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हिंदू धर्म में कर्म योग अथवा कर्म मार्ग अध्यात्म का मार्ग है, जो ‘आकांक्षा से रहित होकर उचित समय पर उचित कार्य करने’ पर बल देता है: मुख्यमंत्री

Posted on 07 August 2017 by admin

भगवान बुद्ध के तीनों महत्वपूर्ण उपदेश धम्मम् शरणम् गच्छामि,संघम् शरणम् गच्छामि तथा बुद्धम् शरणम् गच्छामि तत्कालीन परिस्थितियों के साथ-साथ आज भी प्रासंगिक हैं

उत्तर प्रदेश में भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों को बौद्ध सर्किट के माध्यम से जोड़ने का काम किया जा रहा है, जिससे देश-विदेश के पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं को भगवान बुद्ध से जुड़े इन स्थलों तक पहुंचने में आसानी होगी

प्राचीन भारतीय दर्शन, प्रतिक्रिया देने से पूर्व दूसरों की
मनःस्थिति तथा विचार प्रक्रिया को समझने पर बल देता है

हमारी परंपरा में ऐसे अनेक उदारहण हैं, जहां तलवार की नोक पर किसी के विचार थोपने के स्थान पर विचारों के आदान-प्रदान को सर्वश्रेष्ठ साधन माना गया है

धम्म के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए
भगवान बुद्ध के अष्टांग मार्ग को जानना और अपनाना जरूरी है

विश्व की विभिन्न संस्थाओं पर एक गुरुतर दायित्व आ पड़ा है कि वे
विश्व में आपसी सहयोग एवं समन्वय स्थापित कर हर नागरिक में
पर्यावरण को लेकर एक चेतना जाग्रत करने का प्रयास करें

