भाषा परस्पर संवाद का एक सशक्त माध्यम: मुख्यमंत्री

Posted on 19 January 2018 by admin

साहित्य का अर्थ ही सबका हित भाषाएं भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप होती हैं

तकनीकी शिक्षा को मातृ भाषा में उपलब्ध कराने के लिए शोध कार्यों में समयानुरूप परिवर्तन की जरूरत

साहित्य के माध्यम से ही राष्ट्र, समाज व संस्कृति के दृष्टिकोण को जाना जा सकता है

मुख्यमंत्री दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में राष्ट्र, समाज एवं संस्कृति’ के समापन कार्यक्रम में शामिल हुए

लखनऊ: 19 जनवरी, 2018press-141
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि भाषा परस्पर संवाद का एक सशक्त माध्यम है। भाषा पर मौलिक चिंतन होना आज की आवश्यकता है। आदिकाल से सांस्कृतिक इकाई के रूप में भारत की एक विशिष्ट पहचान रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय एकता की जड़ें भी हमें साहित्य में देखने को मिलती हैं। साहित्य का अर्थ ही सबका हित है। समाज की समस्याओं का निराकरण भी साहित्य में निहित है।
मुख्यमंत्री जी ने यह विचार आज यहां भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान व बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में राष्ट्र, समाज एवं संस्कृति’ के समापन कार्यक्रम के अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राष्ट्र, समाज व संस्कृति भारतीय साहित्य के मूल में है। इसलिए भाषा पर मौलिक चिंतन करते हुए भाषाओं पर कार्य योजना बनाकर शोध करने की आवश्यकता है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारतीय साहित्य समेकित संस्कृति, सामाजिक संचेतना एवं राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत है। हमारे साहित्य में भारत राष्ट्र का एक विराट भूगोल चित्रित हुआ है। प्रत्येक भाषा-बोली के रचनाकारों ने इस धरती को भारत माता के रूप में चित्रित किया है। उन्होंने कुम्भ मेले का उल्लेख करते हुए कहा कि यहां आने वाले श्रद्धालु विभिन्न राज्यों से आते हैं, जिसमें हमें राष्ट्रीय भावना की छवि दिखायी देती है। press-221
योगी जी ने विभिन्न राज्यों से आए विद्वानों से आह्वान किया कि अब आवश्यकता है कि तकनीकी शिक्षा भी मातृ भाषा में उपलब्ध हो, इसके दृष्टिगत हमें अपने शोध कार्यों में समयानुरूप परिवर्तन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भाषाएं भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप होती हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य के माध्यम से ही हम किसी भी राष्ट्र, समाज व संस्कृति के दृष्टिकोण को जान सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य सुखान्त होता है, जबकि विदेशी साहित्य का केन्द्र बिन्दु दुखान्त होता है। इससे पता चलता है कि हमारी मानसिकता सकारात्मक है।
इस मौके पर उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ0 राज नारायण शुक्ल ने कहा कि भाषा संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं की संचेतना एक है। अध्यक्षीय उद्बोधन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 आर0सी0 सोबती ने किया।
इस अवसर पर विभिन्न भाषाओं के विद्वान, अध्यापकगण तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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