नेशनल फेडरेशन फार न्यू स्टेट के बैनर तले नये राज्य की मांग को लेकर प्रेस क्लब में बुन्देलखंड़ राज्य की मांग करने बाले राजा बुन्देला ने कहा कि छोटे राज्य के बिना उत्तर प्रदेश का विकास नहीं हो सकता है। बाईस करोड़ जनता बाले उत्तर प्रदेश में कई राज्य बन सकते है। बुन्देलखन्ड़ की लड़ाई मकान मालिक और किरायेदार बाली लड़ाई है।हमारी खनिज संपदा पर किरायेदार काबिज है और इसका लाभ यहां की जनता को नहीं मिल पा रहा है।तेलंगाना आन्दोलन से जुड़े रहे पी.निरूप ने कहा कि नेशनल फेडरेशन फॉर न्यू स्टेट्स एक फ्रंट संगठन है जो छोटे एवं नए राज्यों के निर्माण एवं अध्ययन पे काम करती है जिससे की देश में सुशासन और सर्वांगीण विकास हो सके। उनके भौगोलिक और ऐतिहासिक पक्ष को देखते हुए यह संगठन नवभारत के निर्माण हेतु नए राज्यों की स्थापना एवं अध्ययन के लिए आज 8 अप्रैल 2017 को लखनऊ प्रेस क्लब में 3 बजे एक मूवमेंट लांच कर रही है। जिस सम्बन्ध में यह प्रेस वार्ता आयोजित की गई।
यह कोई संयोग नहीं है कि इस लांच के लिए लखनऊ को चुना गया है, वास्तव में लखनऊ जो की ह्रदय है देश का और यहाँ पे लांच करने का मकसद हम इस संघ संबंधों पे आधारित बहस को ह्रदय की धमनियों के माध्यम से पूरे देश में जाना चाहते हैं, ताकी एक प्रभावशाली और वायबल बहस एक मजबूत और एकीकृत सुखी शांत भारत पे चालु हो। और भारत एक मजबूत एकीकृत संगठित सुगठित और संगत विकसित भारत के रूप में आगे बढे।
मौजूदा यूपी चुनाव देश की राजनीती के लिए एक बेंचमार्क है जिसने सिद्ध किया है कि वह प्रदेश जिसे बीमारू राज्य कहा जाता था उस प्रदेश की जनता जात पात और अन्य दबाबों के बंधनों को तोड़कर एक आवाज़ और एक वोट के रूप में बाहर आई और वह एक आवाज़ है विकास वो भी सर्वांगीण विकास, सबका साथ सबका विकास।
अगर आप गौर करें तो विकास के इतिहास में पूरे विश्व में और भारत में यह बात सिद्ध है कि सुशासन और सर्वांगीण विकास छोटे और न्यायसंगत विकाससंगत आकार के राज्यों से ही सुनिश्चित हुआ है। अंतराष्ट्रीय उदाहरण के रूप में स्वीडन और नार्वे हैं तो भारत में पंजाब हरियाणा और हिमांचल प्रदेश है जो की PEPSU से अलग हुए, पूर्वोत्तर भी इसके उदाहरण है। इसके अलावा पिछले एनडीए सरकार ने भी तीन नए राज्यों उत्तराखंड, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ का गठन किया था और अभी हाल में 29वें राज्य तेलंगाना का गठन सुशासन एवं सर्वांगीण विकास के आधार पर हुआ। ये सब उदाहरण हैं कि नए राज्यों का पुनर्गठन एक सतत विषय है जिसपे लगातार बदलते वक़्त एवं जरूरतों के साथ बहस होनी चाहिए। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का आप देखें तो आप पाएंगे कि अपने निर्माण के ढाई साल के अंदर ही यह दोनों प्रदेश नव निवेश के नए केंद्र बन चुके हैं एवं भारत में व्यवसाय एवं निवेश करने के लिए सबसे अनुकूल एवं दोस्ताना राज्य के रूप में विकसित हो रहे हैं।
फिलहाल जो क्षेत्र नए राज्यों के निर्माण की बहस में सबसे आगे हैं वह है पुर्वांचल बुन्देलखण्ड और विदर्भ। और इस सत्य को एक आम नागरिक भी समझता है कि सुशासन और सर्वांगीण विकास के लिए इन राज्यों का गठन होना आवश्यक है। अगर ऐतिहासिक तौर पे देखें तो मध्य काल में अकबर के समय पुर्वांचल एक अलग सूबे के रूप में था। आज का जौनपुर तत्कालीन समय में एक प्रमुख स्थान हुआ करता था जबकि आज यह जौनपुर अपने पहचान के लिए आवाज लगा रहा है और आज तक सबसे अधिक पलायन वहीँ से हुआ है।
दूसरी तरफ बुंदेलखंड की बात करें तो इतिहास में भी वह एक अलग राज्य रहा है वहां पुरे देश की औसत बारिश से ज्यादा बारिश होने के बाद भी उधर पर्याप्त नजर शासन की नहीं जा पाई और आज वह क्षेत्र सूखाग्रस्त है और पानी के लिए तरस रहा है और यहाँ कृषि की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है और लोग बेहाल हैं और लोग पलायन कर रहें हैं और जो गांव से पलायन नहीं कर पाये उनकी हालत और ख़राब है । गांव में पानी, पोषण, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।
तीसरी जो सबसे वक़्ती जरुरत है वह है विदर्भ की। वह क्षेत्र जो भगवान् श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी के नाम से जाना जाता है , जो पूर्व में एक गणराज्य के रूप में था उसकी एक अलग पहचान और संस्कृति थी आज किसानों की आत्महत्या के लिए जाना जाता है। जबकि यह क्ष्रेत्र तीन महत्वपूर्ण आंदोलनों के लिए जाना जाता है। पहला 1950 में श्री बापू जी आने के द्वारा 1960 में श्री जामवंत राव धोते एवं 1990 में श्री वसंत साठे, श्री एन के पी साल्वे कांग्रेस, एवं श्री वनवारी लाल पुरोहित बीजेपी वर्तमान में आसाम के राज्यपाल के द्वारा। श्री पुरोहित तो 1998 में बीजेपी के घोषणापत्र निर्माण में सहायक थे जिसमें छोटे राज्यों के निर्माण की बात कही गई थी। यहाँ तक की यूपी के नए मुख्यपन्त्री श्री आदित्यनाथ ने पुर्वांचल और बुंदेलखंड के निर्माण के संबंध में अपने वेबसाइट में एक लेख भी लिख चुके हैं।
व्यापक सीमाओं और बड़ी आबादी वाले प्रदेश यूपी, एमपी एवं महाराष्ट्र के अलावा नए एवं छोटे प्रदेशों की मांग अन्य जगहों से भी आ रही है जैसे की आसाम से बोडोलैंड की पश्चिम बंगाल से गोरखालैंड की। इन दोनों जगहों का एक लंबा इतिहास अलग पहचान और अलग संस्कृति रही है।
यह संगठन इस मूवमेंट से और इस मंच के माध्यम से केंद्रीय सरकार से यह आग्रह करता है कि वह नए राज्यों के निर्माण के संबंध में अपनी राष्ट्रीय नीति को प्रकट और स्पष्ट करे, ताकि इन क्षेत्रों में सुशासन और सर्वांगीण विकास हो सके। साथ ही यूपी महाराष्ट्र आसाम पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों से भी अनुरोध है कि राष्ट्रीय नीति के तहत इस संबंध में इनकी क्या नीति है प्रकट करें। मौजूदा दौर में केंद्रीय सरकार और यूपी सरकार से हम इस विषय को लेकर काफी आशान्वित हैं।