म्यांमार की पावन धरती पर कदम रखकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूंः मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री ने म्यांमार के यांगून नगर में आयोजित ‘संवाद’ कार्यक्रम को सम्बोधित किया
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने आज म्यांमार के यांगून नगर में आयोजित ‘संवाद’ कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि हिंदू धर्म में कर्म योग अथवा कर्म मार्ग अध्यात्म का मार्ग है, जो ‘आकांक्षा से रहित होकर उचित समय पर उचित कार्य करने’ पर बल देता है। मुक्ति के इस मार्ग पर सफलतापूर्वक चलने के लिए आत्मचेतना तथा आत्मबोध की आवश्यकता होती है, और हम सभी को ज्ञान का मार्ग दिखाने के लिए तथागत, जिन्हें भगवान बुद्ध के रूप में पूजते हैं, से उत्तम मार्गदर्शक कौन हो सकता है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भगवान बुद्ध के तीनों महत्वपूर्ण उपदेश धम्मम् शरणम् गच्छामि, संघम् शरणम् गच्छामि तथा बुद्धम् शरणम् गच्छामि तत्कालीन परिस्थितियों के साथ-साथ आज भी प्रासंगिक हैं। उत्तर प्रदेश के लिए यह गौरव का विषय है कि भगवान गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण स्थल यहां अवस्थित हैं। वाराणसी के समीप स्थित सारनाथ में भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। तथागत की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर सहित श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कौशाम्बी, संकिसा आदि प्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक स्थल भी हमारे प्रदेश में स्थित हंै। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बनी एवं तपस्या स्थली बोधगया भी यहां से दूर नहीं हैं।
योगी जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों को बौद्ध सर्किट के माध्यम से जोड़ने का काम किया जा रहा है, जिससे देश-विदेश के पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं को भगवान बुद्ध से जुड़े इन स्थलों तक पहुंचने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि नाथ संप्रदाय के अनुयायी साझी हिंदू एवं बौद्ध दार्शनिक तथा धार्मिक परंपरा का उत्तम उदाहरण हैं। महायोगी गुरु गोरखनाथ, जो इस परंपरा के आरंभिक गुरु थे, महायान बौद्ध परंपरा में 84 महासिद्धों में माने जाते हैं। तिब्बती बौद्ध परंपरा में उन्हें गोरक्ष भी कहा जाता है। हिंदू धर्म तथा बौद्ध धर्म दोनों ही प्राच्य परंपरा के अटूट अंग हैं, जो दूसरों के विचारों को सुनने में विश्वास करते हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्राचीन भारतीय दर्शन, प्रतिक्रिया देने से पूर्व दूसरों की मनःस्थिति तथा विचार प्रक्रिया को समझने पर बल देता है। वह किसी भी व्यक्ति के विचारों को पूरी तरह सुनने से पहले उसके विषय में कोई धारणा बनाने की अनुमति भी नहीं देता। उसके बाद ही वह दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति पर्याप्त सम्मान प्रदर्शित करते हुए अपना दृष्टिकोण रखने देता है, क्योंकि वह मानता है कि परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी संपूर्ण नहीं है। इस प्रकार ‘द्वंद्व’ के स्थान पर ‘मीमांसा’ अथवा ‘विवेचना’ को श्रेष्ठ कहा गया है। इसके लिए 4 चरण बताए गए हैं, जो उपरोक्त चर्चा की सटीक व्याख्या करते हैं। पहला श्रवण अर्थात् ध्यानपूर्वक सुनना, दूसरा मनन अर्थात् गहन मीमांसा, तीसरा चिंतन अर्थात् विचार करना तथा चैथा कीर्तन अर्थात् अपने विचार प्रस्तुत करना है।
योगी जी ने कहा कि हमारी परंपरा में ऐसे अनेक उदारहण हैं, जहां तलवार की नोक पर किसी के विचार थोपने के स्थान पर विचारों के आदान-प्रदान को सर्वश्रेष्ठ साधन माना गया है। सभी जानते हैं कि अद्वैत दर्शन के अनुकरणीय प्रतिपादक आदि शंकराचार्य ने पूर्व मीमांसा परंपरा के अनुयायी एवं उद्भट विद्वान मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ किया था। कहा जाता है कि दोनों के बीच शास्त्रार्थ कई महीनों तक चलता रहा था। विचारों के जीवंत एवं शांतिपूर्ण आदान-प्रदान की यही परंपरा हमें विरासत में प्राप्त हुई है, जो वर्तमान विश्व में दुर्लभ हो गई है। शांतिपूर्ण चर्चा को ही सदैव मार्गदर्शक सिद्धांत माना जाना चाहिए और चर्चा के सभी मार्ग खुले रखकर द्वंद्व से यथासंभव बचा जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री जी ने महाकाव्य महाभारत का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें उल्लिखित है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त शक्तियां एवं सिद्धियां होते हुए भी विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए कौरवों को अंतिम क्षण तक मनाने का प्रयास किया। इसके लिए वे स्वयं दूत एवं मध्यस्थ बनकर हस्तिनापुर के राजदरबार में पहुंचे। वह भगवान थे, वह अकेले ही पांडवों की अभिलाषा पूरी कर सकते थे, किंतु वह झुक गए क्योंकि शांति का कोई विकल्प नहीं होता। भगवान जानते थे कि ऐसा कोई भी प्रयास करना ही चाहिए, जिसका परिणाम शांति हो। इसी प्रकार भगवान बुद्ध द्वंद्व टालने के प्रबल समर्थक थे। उनका सदियों पुराना संदेश था कि ‘हजारों युद्धों में विजय प्राप्त करने से श्रेयस्कर स्वयं पर विजय प्राप्त करना है’ और यह संदेश आज भी प्रासंगिक और सही है।
