अविवाहित रहते हुए समाज के लिए समर्पित कर दिया कर आजीवन की समाजसेवा - एम्स में रखा जाएगा पार्थिव शरीर को

Posted on 28 February 2010 by admin

अविवाहित रह कर आजीवन समाजसेवा का वृत लेने वाले पद्मविभूषित वयोवृद्ध नाना जी देशमुख का पार्थिव शरीर चित्राकूट के पड़ोसी जनपद मध्यप्रदेश के सतना जिला ले जाया गया। जहां से चार्टर्ड विमान द्वारा उन्हें नई दिल्ली स्थित आरएसएस कार्यालय ले जा कर लोगों के अन्तिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। इसके बाद दिल्ली में मौजूद उनके सहयोगी व डीआरआई के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं द्वारा उनकी नश्वर शरीर को उनकी इच्छानुसार “ दधीचि देह समिति ´´ को दान कर दिया जाएगा।

nanaji-ka-hhul-chdate-cm-mp-2nanaji-ko-satna-le-jane-teचित्राकूट के मध्यप्रदेश सीमातंर्गत जानकीकुड समीप स्थित आवास सियाराम कुटीर में शनिवार की अपराह्न वयोवृद्ध पद्मविभूषित समाजसेवी नाना जी देशमुख की अचानक तबियत बिगड़ी और दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डा. भरत पाठक और अन्य लोग उन्हें लेकर सद्गुरु सेवा संघ चिकित्सालय ले गए। जहां डाक्टरों ने कुछ देर इलाज करने के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनके स्वर्गवास की खबर सुन लोग स्तब्ध रह गए। और सियाराम कुटीर पहुंच शोक संवेदना देने वालों का तान्ता  लग गया। रविवार की तड़के नाना जी के अन्तिम दर्शनों व श्रृद्धांजलि देने के लिए उनके पार्थिव शरीर को उद्यमिता विद्यापीठ परिसर के पं. दीनदयाल पार्क के रखा गया था। मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्राी शिवराज सिंह चौहान रविवार की सुबह ही हेलीकॉप्टर से चित्राकूट पहुंचे और नाना जी को पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने शोक जताते हुए कहा कि नाना जी जैसे समाजसेवी की क्षतिपूर्ति देश के लिए असम्भव है। उधर मध्यप्रदेश लोक निर्माण मन्त्राी नागेन्द्र सिंह, राजेन्द्र शुक्ला प्रभारी मन्त्राी, सतना सांसद गणेश सिंह, चित्राकूट मध्यप्रदेश क्षेत्रा  विधायक सुरेन्द्र सिंह गहरवार, चित्राकूट/बान्दा सांसद आर के पटेल, चित्राकूट के पूर्व विधायक भैरो प्रसाद मिश्रा, चित्राकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ज्ञानेन्द्र सिंह, सद्गुरु सेवा संघ के ट्रस्टी वी के जैन, वरिष्ठ समाजसेवी बी बी सिंह भदौरिया, भारतीय जनता पार्टी जिलाध्यक्ष लवकुश चतुर्वेदी, रघुनाथ जायसवाल, शक्तिप्रताप सिंह तोमर, संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी रामकृष्ण कुसमरिया, राजेन्द्र सिंह सहित डीआरआई कार्यकर्ताओं व स्थानीय लोगों का जनसैलाब नाना जी के अन्तिम दर्शनों व श्रृद्धांजलि अर्पित करने के लिए उद्यमिता परिसर में पहुंचने लगे  थे। इस दौरान मध्यप्रदेश पुलिस ने उन्हें राजकीय सम्मान प्रदान करते हुए गार्ड आफ आनर भी दिया।  इसके बाद नाना जी की इच्छानुसार “दधीचि देह दान समिति´´ को दान करने के लिए सद्गुरु सेवा संघ की एंबुलेंस से पड़ोसी जनपद सतना स्थित एयरपोर्ट ले जाया गया। जहां से चार्टर्ड प्लेन द्वारा उन्हें दिल्ली ले जाया जाएगा। और उनके पार्थिव शरीर को अन्तिम दर्शन के लिए झण्डेवालान स्थिति आरएसएस कार्यालय में रखा जाएगा। उनके साथ डीआरआई के अध्यक्ष वीरेन्द्र जीत सिंह, मध्यप्रदेश के मुख्य मन्त्राी शिवराज सिंह चौहान व निजी सचिव हेमन्त पाण्डेय दिल्ली के लिए रवाना हो गए। नाना जी के अन्तिम दर्शन व श्रृद्धांजलि के बाद सोमवार को नाना जी के पार्थिव शरीर को उनके सहयोगियों व संस्थान के वरिष्ठ पदाधिकारियेां द्वारा दान कर दिया जाएगा। बताया जाता है कि “दधीचि देह दान समिति´´ उनके शरीर को एम्स में दान कर देगी।

nanaji-ka-hhul-chdate-bhart-pathknanaji-ka-hhul-chdate-cm-mp1देश की जनता के दिलों में जीवित रहेंगे नाना जी क्षतिपूर्ति सम्भव नहीं
मध्य प्रदेश मुख्यमन्त्राी ने एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया

रविवार को नाना जी का पार्थिव शरीर उद्यमिता विद्यापीठ के दीनदयाल पार्क में लोगों के अन्तिम दर्शन के लिए रखा गया।   इसके बाद नाना जी के करीबी रहे दीन दयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डा. भरत पाठक ने स्फटिक शिला में लगभग 10 बजे हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार नाना जी के पार्थिव शरीर के प्रतीक को पिण्डदान दिया। इस दौरान सैकड़ों नम आंखों से नाना जी को अन्तिम विदाई दी। नाना जी के निधन के बाद अपनी श्रृद्धांजलि देने चित्राकूट आए मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्राी शिवराज िंसह चौहान ने कहा कि नाना जी भले ही अब सशरीर हमारे बीच नहीं है लेकिन वे हमसब के दिलों में सदैव जीवित रहेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती लेकिन अब हमारी सबकी जिम्मेदारी है कि एक साथ मिलकर उनके सपनों को पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि देश की जनता नाना जी व उनके द्वारा समाज के लिए किए गए कार्यों को कभी नहीं भूल पाएगी। अपनी शोक संवेदना के बाद मुख्यमन्त्राी श्री चौहान ने मध्यप्रदेश में एक दिन के राजकीय शोक की भी घोषणा की।

कौन जानता था कि 11 अक्टूबर सन् 1916 को शरद पूिर्णमा के दिन महाराष्ट्र के परभनी जिला के एक छोटे से गांव परभनी में एक गरीब किसान के घर में जन्मा बालक एक दिन अपने परिवार व गांव ही नहीं बल्कि देश के लोगों की सेवा करते हुए शिखर पहुंच पूरी दुनिया में नाना जी देशमुख के नाम से जाना जाएगा।

चण्डीराव अप्पा देशमुख व अन्नपूर्णा का पुत्रा चण्डीदास  जिसे लोग प्यार से “नाना´´ कह कर बुलाते थे ने बेहद गरीबी में अपने जीवन के आरम्भिक दिन गुजारे। संघर्ष करते हुए किसी तरह महाराष्ट्र के वाशिम में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद प.पू. डॉ. हेडगेवार जी से परिचय हुआ और उन्होंने चण्डीदास “नाना´´ को पिलानी जाकर आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा। हेडगेवार जी के ही सानिध्य में वे आर एसएस से जुड़े और उत्तर प्रदेश में संघ की शाखाएं खोलने व प्रचार की जिम्मेदारी मिली। धीरे-धीरे लोग उन्हें उनके असली नाम के बजाए ´´नाना जी ´´ के नाम से ही जानने व पहचानने लगे। और देश ही नहीं विदेश में भी वे “नाना जी देशमुख´´ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। गोरखपुर में नाना जी ने 1950 में देश के पहले शिशुमन्दिर की स्थापना की। जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे नाना जी ने 1977 में जय प्रकाश जी के निवेदन पर बलरामपुर से चुनाव लड़ भारी मतों से विजय प्राप्त की। जिस पर तत्कालीन प्रधानमन्त्राी मुरार जी देसाई ने बिना सहमति लिए  नान जी को मन्त्राी बना दिया। लेकिन उन्होंने मन्त्राी पद अस्वीकार करते हुए देश के ग्रामीण इलाकें में सामाजिक कार्यों के माध्यम से गरीबों की सेवा करने का व्रत लिया। 1968 में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना कर देश के विभिन्न प्रान्तों में इसके प्रकल्पों को खोलते हुए 1991 में चित्राकूट आ कर यहां के लोगों के लिए काम करना शुरू कर दिया। चित्राकूट रहते हुए वे पहले भी कई बार अस्वस्थ हुए और उनका दिल्ली के नामी चिकित्सालयों में इलाज भी कराया गया। लेकिन वहां ठीक होने के बाद वे चित्राकूट लौट आते थे। प्रभु श्री राम की तपोभूमि को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले नाना जी देशमुख ने शनिवार की अपराह्न 4 बजेे चित्राकूट में ही अपनी अन्तिम सांसे लेते हुए आंखें बन्द की और चिरनिद्रा में लीन हो गए।

