उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में हिन्दी दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन गुरूवार, 14 सितम्बर, 2017 को यशपाल सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में किया गया।
डाॅ0 कन्हैया सिंह, पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में वक्ता के रूप में डाॅ0 शंकर लाल पुरोहित, भुवनेश्वर, डाॅ0 चन्द्रमोहन नौटियाल, लखनऊ आमंत्रित थे।
दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पार्पण के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति एवं स्वागतोपरान्त डाॅ0 लक्ष्मी शंकर मिश्र ‘निशंक‘ के गीत ‘‘शैशव में नव चेतना जगी, ‘आत्मा‘ की है हुंकार भरी। यह संघर्षों के बीच पली, ‘रासांे‘ की वाणी से सँवरी‘‘ की संगीतमयी प्रस्तुति डाॅ0 पूनम श्रीवास्तव एवं तबले पर श्री अनन्त कुमार प्रजापति व हारमोनियम पर श्री माहेश्वर दयाल नागर ने सहयोग दिया।
मंचासीन अतिथियों का स्वागत करते हुए श्री षिषिर, निदेषक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा - आज हिन्दी में प्रचुर मात्रा में साहित्य लिखा जा रहा है। व्यापारिक क्षेत्रों में भी हिन्दी के बिना सफलता असम्भव है। हिन्दी सर्वगुण सम्पन्न भाषा है। सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी अपना महत्वपूर्ण स्थान बना रही है। कम्प्यूटर पर भी हिन्दी भाषा में व्यापक कार्य हो रहा है। हिन्दी भाषा वह भाषा है जो ‘अ‘ से अनपढ़ से शुरू होती है और ‘ज्ञ‘ से ज्ञानी बना कर छोड़ती है।
वक्ता के रूप में भुवनेश्वर से पधारे डाॅ0 शंकर लाल पुरोहित ने ‘अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी के विकास की संभावनाएं एवं चुनौतियां‘ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा - हिन्दी भाषा को हिन्दी व हिन्दी व अहिन्दी भाषी क्षेत्रों बाँटना उचित नहीं है। अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी भाषा का विकास हो रहा है। भाषाओं के क्षेत्रों में अनुवाद के कार्य भी बहुत हो रहे हैं। अज्ञेय विद्यानिवास मिश्र, बालशौरि रेड्डी ने हिन्दी भाषा के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। आज देश ही नहींे विदेशों में भी हिन्दी बढ़ रही है। हिन्दी को आज वैश्विक स्वरूप मिल रहा है। आज चीन व अमेरिका भी हिन्दी भाषा पढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। हिन्दी को राजनीतिक कीचड़ से निकालना होगा। भाषा को सीमा में बाँधा नहीं जाना चाहिए। हिन्दी को भाषा के मूलधार में रखना होगा। भारत का द्वार हिन्दी है। हिन्दी भाषा का विस्तार होना चाहिए। हर भारतीय के नस-नस में हिन्दी बसती है। भाषा ईश्वर की देन है इसमें भेद न करें।
‘विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्रों में हिन्दी का वर्तमान परिदृश्य एवं भविष्य‘ विषय पर व्याख्यान देते हुए डाॅ0 चन्द्रमोहन नौटियाल ने कहा -हिन्दी विज्ञान लेखन में कुछ समस्याएँ अवश्य हैं। उच्च शिक्षा मंे मिश्रित भाषा में विज्ञान का पठन-पाठन होना चाहिए। आज हिन्दी में विज्ञान लेखन हो रहा है। जो भाषा व्यवसाय से नहीं जुड़ती है उसके भविष्य पर शंका होती है। हिन्दी को व्यवसाय से जोड़ना होगा। हिन्दी के माध्यम से विज्ञान को बढ़ावा मिलना चाहिए। फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी में हिन्दी भाषा फैल रही है। हिन्दी में शोध पत्रिकाओं का हो रहा है। विभिन्न विज्ञान पत्रिकाएँ आज प्रकाशित हो रही हैं। विज्ञान को समझने के लिए हिन्दी भाषा सबसे सशक्त माध्यम है।
अध्यक्षीय सम्बोधन करते हुए डाॅ0 कन्हैया सिंह, पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कहा -हमें अपनी कमियों पर भी विचार करना चाहिए। गंगा के देश में गंगा ही नहीं सूखी है हिन्दी भी सूख रही है। आजादी के पहले हिन्दी के बारे में सोच रहे थे। उससे ज्यादा आजादी के बाद हिन्दी की उपेक्षा अधिक हुई है। विज्ञान विषय की पुस्तकें लिखी जा रही है लेकिन पढ़ी कम जा रही हैं। कहने का तात्पर्य है आज हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। हमें हिन्दी मानसिकता पहले बनानी होगी। विदेशों में शोध वहाँ की भाषा में करना होता है। हमें अपने देश में हिन्दी भाषा को शोध, विज्ञान, कृषि, कानून, अभियांत्रिकी से जोड़ना होगा। हिन्दी भाषा नहीं यह एक संस्कृति है।
समारोह का संचालन एवं अभ्यागतों के प्रति आभार डाॅ0 अमिता दुबे, सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने किया।