*नगर पालिका परिषद मथुरा एवं नगर पालिका परिषद वृन्दावन को मिलाकर नगर निगम मथुरा-वृन्दावन के गठन का फैसला*
मंत्रिपरिषद ने नगर पालिका परिषद मथुरा एवं नगर पालिका परिषद वृन्दावन को मिलाकर नगर निगम मथुरा-वृन्दावन के गठन का फैसला लिया है। साथ ही, इसके लिए अधिसूचना की अन्तर्वस्तु में संशोधन अथवा परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता पर आवश्यक सुसंगत संशोधन हेतु नगर विकास मंत्री को अधिकृत करने का निर्णय लिया गया है।
ज्ञातव्य है कि मथुरा एवं वृन्दावन एक प्रमुख धार्मिक नगरी है एवं श्रीकृष्ण की जन्म स्थली होने के कारण राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन के क्षेत्र में मथुरा एवं वृन्दावन का महत्वपूर्ण स्थान है। मथुरा एवं वृन्दावन के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए स्थानीय निवासियों व वहां आने वाले विदेशी पर्यटकों सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले नागरिकों को बेहतर सुविधाएं देने हेतु नगर पालिका परिषद मथुरा एवं नगर पालिका परिषद वृन्दावन को मिलाकर नगर निगम बनाया जाना आवश्यक है।
नगर निगम का गठन होने से निकाय की आय में वृद्धि होगी, जिससे नगर निगम को वहां अवस्थापना सुविधाओं के विकास हेतु पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता होगी। इसके अतिरिक्त इस वर्णित कारणों से इन क्षेत्रों के समुचित विकास एवं वहां निवास करने वाले व्यक्तियों को रोजगार आदि के पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाने के उद्देश्य से नगर पालिका परिषद मथुरा एवं नगर पालिका परिषद वृन्दावन को मिलाकर नगर निगम मथुरा-वृन्दावन के गठन का फैसला लिया गया है।
*नगर पालिका परिषद अयोध्या एवं नगर पालिका परिषद फैजाबाद को मिलाकर नगर निगम अयोध्या बनाए जाने का प्रस्ताव मंजूर*
मंत्रिपरिषद ने नगर पालिका परिषद अयोध्या एवं नगर पालिका परिषद फैजाबाद को मिलाकर नगर निगम अयोध्या बनाए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है। साथ ही, इसके लिए अधिसूचना की अन्तर्वस्तु में संशोधन अथवा परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता पर आवश्यक सुसंगत संशोधन हेतु नगर विकास मंत्री को अधिकृत किया गया है।
ज्ञातव्य है कि फैजाबाद एवं अयोध्या एक प्रमुख धार्मिक नगरी है एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्म स्थली होने के कारण राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन के क्षेत्र में इन स्थलों का महत्वपूर्ण स्थान है। फैजाबाद एवं अयोध्या के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए स्थानीय निवासियों व वहां आने वाले विदेशी पर्यटकों सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले नागरिकों को बेहतर सुविधाएं देने हेतु नगर पालिका परिषद फैजाबाद एवं नगर पालिका परिषद अयोध्या को मिलाकर नगर निगम बनाया जाना आवश्यक है।
नगर निगम का गठन होने से निकाय की आय में वृद्धि होगी, जिससे नगर निगम को वहां अवस्थापना सुविधाओं के विकास हेतु पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता होगी। इसके अतिरिक्त इस वर्णित कारणों से इन क्षेत्रों के समुचित विकास एवं वहां निवास करने वाले व्यक्तियों को रोजगार आदि के पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाने के उद्देश्य से नगर पालिका परिषद फैजाबाद एवं नगर पालिका परिषद अयोध्या को मिलाकर नगर निगम अयोध्या के गठन का फैसला लिया गया है।
*उ0प्र0 पथ विक्रेता नियमावली, 2017 अनुमोदित*
मंत्रिपरिषद ने उत्तर प्रदेश पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण एवं पथ विक्रय विनियमन) नियमावली, 2017 को अनुमोदित कर दिया है। भारत सरकार के पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण एवं पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014 (अधिनियम संख्या-7 सन् 2014) की धारा-36 के अधीन प्रदत्त शक्तियों के अन्तर्गत नगरीय पथ विक्रेताओं के अधिकारों का संरक्षण और पथ विक्रय की गतिविधियों तथा इससे सम्बद्ध या अनुषांगिक मामलों के विनियमन के दृष्टिगत यह फैसला लिया गया है।
नियमावली में विहित व्यवस्थानुसार प्रत्येक निकाय में यथास्थिति नगर आयुक्त/अधिशासी अधिकारी की अध्यक्षता में नगर पथ विक्रय समिति का गठन किया जाएगा। समिति का कार्यकाल प्रथम बैठक की दिनांक से 5 वर्ष की अवधि के लिए होगा। किन्तु नियमावली के अनुरूप कार्य नहीं करने पर राज्य सरकार समिति को भंग कर सकती है। भंग किए जाने की दिनांक से 03 माह के भीतर नई नगर पथ विक्रय समिति का गठन किया जाएगा।
