माननीय अध्यक्ष जी मैं आपका आभारी हूॅं कि आपने मुझे बजट की चर्चा में बोलने का समय दिया। नेता विपक्ष ने बजट पर चर्चा के दौरान कहा था कि यह बजट दिशाहीन है, किसान विरोधी है, छात्र विरोधी ह,ै महिला और मजदूर विरोधी है।
अध्यक्ष जी, समस्या यह है कि माननीय नेता विपक्ष टी-20 का मैच खेलना चाहते हैं लेकिन यह पाॅंच दिवसीय मैच है जो हर एक साल के समान होता है पाॅंचवा साल निर्णायक होता है और ठोस होता है। ‘‘इसलिए जनता के लिए जिसके मन में प्यार नहीं होता, जनतन्त्र में वह कुर्सी का हकदार नहीं होता है‘‘। यह शब्द मेरे नहीं हैं। यह शब्द श्री अखिलेश यादव जी के हैं। जब उन्होंने 2016-17 का बजट पेश किया था। शायद उन्हें अपनी कथनी और करनी में अन्तर दिख गया था जिसके कारण उन्होंने इन शब्दों का इस्तेमाल किया, लेकिन मेरा आग्रह है कि बजट का विश्लेषण टी-20 की तरह नहीं पाॅंच दिवसीय क्रिकेट मैच की तरह करना चाहिए।
मा0 अध्यक्ष जी, बजट कोई सत्ता पक्ष या विपक्ष का नहीं होता यह 22 करोड़ उत्तर प्रदेश की जनता की मेहनत की कमाई पर जो टैक्स लगता है उससे बजट की धनराशि बनती है। जनता हम सब को चुन कर भेजती है इस पवित्र मंदिर में क्योंकि उन्हें विश्वास होता है कि हम उनके हित में सही निर्णय करेंगे और उनके पैसों को सही योजनाओं पर खर्च करेंगें।
मा0 अध्यक्ष जी, कहते हैं थ्पहनतमे क्वदश्ज स्पम (आंकड़े गलत नहीं बोलते)
शिक्षा-
ये आंकड़े मेरे नहीं नीति आयोग के हैं।
कक्षा-5 के बच्चे कितने प्रतिशत गुणा-भाग कर सकते हैं।
नागालैण्ड-80.4ः
मिजोरम-87.4ः
हरियाणा-74.8ः
उत्तर प्रदेश-46.7ः
- प्राथमिक स्तर पर ड्राप आॅउट रेट-भारत के नीचे के 100 जिलों में से उत्तर प्रदेश के 21 जिले हैं।
- अध्यापक/छात्र अनुपात-(प्रतिकूल) भारत के नीचे के 100 जिलों में से उत्तर प्रदेश के 32 जिले हैं।
शिशु मातृ-दर/1000 बच्चे- भारत-50, उत्तर प्रदेश-78,
मातृ मृत्यु दर/100,000- भारत -178, उत्तर प्रदेश-285,
पाॅंच वर्ष से नीचे शिशु जो बौने होते हैं- भारत-38.4ः, उत्तर प्रदेश-46.3ः, भारत के नीचे के 100 जिलों में से उत्तर प्रदेश के 29 जिले हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (ॅण्भ्ण्व्) कहता है कि 1000 की जनसंख्या पर एक डाॅक्टर होना चाहिए जबकि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में 1000 की जनसंख्या पर सरकारी और प्राइवेट डाॅक्टर मिलाकर 0.63 ही हैं।
-हाॅस्पिटल बेड/1000 जनसंख्या-उत्तर प्रदेश में 1.5 से कम है।
-गरीबी अनुपात-कुल जनसंख्या के आधार पर ठच्स् परिवार-
नीचे से भारत के 100 जिलों में से 22 उत्तर प्रदेश के हैं। (छैैव्-2011)
लघु सिंचाई-16 राज्यों में से उत्तर प्रदेश का स्थान 13वां है। उत्तर प्रदेश के 0.38 हेक्टेयर ही क्षेत्रफल लघु ंिसंचित हैं, जबकि क्षमता 107.89 लाख हेक्टेयर है।
यह उत्तर प्रदेश का आइना है और इस पर हम सभी को चिन्तित होना चाहिए।
‘‘कहो तो चल दें तुम्हारी ही राह पर, लेकिन गरीबी न होगी ऐसे कम,
उसे मिटाने के लिए चलाना ही होगा-योगी मंत्र ‘‘
