Categorized | लखनऊ.

तुलसीदास की मानस में खोया मन

Posted on 26 August 2017 by admin

एकल अभिनय से तुलसीदास के जीवन का सजीव चित्रण

शनिवार की शाम तुलसीदास को नजदीक से जानने, समझने तथा उनकी कृतियों को महसूस करने का था। मंच पर विश्व विख्यात निर्देशक व कलाकार पद्मश्री शेखर सेन थे। महानगर इनकी प्रतिभा का कायल हो उठा। तीन घंटे तक तुलसीदास की श्री रामचरितमानस में हर मन खो गया। मंत्री से लेकर संतरी और आमजन से अमीर सब के सब तुलसीदास में रम गए। इस तुलसीदास को शानदार अंदाज में शेखर सेन ने जीया और सबको राम-राम, सीता-राम में खोने पर मजबूर कर दिया। काशी से अयोध्या का दर्शन कराया तो समाज को भक्ति के रंग में रंगने का भी संदेश दिया।

दिव्य प्रेम सेवा मिशन के सेवा प्रकल्पों के सहयोगार्थ आयोजित एक पात्रीय संगीतमय नाटक के पात्र शेखर सेन शाम साढ़े चार बजे मंच पर आए। इसके पहले थोड़ी बहुत औपचारिकता निभाई गई। दर्शक दीर्घा में मौजूद मुख्‍य अतिथि उत्‍तर प्रदेश के उपमुख्‍यमंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष केशव प्रसाद मौर्य विशिष्‍ट अतिथि राज्‍य मंत्री स्‍वतंत्र प्रभार डा. महेन्‍द्र सिंह, पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया, दिव्‍य प्रेम सेवा मिशन के आशीष जी, महापौर सुरेश अवस्‍थी, संयोजक संजय चतुर्वेदी का स्वागत किया गया। इस अवसर पर दिव्‍य प्रेम सेवा मिशन के कार्यकर्ताओं को सम्‍मान भी किया गया। मुख्‍य अतिथि के तौर पर केशवप्रसाद मौर्य ने कहा कि तुलसीदास ने भगवान राम के चरित्र को गाया था। आज शाम शेखर सेन जी के माध्‍यम से हम एक बार फिर से तुलसी के राम को जाननेजा रहे हैं। ऐसे समारोह सामाजिक और आध्‍यत्मिक चेतना को बढ़ाते हैं और समाज में सकारात्‍मक ऊर्जा को भरते हैं। उन्‍होंने कहा कि कुष्‍ठ रोगियों की सेवा करने वाली दिव्‍य प्रेम सेवा मिशन सामाजिक कार्यो के लिए प्रेरित करती है। समारोह के विशिष्‍ट अतिथि महेन्‍द्र सिंह ने कहा कि जिस तरह से तुलसी ने राम को जीया है वैसे ही मिशन के काम में आशीष भैया पूरे मनोयोग से ल्रगे हैं। हम इनको नमन करते हैं कि आज उनके कारण हम सब तुलसीदास को नजदीक से महसूस करने जा रहे हैं। परिचय, स्वागत व भाषण की औपचारिकता के बाद सब कुछ स्थिर सा हो गया। मंच पर शेखर सेन और सामने शांतचित से बैठी सैकड़ों की भीड़।

ठुमक चलत रामचंद्र… से शुरुआत

तुलसीदास के जीवन को उनके दोहों के साथ आगे बढ़ाया। ठुमक चलत रामचन्द्र…से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। आधी रात को ससुराल पहुंचे तुलसीदास को पत्नी रत्नावली द्वारा मिली झाड़ का दृश्य कमाल का था। उन्होंने तुलसी दास के साथ पत्नी रत्नावली के भाव की जीवंत अभिव्यक्ति की। रत्नावली का यह कहना-जितना प्रेम इस हाड़ मांस के शरीर के लिए है, अगर उतना प्रेम राम के लिए हो तो मैं भी अपने आप को गौरवशाली महसूस करूंगी। इस डांट के बाद तुलसीदास के जीवन में आए बदलाव को शेखर सेन ने बेहद संजीदगी से मंच पर उतारा। राम और हनुमान के साथ उनका सीधा संवाद इस शाम को यादगार बना दिया।