नगर पथ विक्रय समिति सभी विद्यमान पथ विक्रेताओं का सर्वेक्षण, पथ विक्रय परिक्षेत्र की धारण क्षमता और पथ विक्रय परिक्षेत्र में पथ विक्रेताओं को स्थान देना सुनिश्चित करेगी। पथ विक्रय प्रमाण पत्र दिए जाने के पश्चात् पथ विक्रेताओं को समिति द्वारा परिचय पत्र भी जारी किया जाएगा। नई अवस्थापना विकास योजनाओं द्वारा हटाए गए पथ विक्रेताओं को समायोजित किया जाएगा, ताकि वह नई अवस्थापना द्वारा उत्पन्न आजीविका अवसरों का उपयोग कर सकें।
प्रत्येक नगर पथ विक्रय समिति में नगर आयुक्त या अधिशासी अधिकारी अध्यक्ष होगा। समिति की सदस्य संख्या नगर पंचायत के मामले में अनधिक 10, नगर पालिका परिषद के मामले में अन्यून 10 और अनधिक 20 और नगर निगम के मामले में अन्यून 20 और अनधिक 40 होगी। समिति में गैर सरकारी संगठनों और समुदाय आधारित संगठनों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नगर आयुक्त या अधिशासी अधिकारी द्वारा कम से कम 10 प्रतिशत सदस्य नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे। समिति में नगर पालिका क्षेत्र के पथ विक्रेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों की संख्या 40 प्रतिशत से कम नहीं होगी। पथ विक्रेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों के एक तिहाई सदस्य महिला पथ विक्रेताओं में से होंगी। साथ ही, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों तथा अल्पसंख्यकों व निःशक्त पथ विक्रेताओं को समुचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाएगा। प्रथम बार पथ विक्रय कार्य करने वाले का पथ विक्रेता के रूप में आवेदन करना होगा और उन्हें यह शपथ पत्र देना होगा कि उनके पास आजीविका का कोई अन्य साधन नहीं है।
14 वर्ष से कम आयु के लोगों को पथ विक्रेता के रूप में पंजीकृत नहीं किया जाएगा। प्रत्येक स्थिर पथ विक्रेता को पथ विक्रय परिक्षेत्र में, जहां समुचित रूप से उपलब्ध हो, 2ग2 मीटर से अनधिक क्षेत्र इस रीति से उपलब्ध कराया जा सकेगा कि यानीय और पैदल यातायात में बाधा उत्पन्न न हो और दुकानों एवं आवासों तक की पहुंच बन्द न हो। पैदल सेतुओं, ऊपरिगामी सेतुओं और फ्लाईओवर के ऊपर पथ विक्रय क्रिया-कलाप नहीं किया जाएगा। राज्य स्तर पर पथ विक्रय से सम्बन्धित समस्त मामलों के समन्वय के लिए निदेशक, स्थानीय निकाय या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अधिकारी राज्य नोडल अधिकारी होगा।
*भारतीय स्टाम्प अधिनियम के तहत जारी 16 सितम्बर, 2016 की अधिसूचना में संशोधन का निर्णय*
मंत्रिपरिषद ने भारतीय स्टाम्प (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2015 प्रवृत्त हो जाने के फलस्वरूप, साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 (अधिनियम संख्या-10, सन् 1897) की धारा-21 के साथ पठित भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 (अधिनियम संख्या-2, सन् 1899) की धारा-76क के खण्ड (ख) के अधीन शक्ति का प्रयोग करके और इस निमित्त जारी पूर्ववर्ती अधिसूचना संख्या- 24/2016-889/94 स्टा0नि0-2-16-500(5)91 टी0सी0 दिनांक 16 सितम्बर, 2016 में संशोधन का निर्णय लिया है।
इस निर्णय के तहत स्टाम्प शुल्क की सुनवाई हेतु ‘न्यायिक सदस्य राजस्व परिषद’ के स्थान पर ‘सदस्य/न्यायिक सदस्य राजस्व परिषद’ किया गया है। साथ ही, उपायुक्त, स्टाम्प, सम्बन्धित मण्डल/वृत्त की स्टाम्प शुल्क के विवादों की अधिकारिता की सीमा में भी संशोधन किया गया है। इसके अन्तर्गत मुख्य नियंत्रण राजस्व प्राधिकारी की शक्तियां विभागीय उपायुक्त, स्टाम्प के अतिरिक्त मण्डलायुक्त एवं अपर मण्डलायुक्त को अपीलों के निस्तारण हेतु प्रतिनिधानित किया गया है।
साथ ही, सदस्य/न्यायिक सदस्य, राजस्व परिषद को 25 लाख रुपए से अधिक, मण्डलायुक्त को 25 लाख रुपए तक तथा अपर मण्डलायुक्त/उपायुक्त स्टाम्प को 10 लाख रुपए तक की सीमा तक स्टाम्प वाद के मामलों में सुनवाई का अधिकार दिया गया है। उपायुक्त स्टाम्प, सम्बन्धित मण्डल/वृत्त की स्टाम्प शुल्क के विवादों की अधिकारिता में संशोधन करते हुए 10 लाख रुपए तक की सीमा तक का अधिकार दिया गया है, जिससे जनसामान्य के स्थानीय स्तर पर स्टाम्प वाद के प्रकरणों का शीघ्रता से निस्तारण किया जा सके।