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बाबा साहेब के सिद्धान्तों के विरूद्ध जातीय विद्वेष की राजनीति करती है बसपा सुप्रीमों- डाॅ0 महेन्द्र नाथ पाण्डेय

Posted on 15 January 2018 by admin

बसपा ईवीएम से जीते अपने जनप्रतिनिधियों के इस्तीफे के साथ करे ईवीएम का विरोध
लखनऊ 15 जनवरी 2018, भारतीय जनता पार्टी ने डाॅ0 अम्बेडकर के विचारों और नीतियों से विमुख बसपा सुप्रीमों को दलित वोटों का सौदागर बताया। प्रदेश अध्यक्ष डाॅ0 महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि मायावती जी ने दलित वोटों का सौदा करके ऊंची दरों पर टिकट बेचकर अकूत दौलत कमाई। बसपा सुप्रीमों का शुरू से ही मानना है कि दलित जितना प्रताड़ित होगा, बसपा का वोट उतना ही मजबूत होगा, इसी संदर्भ में उनके भतीजे अखिलेश के राज में खूब दलित उत्पीड़न हुआ लेकिन बहिन जी ने कभी उत्तर प्रदेश आने तक की जहमत तक नहीं उठाई।
प्रदेश अध्यक्ष डाॅ0 महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि बहिन जी को अपनी पूजा कराने का पुराना शौक है।जब सत्ता में थी तो मोटा चढ़ावा चढ़वाकर खुद को देवी कहा करती थी अपनी प्रतिमाएं भी लगवा ली थी। अब जब लगातार राजनीतिक रूप से अवनति की ओर है तब भी अपनी तुलना डाॅ0 अम्बेडकर जैसे महापुरूषों से कर खुद को महान बताने मंे आत्ममुग्ध है। भाजपा पर आरोप लगाने वाले सपाई-बसपाईयों की जातिवादी जहर की राजनीतिक विषबेल को सीचने वाले बुआ-भतीजे की विषबेल दलितों, पिछडों, वंचितों और शोषितो ने उखाड़ कर फेंक दी है।
डाॅ0 पाण्डेय ने कहा कि गुजरात चुनाव नतीजों की बात करने वाली बसपा सुप्रीमों को यह ज्ञात नहीं कि 22 वर्ष बाद भी गुजरात में भाजपा की सरकार है, जबकि 5 वर्ष तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाली बहिन जी दिन व दिन राजनीतिक अज्ञातवास की ओर बढ रही है। ईवीएम का विलाप करने वाली बहिन जी को अपने विधायकों एवं मेयरों से इस्तीफा दिलवाकर बैलेट से चुनाव कराए जाने की मांग करना चाहिए, साथ ही ईवीएम से जीते विधायकों के वोट से राज्यसभा पहुॅचे बसपा सदस्यों को भी इस्तीफा देकर मुखर विरोध करना चाहिए।
डाॅ0 महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने बसपा सुप्रीमों को जन्मदिन की बधाई देते हुए कहा कि बसपा को भाजपा से सीख लेते हुए डाॅ0 अम्बेडकर जी के समरसता सिद्धान्तों का राजनीतिक और व्यक्तिगत अनुसरण करना चाहिए और सामाजिक विघटन की राजनीति का त्याग करना चाहिए। राजनीतिक नफा-नुकसान से परे प्रत्येक राजनीतिक दल की जिम्मेदारी है कि वह देश और समाज के ताने-बाने को टूटने न दे। 2012, 2014, 2017, तथा निकाय चुनावों में जनता द्वारा सतत तिरस्कार के क्रम में बसपा सामाजिक विघटन की राजनीति पर उतर कर बाबा साहेब के सिद्धान्तों का गला घोंट रही है।

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