योगी जी ने कहा कि धम्म के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए भगवान बुद्ध के अष्टांग मार्ग को जानना और अपनाना जरूरी है। उनके द्वारा बताए गए अष्टांग मार्ग में सम्यक दृष्टि एवं सम्यक संकल्प सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। तथागत की इसी शिक्षा को अंगीकार करके आपसी विवादों को सुलझाने एवं पर्यावरण को सुधारने में मदद मिलेगी। पर्यावरण का संरक्षण व संवर्द्धन काफी व्यापक एवं बहुआयामी शब्द है। हमारे आसपास की वे सभी वस्तुएं, जो जीवन की उत्पत्ति एवं विकास के लिए सहायक होती हैं, वे पर्यावरण के तहत ही आती हैं। इनमें वातावरण, जल, वायु, पृथ्वी, वनस्पतियां, जीव-जन्तु आदि सभी को समाहित किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि एक दृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति के सभी पदार्थ एक-दूसरे पर निर्भर भी हैं और पूरक भी। इनमें परस्पर समन्वय स्थापित रहने पर ही प्रकृति में संतुलन बना रह सकता है। इस संतुलन को बनाए रखने में मनुष्य की सबसे अहम भूमिका है। मनुष्य की विचारशीलता को और अधिक परिमार्जित करने एवं संवेदनशील बनाने में धर्म की विशेष भूमिका है। लेकिन यह भी एक कटु सच्चाई है कि वर्तमान में नयी पीढ़ी के पास अपने धार्मिक ग्रन्थों का गहन अध्ययन करते हुए उनके अनुरूप अनुसरण करने का समय नहीं रह गया है। इसलिए प्रकृति को समझने की संवेदना भी कम होती जा रही है, जिसका सीधा प्रभाव हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है।
योगी जी ने कहा कि विश्व की विभिन्न संस्थाओं पर एक गुरुतर दायित्व आ पड़ा है कि वे विश्व में आपसी सहयोग एवं समन्वय स्थापित कर हर नागरिक में पर्यावरण को लेकर एक चेतना जाग्रत करने का प्रयास करें। मानव सभ्यता के संरक्षण एवं आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति के लिए यह न केवल लाभकारी बल्कि एक अनिवार्य शर्त भी है। अब लगभग यह स्पष्ट हो चुका है कि विश्व में शान्ति, समन्वय और सुरक्षा के लिए राष्ट्राध्यक्षों की पहल की अपेक्षा जनता की जागरूकता एवं आपसी संवाद अधिक परिणामोत्पादक होता है। जनता के सहयोग के बिना न तो हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं और न ही विभिन्न धर्माें एवं राष्ट्रों के बीच शान्ति एवं समन्वय कायम कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि बौद्ध धर्म में अभिधम्मपिटक और हिंदू धर्म में षड्दर्शन का कहना है कि निराकार से ही आकार अर्थात् संपूर्ण जगत की उत्पत्ति सबसे मूलभूत आध्यात्मिक घटना है। इससे हमें ध्यान आता है कि हम सभी एक ही ऊर्जा स्रोत से उत्पन्न हुए हैं और अन्य किसी भी प्रकार की भिन्नता का कोई अर्थ नहीं है। इससे हम स्वाभाविक रूप से अपने आसपास के वातावरण के साथ एकाकार हो जाते हैं। भगवान बुद्ध का उनके प्रथम पांच शिष्यों को दिया गया पहला उपदेश भी किसी भी प्रकार अति से दूर रहने के सुझाव के साथ आरंभ होता है, और उसके लिए उन्होंने ‘मध्यम पद मार्ग’ का प्रतिपादन किया, जिसमें लोगों को स्वर्णिम माध्य का अनुसरण करने की शिक्षा दी गई है। यह स्वर्णिम माध्य अथवा संतुलन विकास की आवश्यकता एवं मूल वातावरण के संरक्षण के मध्य होना चाहिए।
योगी जी ने कहा कि सत्य की प्राप्ति होने के बाद भगवान बुद्ध इस सत्य को लोगों के साथ साझा करना चाहते थे। उन्हें ज्ञात था कि कार्य दुष्कर है किंतु उनके भीतर मानवता के प्रति इतनी करुणा थी कि वह बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाए। लोगों के बीच अपने विचारों के प्रसार हेतु उन्हें निष्ठावान शिष्यों की आवश्यकता थी। हमें भगवान बुद्ध, भगवान राम, भगवान श्रीकृष्ण की विरासत मिली है। उत्तर प्रदेश की समृद्ध, सांस्कृतिक विविधता और विरासत के संरक्षण पर राज्य सरकार विशेष ध्यान दे रही है। प्रदेश में रामायण सर्किट, कृष्ण सर्किट एवं बौद्ध सर्किट का विकास किया जा रहा है। वर्ष 2019 में तीर्थराज प्रयाग में अर्द्ध कुम्भ आयोजित होने जा रहा है, जिसमें करोड़ांे श्रद्धालु सम्मिलित होंगे। यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक एवं आध्यात्मिक आयोजन होगा, जो बंधुत्व एवं सहअस्तित्व का एक जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत करेगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि इस आयोजन से पूर्व 03 व 04 सितम्बर, 2015 को नई दिल्ली में इस श्रृंखला का पहला आयोजन सम्पन्न हुआ था, जिसमें भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भी सम्मिलित हुए थे। इसके तत्काल बाद 05 सितम्बर, 2015 को आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने बोधगया के बौद्ध समागम में कहा था कि हिन्दू व बौद्ध दर्शन के मूल और समान सिद्धान्तों के अंगीकरण के कारण काॅन्फ्लिक्ट अवाॅयडेन्स तथा इनवाॅयरमेन्ट काॅन्शियसनेस जैसे विषयों का समाधान हो सकता है। इन सिद्धान्तों को अपनाकर विश्व में शान्ति एवं पर्यावरण का संरक्षण व संवर्धन सम्भव है।
योगी जी ने कहा कि म्यांमार की पावन धरती पर कदम रखकर वे गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि म्यांमार वह देश है, जिसे अब भी ब्रह्मदेश पुकारा जाता है, जो सभी भारतीयों के हृदय के बहुत निकट है। उन्होंने कहा कि हमारे देशवासी धम्म और धर्म द्वारा एक दूसरे से बंधे हैं। इस अवसर पर उन्होंने उपस्थित विशिष्ट जनों तथा अन्य लोगों को विविधता एवं सद्भाव की विशिष्ट पहचान रखने वाले उत्तर प्रदेश के भ्रमण के लिए आमंत्रित भी किया।

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