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चित्रकूट की हार,भाजपा के लिए खतरे की घंटी!

Posted on 12 November 2017 by admin

सुरेन्द्र अग्निहोत्री, लखनऊ ।उत्तर प्रदेश की सीमा के चित्रकूट के उस पार मध्य प्रदेश के चित्रकूट में अभी -अभी बस पानी ही थमा है ,राम के वनवास काल की नगरी चित्रकूट की हार से 14 वर्ष से मध्य प्रदेश पर राज कर रहे भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के राज जाने का आगाज है? इस सवाल की पड़ताल में तथ्य उभर कर सामने आ रहा है कि नौकरशाह के चंगुल में फसे मुख्यमंत्री शिवराज ने जिस तरह किसान आन्दोलन को टेकिल किया उसके बाद हाथ से निकलता मध्य प्रदेश दिख रहा है ।प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नंदकुमार साय की अल्प भूमिका और बिना जनाधार के नेता होने के परिणाम देखने मिल रहे है । मध्य प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्रीयो ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कार्यकर्त्ताओ के छोटे -छोटे कार्य में भी रोडे अटकाने की आदत ताकतवर बने नौकरशाह की हो गई है ।उत्तर प्रदेश में कभी मायावती की सरकार मे पायलेट शंशाक शेखर सिंह हवाई जहाज चलाने की जगह सरकार के कैवनिट सेक्रटरी बन सरकार चलाने लगे, परिणाम सरकार विदा हो गई यही हाल मध्य प्रदेश की दिग्विजय सरकार के साथ हुआ तब उनके प्रमुख सचिव अमर सिंह इतने पावर फुल थे कि कैवनिट मंत्री उनकी चिरौरी करते वल्लभ भवन में 1998 के दौरान सभी ने देखा है।यही हाल छत्तीसगढ में भी है कि विधान सभा चुनाव हारे धर्मपाल कौशिक प्रदेश अध्यक्ष पद पर तैनात है ।रमन सिंह की अच्छी छवि और जनहित के कामकाज के आड़े नौकरशाह आ रहे है, लेकिन कार्यकर्ता कहे तो वह कहे किस्से जब वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की 13 वर्ष तक विशेष सहायक रही दिव्या मिश्रा को सिर्फ मंत्री को जनता के बीच कमजोर दिखाने के लिए दुर्ग भेज दिया गया है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ में एक नहीं अनेकानेक मामले है जो बताते है कि अब कार्यकर्त्ताओ पर नहीं नौकरशाहो की दम पर चुनावी रण जीतने की कवायद चल रही है, अखिलेश यादव, मायावती , दिग्विजय सिंह की नौकरशाही के कारण हुई हार पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया तो रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान की अच्छी छवि भाजपा का रवि नहीं बन सकते है । पूरी ताकत झोंकने के बाद बुन्देलखण्ड के चित्रकूट में जहां विकास के लिए प्रतिबद्ध राज्य सरकार और केंद्र के विशेष पैकेज खर्च करने के बाद हार का ठीकरा फोड़ने के लिए कोई और विकल्प नहीं है सिर्फ जिम्मेदार सरकार है ।

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