धर्म गुरुओं ने मञ्च से फ़िरकापरस्ती की राजनीती से बचने को चेताया।
महोदय आज दिनांक 6 अगस्त 2017 दिन रविवार को साझा सँस्कृति मंच और जॉइंट एक्शन कमेटी BHU द्वारा आयोजित ‘ धर्म सँसद ‘ में हिँसा नफरत और अशांति के ख़िलाफ़ बनारस की गँगा जमुनी तहज़ीब को सँजोने की बात करी गयी। धर्म गुरुओं ने मञ्च से फ़िरकापरस्ती की राजनीती से बचने को चेताया। सिगरा स्थित चाइल्ड लाइन अश्मिता संस्थान में आयोजित कार्यक्रम का आधार वैश्विक नफरत और हिंसा का प्रतिनिधि दिन और घटना रही , ‘ आज ही के दिन अमेरिका ने 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा नामक जापानी शहर पर लिटिल मैन नामक यूरोनियम बम द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गिराया था। इस बम के प्रभाव से 13000 किमी में तबाही फ़ैल गयी , साढ़े तीन लाख लोगो में एक लाख चालीस हजार लोग एक झटके में मर गए। ये बूढ़े बच्चे और महिलाए थे कुल मिलाकर आम शहरी थे। 20000 फारेनहाइट का ताप पैदा हुआ था विस्फोट से , जंगल पेड़ मनुष्य घर सब कागज की तरह जल गए थे , पानी के श्रोत भाप बनकर उड़ गए थे। जो पहले झटके में मरे उन्हें अधिक कष्ट नही उठाना पड़ा था, बाकी जो दूर थे वो मर्मान्तक अंत पाए और अगले कई सालों तक वह क्षेत्र अभिशप्त हो गया विकलांगता कैंसर और न जाने किन किन बीमारियों के लिए। और ये दुर्घटना हमें यह स्मरण रखने को कहती है की वैश्विक स्तर पर इतने पाशवी कृत्य से गुजरे है जब इंसान को गाजर मूली की तरह काट के रख दिया गया और इंसानियत तार तार हो गयी थी। वक्ताओं ने कहा की हाल ही में इजराइल यात्रा के दौरान होलोकॉस्ट म्यूजियम में प्रधानमंत्री मोदी ने विजिटर्स डायरी में लिखा है की ” एक ऐसी दुष्टता की मर्मस्पर्शी याद जिसे बताने के लिए शब्द नहीं।” 1933 से 1939 के बीच 60 लाख लोगो को मारा गया था। नस्ल के नाम पर पहचान को बुरा बताकर लोगो को गैस चैंबरों में ज़िन्दा जलाया गया और इस काम को करने वाला सनकी इंसान का नाम हिटलर था। इतिहास के रक्तरंजित किताबो के पन्ने ऐसे ही सनकियों की गाथाओं से भरे पड़े है। धर्म के नाम पर तो कभी जाती के नाम पर या फिर सम्पत्ति या फिर राजकुमारी प्रेमिका से विवाह के नाम पर भयंकर कत्ले आम किये गए है। इतिहास की महत्वाकांक्षा और स्वार्थ ने मानव सभ्यता की रीढ़ को सीधी करने के बजाय हमेशा झुका झुकाकर विश्व के भूगोल को ही गोल बनाने की कोशिश किया है। सिकंदर की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए न जाने कितने बच्चे अनाथ हुए कितनी स्त्रियाँ बेवा हुई इसका हिसाब सिकंदर महान से कौन लेगा ? मध्य एशिया के आक्रांताओं से उनके लालच और साम्राज्य विस्तार वहशी पँजे की ज़द में दबे कुचले मानवता की बात की जाए तो क्या जवाब होगा ? आश्चर्य है की इतिहास के इन सनकियों को तत्कालीन समाज देवता बनाकर पूजता था, सर पर बैठाता था।
Not In My Name ‘ मुहीम के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में हिँसा, राजनीती और साम्प्रदायिकता के अंतरसंबन्धों की भी पड़ताल की गयी और कहा गया की हिंदुस्तान मे जब हम साम्प्रदायिकता की जड़ो को तलाशते हैं तो हम ये तय नही कर पाते की वो कौन सा वर्ष चुने, जब देश मे साम्प्रदायिक दंगे ना हुए हों। आज़ादी के बाद के सरकारी आंकड़ो के अनुसार मुल्क मे हजारो हजार दंगे हो चुके हैं और कोई भी वर्ग इन दंगों से अछूता नही रहा है. जब हम साम्प्रदायिक दंगों के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं की व्यापक स्तर पर पहले साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार आजादी की लड़ाई के अगुआ रहे महात्मा गांधी हुए थे. ताउम्र साम्प्रदायिकता के खिलाफ आगाह करते रहने व लड़ते रहने वाले गाँधी को मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप मे गोली मार दी गई.