सन् 91 से 94 तक विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रहे

सती अनुसुइया के महन्त भगवानानन्द जी के बुलावे पर चित्राकूट आए नाना जी देशमुख चित्राकूट के ही हो कर रह गए। सन् 1991 में चित्राकूट आए नाना जी ने दीनदयाल शोध संस्थान की नींव रख यहां के लोगों को कुछ देने की सोची। जिसके बाद उन्होंने गनीवां गांव में दान में मिली लगभग 160 बीघा जमीन में कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना की और इससे किसानों को लाभ लेने के लिए प्रेरित भी किया। इसकी शुरुआत होते ही नाना जी ने यहां के युवाओं को शिक्षा के क्षेत्रा में पिछड़ा देखते हुए 12 फरवरी 1991 को देश के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय चित्राकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की। और सन् 91 से 94 तक संस्थापक कुलाधिपति के पद पर काम भी किया। लेकिन बाद में उन्होंने विश्वविद्यालय को सरकार के हवाले छोड़ दिया। और दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से चित्राकूट के आस पास मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के लगभग 80 गांवों को गोद ले इनके सामाजिक, नैतिक व शैक्षिक उत्थान के प्रयासों में जुट गए। इसी का नतीजा है कि आज डीआरआई के बैनर तले कई प्रशिक्षण संस्थान और कृषि विज्ञान केन्द्र संचालित हो रहे हैं। जिनके माध्यम से जहां एक ओर बेरोजगार युवक प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वावलंबी बन रहे हैं वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के किसान भी लाभािन्वत हो रहे हैं।

नए समाज की रचना के लिए समाज शिल्पी तैयार किए नाना जी ने अपने लिए नहीं बल्कि अपनों के लिए किया जीवन समर्पित

एक अलग सोच, एक अलग निर्णय, एक अलग शैली अपनी इन्हीं खूबियों के साथ राजनीति में अच्छी पैठ व पकड़ होने के बावजूद भी समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों की सेवा का निश्चय किया था नाना जी ने। अपने सपनों को वास्तविक रूप प्रदान करने के लिए उन्होंने कभी स्वयं के लिए नहीं सोचा और आजीवन समाज सेवा करते हुए अपने शरीर को भी समाज के लिए अर्पित कर दिया।

चित्राकूट आने के बाद चित्राकूट के आसपास बसे मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के गांवों की हालत देख नाना जी ने यहां रह कर ही अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने का विचार किया। इसके लिए उन्हें ऐसे कार्यकर्ताओं की जरूरत पड़ी जो “अपने लिए नहीं अपनों के लिए जिएं´´ और उनके सपनों को साकार रूप देने में अपना सहयोग दें।  नाना जी ने अपने सहयोगियों और अपनी विचारधारा से जुड़े दीनदयाल शोध संस्थान के लोगों से विचार विमर्श करते हुए युवा वर्ग को इस क्षेत्रा में आगे आने का मौक दिया। लेकिन समाज के पीड़ित, शोषित व उपेक्षित लोगों की सेवा करने का उनका ढंग ही अनूठा था। उनका सोचना था कि समाज सेवा के जरिए लोगों को बैठे बिठाए ही लाभ पहुंचाना लोगों को पंगु बना देगा। इसके लिए नाना जी क्षेत्रा के लोगों की अशिक्षा को दूर करते हुए स्वावलंबी बनाने व नए समाज की रचना करने का संकल्प लिया। तभी तो ! उन्होंने उनके आह्वान पर देश के विभिन्न क्षेत्राों से आगे आए युवा वर्ग को सामाजिक कार्यकर्ता का नहीं बल्कि “समाज शिल्पी´´ का नाम दिया। वे कहते थे कि उनकी सेना नए समाज की रचना करेगी। इन समाज शिल्पियों का उत्साह वर्धन करते हुए प्रशिक्षण शिविर में नाना जी कहा करते थे कि समाज शिल्पियों को गांव में रहते हुए राम के आदशोZं और जीवन शैली का अनुसरण करना चाहिए। तभी वे अपने उद्देश्यों को पा सकेंगे। उन्हीं की प्रेरणा से आगे बढ़ देश के विभिन्न इलाकों मेें कार्य करते हुए समाज शिल्पी नए समाज की रचना करते हुए उनके सपनों को साकार में जुटे हुए हैं।

नरेन्द्र मिश्रा

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