तन अगर किसी एक विचारधारा में मिलता है तो वो एकात्म मानववाद का विराट दर्शन है। पंडित जी द्वारा प्रदिपादित इस विचार दर्शन में ‘एकात्म’ का आशय अविभाज्य अथवा एकीकृत अवधारणा से है। वहीं मानववाद से आशय यह है कि सबकुछ मानव मात्र के कल्याण हेतु संचालित हो।
उन्होंने कहा कि समय की जरूरत थी कि, पंडित दीन दयाल जी द्वारा देश के राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास की दिशा में दिए गये विचार दर्शन को सरकार की नीतियों में प्रमुखता से शामिल किया जाय। जब पंडित जी स्व की बात कर रहे थे तो उनका स्पष्ट दृष्टिकोण राष्ट्र की बहुमुखी आत्मनिर्भरता को स्थापित करना था। तत्कालीन दौर बेशक तकनीक के दौर वाले आधुनिक भारत से बेहद अलग था, मगर उनके स्व की अवधारणा का अगर मूल्यांकन करें तो उनकी दृष्टि में एक सक्षम भारत का भावी था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काम कर रही भारत सरकार उसीदृष्टि को अपनी नीतियों में प्रमुखता से लागू कर रही है। आत्मनिर्भरता से अन्त्योदय की राह निकालने की दृष्टि के साथ काम कर रही भाजपा-नीत केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं में अंतिम कतार के व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प और प्रतिबद्धता साफ दिखती है।
अगर हम केंद्र सरकार के एक कार्यक्रम मेक इन इण्डिया को ही उदाहरण के तौर पर लें तो यह कार्यक्रम वैश्वीकरण के इस दौर में भारत को निर्माण एवं रोजगार के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होने वाला कार्यक्रम है। सरकार उज्व् आतला योजना हर गरीब आदमी के घर को विकास की राह पर लाने वाली योजना है। हर गांव में बिजली देने की बात करना सरकार द्वारा पंडित जी के विचारों को जाग्रत करना ही माना जा रहा है। वर्तमान में जब केंद्र में उसी दल की सरकार है जिसकी नींव की पहली ईंट रखने में दीन दयाल उपाध्याय जी का महती योगदान था तो उनके विचारों का सरकार की नीतियों में व्यापक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। स्टार्ट-अप, स्टैंड-अप जैसी योजनाओं के माध्यम से सरकार ने अंतिम व्यक्ति को सबल, सक्षम और स्वालम्बी बनाने की दिशा में कार्य को आगे बढ़ाया है।
व्याअख्यान माला के विशिष्ट अतिथि डा अभय मणि त्रिपाठी ने कहा कि, पंडित जी का स्पष्ट मानना था कि जो व्यक्ति आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होता है वह राजनीतिक रूप से भी स्वतंत्र नहीं होता है। आज सरकार आम जन को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और स्वालम्बी बनाने की दिशा में जिन प्रयासों पर सतत काम कर रही है, वो वाकई इन्हीं विचारों से ओत-प्रोत नजर आते हैं। चूँकि भारत की अर्थव्यवस्था के मूल में कृषि है लिहाजा पंडित दीन दयाल उपाध्याय कृषि सुधारों पर खास जोर देने की बात करते थे। वे कृषि में भारतीय कृषि के अनुरूप आधुनिकता का प्रवेश भी चाहते थे। वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा कृषि सुधारों की दिशा में सॉयल हेल्थ कार्ड जैसी योजना को लाना यह प्रमाणित करता है कि सरकार कृषि सुधार को आधुनिक तकनीक के माध्यम से करने की दिशा में लगातार नवाचार कर रही है। पंडित जी ने सनातन भारतीय अर्थ चिंतन को एक युगानुकूल नाम दिया और उसे सहजता एवं सरलता के साथ लोगों को समझाने का प्रयास किया।
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए पार्टी के प्रवक्ता डा चंद्र भूषण पांडेय ने कहा कि पुनर्जागरण के बाद भारत में तीन स्वदेशी राजनीतिक चिंतन का जो विकास हुआ है उसका आधार कही न कही भारत की पुरातन परम्परा को अवशेष हैं। इन तीनों में संस्कृति और धर्म का व्यापक स्थान है। उन तीन राजनीतिक आर्थिक चिंतन में गांधी, लोहिया और दीनदयाल का नाम आता है। इन तीनों चिंतन में भौतिक समृद्धि के साथ ही साथ आध्यात्मिक उन्नयन का भी समावेश है। यह तीनों चिंतन व्यक्ति को पूर्ण रूप से विकसित करने का चिंतन है। मैं तीनों ही चिंतन को समान मानता हूं लेकिन दीनदयाल जी का कालखंड बाद तक रहा और उनको अपने चिंतन को विकसित करने का थोड़ा समय भी ज्यादा मिला इसलिए इसे अन्य दो की अपेक्षा दीनदयाल जी को आधुनिक कहा जा सकता है।
भाजपा के मुखपत्र कमल ज्योति द्वारा आयोजित तीन दिन के इस व्याख्यान माला का संचालन कमल ज्योति के प्रबंध संपादक राजकुमार ने किया। व्याख्यान माला में धर्मेन्द्र त्रिपाठी, शैलेन्द्र पांडेय, एडवोकेट परमिंदर सिंह, समीर तिवारी, इन्द्जीत आर्य,राजेश पांडेय, संजय गौड, श्रीकृष्ण दीक्षित, अर्पित पांडेय आशुतोष मिश्रा आदि मौजूद रहे।