मा0 अध्यक्ष जी, सम्मानित नेता विपक्ष में इस बजट को छोटा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और अर्थशास्त्री बनकर ऐसे-ऐसे तर्क दिये कि बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी चकित रह गये होंगे। पहले तो उन्होंने कर्जमाफी के रू0 36000 करोड़ और सातवें वेतन के रू0 35000 करोड़ घटा दिये। बजट के अन्दर जब ये व्यवस्था की गयी है तो वह व्यय का भाग बनता है जिसे हम साधारण अंग्रेजी में म्गचमदकपजनतम बोलते हैं। दूसरा उन्होंने मुद्रास्फीति का हवाला देते हुए उसकी गणना की और पिछले बजट से उसकी तुलना भी कर दी। कहीं हम हर बजट को इसी तरह करें तो 2016-17 का रू0 3,40,255 करोड़ मुद्रास्फीति ( ॅच्प् इन्फ्लेशन-1.7ः) के आधार पर रू0 305,475 करोड़ बन जाता है जोकि 2015-16 का बजट रू0 3,03,049 लाख करोड़ से कुछ ही अधिक है। बजट का यह नया विश्लेषण सीखा है मा0 नेता विपक्ष से । व्यय आज के प्दसिंजपवद (इन्फ्लेशन) पर और ठनकहमज डपदने पदसिंजपवद तंजमण्
मा0 अध्यक्ष जी, किसानों की सबको चिन्ता होती है और होनी भी चाहिए। क्योंकि जब 70 प्रतिशत उत्तर प्रदेश की जनता कृषि पर आधारित है, तो चिन्ता स्वाभाविक है। लेकिन राज्य की ळक्च् में कृषि का 23ः ही योगदान है। जहां 70 प्रतिशत लोग कृषि पर आधारित हों वहाॅं पर योगदान क्या 23ः ही होना चाहिए? 2017-18 का बजट विशेष रूप से चिन्ता करता है कि कृषि उत्पादन कैसे बढ़े, किस प्रकार से किसानों के लिए ‘स्वाएल हेल्थ कार्ड‘ की व्यवस्था हो, 20 जनपदों में कृषि विज्ञान केन्द्र और खोले जाएं, किसानों को सिंचाई की सुविधा अच्छी मिले और बिजली की निरन्तर उपलब्धता सुनिश्चित हो।
मा0 अध्यक्ष जी, जो लोग रू0 36000 करोड़ ऋण माफी को पचा नहीं पा रहे हैं और अनेक तर्क, संकल्प पत्र के माध्यम से दे रहे हैं, क्या उन्हें आत्मचिन्तन नहीं करना चाहिए कि इतना बड़ा ऋण किसानों के ऊपर कैसे हुआ?, कारण ढूंढ रहे हैं हम पर उंगली उठाने का लेकिन भूूल जाते हैं कि जब एक उंगली उठाओगे तो दोे उंगली अपनी ही ओर इंगित करेगी।
कानून व्यवस्था-मा0 नेता विपक्ष ने सही कहा ‘‘कि कानून व्यवस्था कोई पुड़िया नहीं है कि कोई उसे बाजार से खरीद लाए और उसे ठीक कर दे।‘‘ साथ ही साथ उन्होंने कहा कि ‘‘हमारी मंशा क्या है, कानून व्यवस्था को ठीक करने की। मा0 अखिलेश यादव की सरकार ने यह काम किया था’’।
विषय आंकड़े देने का नहीं है या जवाहर बाग की बात करने का या सीतापुर में 2016 में धनतेरस के दिन जिलाधिकारी के घर के सामने व्यापारी की हत्या जिसका आरोपी हमारी सरकार के दौरान पकड़ा गया। मैं इन चीजों पर सदन का समय बर्बाद नहीं करूंगा। कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके इन्फ्रास्ट्रक्चर को हम मजबूत करें। थानों के अन्दर चेन प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं गुणवत्ता का ध्यान रखें। जब ढांचा ठीक होता है तो कानून-व्यवस्था पर नियंत्रण भी होता है। दुर्भाग्य है कि सपा सरकार के समय 1526 थानों पर 50 प्रतिशत से ज्यादा जो नियुक्तियाॅं हुई थी वह जाति के आधार पर हुई थी। उदाहरण के रूप में बंदायूॅं में 22 पुलिस थानों में 16 एक ही जाति के ैण्व्ण् की नियुक्तियां, कानपुर में 36 में से 25 थानों पर वही विशेष जाति, फर्रूखाबाद में 14 में से 7 एक ही जाति के और इसी प्रकार से यह लिस्ट बढ़ती गई सपा सरकार में।