मनसूखा की आवाज लगाते तुलसीदास के रूप में मौजूद शेखर सेन ने अपने जन्म से अंत तक के सफर का शानदार अंदाज में मंचन किया। प्रभु श्रीराम के बाल रूप का दर्शन और बजरंग बली का हर समय साथ पाकर तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस लिखा। विनय पत्रिका रची। श्री हनुमान चालीसा गढ़ी। इस चालीसा के हर दोहे से पहले घटित घटनाक्रम को तुलसीदास बने शेखर ने चौपाइयों के माध्यम से सुनाया। सुगंध राम की, स्पर्श राम का…कुछ ऐसे ही हो चुके थे मंच पर मौजूद तुलसीदास। दो साल, सात माह 26 दिन में श्रीरामचरित मानस को पूरा करने के दौरान जो कुछ सामने आया वह अतीत का एक ऐसा पन्ना था, जिससे आम जन अनभिज्ञ था।

रामचरित मानस और हनुमान चालीसा लिखने के बाद जब तुलसीदास के शरीर में गिल्टियां निकली तो हनुमान ने कारण बताया और विनय पत्रिका लिखने का सुझाव दिया। राम शलाका तुलसीदास ने लिखी तो भक्तों के मन की शंका का समाधान इससे कराया। मंच पर जैसे जैसे शेखर सेन तुलसीदास में खोते रहे दर्शक भी राम मय होते चले गए। मंचन में ही श्री हनुमान के एक हाथ में पर्वत और दूसरे में गदा का कारण भी बता दिया। पर्वत को धैर्य और गदा को वीरता माना। बोले व्यक्ति में दोनों जरूरी है। गृहस्थ जीवन की बंदिशें, पत्‍‌नी प्रेम, सन्यासी जीवन और अंतिम समय में उसी पत्‍‌नी को अपने समस्त पुण्य समर्पित करने का जिस अंदाज में शेखर सेन ने मंचन किया उसकी तारीफ में शब्द भी कम पड़ जाएंगे। एक अद्भत, अद्वितीय और अचंभित करने वाले इस मंचन के बाद शेखर ने सबको कष्ट नहीं सुख में भी राम भजन के गुणगान की नसीहत दी।

भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि हूं : सेन

अपने एकपात्रीय संगीत नाटक की बदौलत दुनियाभर में मशहूर शेखर सेन ने कहा कि वे खुद को भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि मानते हैं। उन्होंने तुलसीदास, कबीर दास, सूरदास, स्वामी विवेकानंद सरीखे श्रेष्ठ व्यक्तित्वों को अपनी कला के जरिए मंच दिया है। सेन ने कहा कि 1979 से अब तक उन्होंने देश-दुनिया में 1500 से ज्यादा कार्यक्रम किए, जिसमें वे गायक और संगीतकार की भूमिका में रहे। लेकिन 1998 में उनके कला सफर में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया और उन्होंने संगीत के साथ ही नाट्य विधा को भी अपनाया। आज के दौर में अपने एकपात्रीय संगीत नाटक की बदौलत वे न केवल सूरदास, कबीर और तुलसी से नई पीढ़ी को रूबरू करा रहे हैं, बल्कि अपनी आजीविका भी चला रहे हैं। बकौल शेखर सेन, यह काम आसान नहीं है। पिछले 20 साल से रोजाना 8 घंटे अभ्यास करते हैं, तब जाकर ऐसा परफॉर्मेंस दे पाते हैं। मूल रूप से रायपुर के रहने वाले शेखर सेन को कला और संगीत विरासत में मिली है।

जैसे मां बच्चों को कहानी सुनाती है….

एकपात्रीय शैली के बारे में सेन ने कहा कि यह उसी तरह की शैली है, जैसे मां बच्चों को कहानियां सुनाया करती है। उन कहानियों में अभिनय के साथ संगीत भी होता है, जिससे बच्चा बेहद प्रभावी तरीके से जुड़ता है। कहानी कहने की इसी कला को वे अपना मजबूत पक्ष मानते हैं।

दिव्‍य प्रेम सेवा मिशन द्वारा आयोजित इस नाट्य संध्‍या का संचालन हाई कोर्ट के अधिवक्‍ता श्री प्रकाश सिंह ने किया और आभार ज्ञापन भाजपा के प्रदेशमंत्री अमर पाल मौर्य ने किया।

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

April 2024
M T W T F S S
« Sep    
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
2930  
-->









 Type in