कट्टर धार्मिक विचारधारा अगर सत्ता को परिभाषित करने लगे तो उसके लिए एक कट्टर नागरिक किसी साधारण नागरिक से ज्यादा फायदेमंद होता है. वर्तमान समय मे राजनीति का पूरा ध्यान आम नागरिक को एक कट्टर नागरिक मे बदलने की है. इस प्रक्रिया के तहत उनके निशाने पर वो हर चीज है जो आम नागरिकों के रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ती हो. शिक्षा, मीडिया, फौज, पुलिस, विधायिका, न्यायपालिका, अन्य संवैधानिक संस्थान इत्यादि, अलग-अलग तरीके से इन सभी संस्थाओं को साम्प्रदायिक बनाया जा रहा है। धर्म गुरुओं ने बनारस की गंगा जमुनी तहजीब और साहचर्य जीवन के भाव को संजोने पर जोर दिया और कहा की बुराई सबमे होती है हर समय लालची और महत्वकांक्षी दुष्ट विचार समाज में सक्रिय रहते है लेकिन सज्जन व्यक्ति का कर्तव्य है की वह अपने देश समाज के समता सहिष्णुता वाले इतिहास उदाहरणों को याद करे और उन पर चले न की निगेटिव चीजों पर प्रतिक्रिया करे और वैमनष्य फैलाए। संकट मोचन बम कांड के समय महंत वीरभद्र मिश्र और मुफ़्ती ए शहर ने इस शहर को साम्रदायिक तनाव से बचाया था और विस्फोट के तत्काल बाद शन्ति मार्च लेकर सड़को पर उतर आए थे और बनारस किसी बुरी स्मृति की जगह आज गर्व बोध से वह दिन याद करता है। काशी कबीर और रैदास की नगरी रही है यंहा से बढ़ ने संदेश दिया है यंहा बिस्मिल्लाह की शहनाई बजी है। और यही संस्कृति भारतीय संविधान की आत्मा है , जब हम गौरव से कह रहे होते है की हम एक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य है और हमारे देश में सभी पंथो मतों सम्प्रदायो और धर्मो को राज्य द्वारा समान भाव से देखा जाएगा। सहिष्णुता और साहचर्य को बढ़ावा देने वाला संविधान ही हमारा प्रकाशपुँज है। भीड़ द्वारा की जा रही हिंसा देश के भाईचारे वाले ताने बाने के लिए नुकसान दायक है और इसके खिलाफ ये समय एकजुटता का है. सभी धर्मों के प्रतिनिधियों को एक होकर साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी, उसे हराना होगा वर्ना वो समय दूर नही जब हमारी सड़कों पर गाँधी से ज्यादा गोडसे घूमते नजर आएं. गँगा ज़मुनी तहज़ीब के संवाहक शहर पर फिर से ज़िम्मेदारी आन पड़ी है मजहबी और जातीय कट्टर साम्प्रदायिक शक्तियों को हराने के लिए अपने गलियों में खिड़कियों को खोलना होगा और ताज़ी हवा के झोंको के बीच सेवइयों और मिठाइयों को बाँटना होगा। पान की अडियो को गुलजार करना होगा।
हिरोशिमा के लिए 2 मिनट का मौन भी रखा गया और युद्धेष बेमिसाल के जनगीत और प्रेरणा कला मञ्च के गीत हुए कार्यक्रम में।
कार्यक्रम का सञ्चालन जागृति राही , स्वागत सतीश सिंह ,धन्यवाद सुरेन्द किशोर एडवोकेट ने किया सभा मे प्रमुख रूप से अग्रलिखित लोग मौजूद रहे ज्ञान प्रकाश जी कबीर कीर्ति मंदिर, मैडम मार्था बहाई धर्म प्रतिनिधि, भंते प्रियदर्शी बुद्ध मंदिर सारनाथ, मुफ़्ती हसन नक्शबंदी, मुफ़्ती ए शहर बातिन साहब, भाई अमरप्रीत जी सिख गुरु द्वारा साहिब नीचीबाग, प्रोफेसर प0 सुधाकर मिश्र विभागाध्यक्ष वेदांत विभाग सम्पूर्णनाद सँस्कृत विवि , फादर दिलराज वल्लभाचार्य पांडेय, प्रोफेसर महेश विक्रम सिंह प्रो0 स्वाति, चिंतामणि सेठ, डॉ लेनिन रघुवंशी, अनुप श्रमिक, डॉ आनंद प्रकाश तिवारी, रवि शेखर, दिवाकर सिंह, रामजनम भाई, एस0पी0 राय, संजय भट्टाचार्य एडवोकेट , फादर दयाकर, एकता शेखर, धनञ्जय, गजेंद्र सिंह, मुकेश उपाध्याय, डॉ नीता चौबे, विनय सिंह, दीनदयाल, संजीव सिंह, एजाज भाई, प्रेम सोनकर, आकाश सिंह राजेश्वरी देवी आदि प्रमुख रहे।