राज्य सरकार द्वारा नियमों में परिवर्तन करके निर्वाचित प्रबन्ध कमेटी के स्थान पर अंतरिम प्रबन्ध कमेटी का प्राविधान करने सम्बन्धी अध्यादेश पर सहकारी क्षेत्र में तीखी प्रतिक्रिया हुयी है। यह अध्यादेश शासन द्वारा सहकारी समितियों के प्रजातांत्रिक स्वरूप को समाप्त करने के रूप में सीधा हस्ताक्षेप है। सहकारी निर्वाचन कार्यक्रम घोषित होने के उपरान्त सहकारी समितियों के आधारभूत सिद्धांत में परिवर्तन करना सरकार की विवशता एवं हताशा को दर्शाता है तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सरकार के त्रिरस्कार पूर्ण आचरण को प्रदर्शित करता है। सहकारी निर्वाचन आयोग एवं राज्य सरकार ने समय से सहकारी समितियों के निर्वाचन कराने की विफलता को छुपाने के लिए अध्यादेश के माध्यम से जनता की आवाज को दबाने व कूचलने की कुत्सित प्रयास किया ।
निकट भविष्य में विधान मंडल का सत्र आहूत किया जा चुका है। ऐसी दशा में अध्यादेश के माध्यम से नियमों में परिवर्तन राज्य सरकार द्वारा संविधान एवं विधान मंडल की उपेक्षा दर्शाता है। सरकार द्वारा जल्दबाजी में जारी अध्यादेश नियम विरूद्ध एवं औचित्यहीन है।