बहुजन समाज पार्टी के नेता मा0 लालजी वर्मा जी को याद होगा कि उनकी सरकार 2004 से 2007 में 21,000 कान्स्टेबिल की भर्ती को सुप्रीम कोर्ट ले गये थे। लेकिन जब 2012 में समाजवादी सरकार आई तो बहुजन समाज पार्टी सरकार की ैस्च् को वापस कर लिया और भ्रष्ट प्रक्रिया को मान्यता दी।
मा0 अध्यक्ष जी, यही नहीं 2013 में 86 ैक्ड मे से 56 ैक्ड की नियुक्तियां भी विशेष जाति के आधार पर हुई है। यहां तक की लोक सेवा आयोग को नहीं छोड़ा। उच्चतर शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग, उत्तर प्रदेश को-आॅपरेटिव इन्स्टीट्यूशनल सेवा बोर्ड को भी इसी विशेष जाति में सीमित कर दिया।
मा0 अध्यक्ष जी, जब किसी इन्स्टीट्यूशन को और विशेष रूप से कानून-व्यवस्था की संस्था को जाति के आधार पर ध्वस्त किया जायेगा तो उस व्यवस्था को ठीक करने में समय लगेगा।
स्वास्थ्य-मा0 नेता विपक्ष ने कहा कि ‘‘गांॅव के मरीज क्या करेंगे व्यवस्था तो है। लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को मा0 मंत्री जी दिखवा लीजिए कि कितने डाॅक्टर हैं ?‘‘
मा0 अध्यक्ष जी, मैं एक छोटा सा उदाहरण देना चाहता हूॅं, 2011 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी, उन्होंने 2091 डाॅक्टरों का लोक सेवा आयोग को अधियाचन भेजा था। 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार आयी उसमें से 860 डाॅक्टर नियुक्त हुए। 2014-15 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने 3260 डाॅक्टरों का अधियाचन लोक सेवा आयोग को भेजा। जब मैंने यह जिम्मेदारी सम्भाली तो देखा कि 2014-15 के अधियाचन पर कार्यवाही चल रही है। मेरी तो घण्टी बज गयी कि यह चलेगा नहीं, लेकिन 2012 में समाजवादी पार्टी के मंत्री की घण्टी क्यांे नहीं बजी? इसका जवाब नेता विपक्ष को देना चाहिए? इसलिए मैंने डाॅक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए कुछ कदम उठाए। डाॅक्टरों की रिटायरमेन्ट की आयु 60 वर्ष से 62 वर्ष कर दी। जिससे 500 से 1000 डाॅक्टर मिल जायंेगे। दूसराः- 1000 डाॅक्टरों का वाॅक-इन इण्टरव्यू कैबिनेट से अनुमोदित किया और आने वाले समय में टेलीमेडिसिन लेकर आ रहा हूॅं। मैं इस पर विस्तार से विभागीय बजट पर चर्चा करूंगा।
मा0 अध्यक्ष जी, यहां पर बजट की चर्चा के दौरान शेरो-शायरी अच्छी हुई है तो मेरा भी दिल करता है कि एक शेर अर्ज कर दूॅं, यह शेर विपक्ष की ओर है।
‘‘महसूस यह होता है कि दौरे तबाही है,
पत्थर की अदालत में शीशे की गवाही है,
दुनिया में ऐसी तफ्शीश नहीं मिलती,
कि कातिल ही लुटेरा है और कातिल ही सिपाही है‘‘
बहुत-बहुत धन्यवाद।