‘भाषा एक साधना है उसकी शक्तियाँ साधना पर निर्भर करती हैं‘ उदय प्रताप सिंह
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ एवं जश्न-ए-अदब (काव्य एवं साहित्यिक संस्था, नई दिल्ली) के संयुक्त तत्वावधान में 5वंे काव्य महोत्सव-2016 एवं साहित्योत्सव सम्मान 2016, परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन दिनांक 03 दिसम्बर, 2016 को संस्थान के निराला सभागार, हिन्दी भवन में अपराह्न 3.00 बजे से किया गया।
अभ्यागतों का स्वागत करते हुए श्री मनीष शुक्ल, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया।
सहाफ़त की लड़खड़ाती जुबान‘ विषय पर बोलते हुए श्री अतुल चंद्रा ने कहा -आज हम नुक्तों को भुलाकर उर्दू जबान को हिन्दी में बदल दिया है। हिन्दी-अंग्रेजी के ग्रामर को मिला दे रहे हैं। इसका असर यह होता है कि हम अंग्रेजी का हिन्दीकरण करने का प्रयास करते हैं जिससे अंग्रेजी का नुकसान हुआ है। पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिए भाषाओं व व्याकरण का सही प्रयोग नहीं हो पा रहा है। हिन्दी भाषा सीखना आसान नहीं है।
श्री गोविन्द पंत राजू ने कहा -अखबार की भाषा व आम बोलचाल की भाषा आज अलग-अलग नहीं है। अंगे्रजी में हिन्दी का प्रयोग हो रहा है। समय के साथ भाषाएँ बदलती हैं यदि नहीं बदलेंगी तो वह जिन्दा नहीं रह सकती। सूचना क्रान्ति का प्रभाव भाषा पर पड़ा है।
श्री सुधीर मिश्रा ने कहा - आज की भाषा पर समाज का प्रभाव पड़ा है। फेसबुक व टिवटर की भाषा का युग चल रहा है। भाषा वैसी होती है जैसा चिन्तन होता है। समाज भी टिवटर की भाषा को बोल रहा है। भाषा पर बाजार का प्रभाव है। भाषा को विस्तार देने की आवश्यकता है।
श्री फ़सीह अहमद ने कहा - आज जुबान बदल रही है। साहित्यिक भाषा का प्रयोग न होकर आम बोलचाल की भाषाओं का प्रयोग हो रहा है। भाषा में सरलता होनी चाहिए जिससे आम लोगो को समझ में आ जाये। भाषा इतनी कठिन न हो कि वह समझ में न आये। डिजिटल युग चल रहा है।
जज़्बाद की जुबान ‘रंगशाला‘ में अपने विचार रखते हुए श्री विलायत जाफ़री ने कहा - फिल्म एक आधुनिक तकनीक की देन है। रंगशाला में कार्य करना काफी कठिन है। रंगशाला परपंराओं से जुड़ा हुआ है। रंगशाला में अभिनय के समय कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। रंगशाला का कार्य काफी कठिनाईयों से होकर गुजरता है। रंगशाला की ताकत फिल्म से सौ गुना ज्यादा है।
श्री तारिक़ ख़ान ने कहा -थियेटर व फिल्म दोनों महत्वपूर्ण हैं। उनमें सामंजस्य की आवश्यकता है। थियेटर व फिल्म अपने-अपने स्थान पर उद्देश्य पूर्ण हैं।
श्री ज़मर्रूद मुग़ल ने कहा - रंगशाला ने आज एक नयी पहचान बनायी है।
वाचिक परम्परा से लुप्त होती हिन्दी कविता‘ विषय पर वक्तव्य देते हुए श्री उदय प्रताप सिंह, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा -गलती होना स्वाभाविक है स्वस्थ्य जनमत तैयार करना पत्रकारिता का परम कर्तव्य है। भाषा में समय के साथ परिवर्तन आया है। भाषा एक साधना है। भाषा की शक्तियाँ उनकी साधना पर निर्भर करती हैं। उन्होने कहा -सर से पैर तक जो खुद्दार नहीं है वह हाथ में कलम लेने का हकदार नहीं है। भाषा एवं पत्रकारिता में क्षमा का कोई स्थान नहीं है। मैं हिंग्लिश का पक्षधर नहीं हूँ।
श्री किशन सरोज ने कहा -जब तक मनुष्य रहेगा तब तक कविता रहेगी। वर्तमान में कविता को धर्म से जोड़ दिया गया है यह गलत है। इन्टरनेट आज सब कुछ सिखा दे रहा है। हिन्दी कविता को लिखने के लिए दिल एवं दिमाग दोनों का सामंज्स्य व नियत्रण होना आवश्यक है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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