राजभवन में आयोजित इस पत्रकार वार्ता में आप सबका स्वागत है। आज भोलेनाथ भगवान शिव शंकर का पर्व महाशिवरात्रि है। आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई। काफी समय के अंतराल पर एक साथ आपसे बात करने का अवसर मिला है। जैसा कि आप जानते हैं कि समय-समय पर स्वयं द्वारा किये गये कार्यों की जानकारी से आपको अवगत कराता रहा हूँ, इसी क्रम में आज आपसे कुलाधिपति की हैसियत से विश्वविद्यालयों पर बात करूंगा।
उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए मैं प्रयासरत हूँ। विश्वविद्यालयों के शैक्षिक कलेण्डर में दीक्षान्त समारोह का महत्वपूर्ण स्थान होता है। राज्य के 25 विश्वविद्यालयों में से 20 के दीक्षान्त समारोह सम्पन्न हो चुके हैं। चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर का दीक्षान्त समारोह 18 मार्च को होना है तथा डाॅ0 शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ का दीक्षान्त समारोह शीघ्र ही प्रस्तावित है। 03 विश्वविद्यालय नवगठित होने के कारण जिनमें दीक्षान्त समारोह अभी अपेक्षित नहीं है, वे हैं ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ, मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर एवं सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु, सिद्धार्थ नगर।
इसके अतिरिक्त इस वर्ष दीक्षान्त समारोह में भारतीय वेशभूषा धारण करना एक अच्छी और सराहनीय पहल रही। ब्रिटिश काल से दीक्षान्त समारोह की निर्धारित वेशभूषा (गाउन और हैट) दासता सूचक होने के कारण कुलपति सम्मेलन में इसे आंचलिक परिवेश के अनुरुप निर्धारित करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ था। मुझे प्रसन्नता है कि सम्पन्न हुए दीक्षान्त समारोहों में सभी विश्वविद्यालयों ने भारतीय एवं आंचलिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए नई वेशभूषा निर्धारित कर धारण की।
वर्तमान समय विश्वविद्यालयों में परीक्षा का समय है। मेरे द्वारा सभी राज्य विश्वविद्यालयों को 26 फरवरी को पत्र भेजकर सुचितापूर्ण ढंग से नकल विहीन परीक्षा कराने, परीक्षाओं के परिणाम ससमय घोषित करने के निर्देश दिये गये हैं। मैं यह सुनिश्चित करने का प्रयास भी कर रहा हूँ कि आदेशों का पालन हों।
कल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। मैं अपनी ओर से सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ तथा उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ। यह सर्वविदित है कि गत वर्षों में महिलाओं ने सभी क्षेत्रों यथा शिक्षा, शोध, खेल, प्रशासनिक, पर्वतारोहण आदि में अपना परचम फहराया है। इसका मूल उद्देश्य समाज में बढ़ती जागरूकता और बेटियों का भी बेटों की तरह ही पालन पोषण करना एवं उन्हें उच्च शिक्षा प्रदान कराना है।
सम्पन्न हुए दीक्षान्त समारोहों में पदकों हेतु चयनित उत्कृष्ट छात्र/छात्राओं के आकड़ों से जो तथ्य उभर कर आये है उनमें छात्रों की तुलना में छात्राओं का प्रदर्शन अत्यन्त सराहनीय है, जिसे मुझे आपके साथ साझा करने में अत्यन्त हर्ष हो रहा है। महिला सशक्तिकरण का यह सुखद अनुभव है।
1ण् कुल 6,35,930 विद्यार्थियों को दीक्षान्त समारोह में उपाधियाँ वितरित की गई, जिनमें लगभग 40 प्रतिशत छात्राएं रही, किन्तु इन समारोहों में कुल वितरित पदकों में से छात्राओं की संख्या कम होने के बावजूद भी उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु कुल वितरित 1,196 पदकों में से 67 प्रतिशत (806) पदक छात्राओं के पक्ष में गये। राज्य के विभिन्न क्षेत्र में स्थापित विश्वविद्यालयों में प्राप्त पदकों में सर्वाधिक 79 प्रतिशत (49) पदक छात्राओं द्वारा प्राविधिक शिक्षा क्षेत्र में प्राप्त किये। कृषि शिक्षा में छात्राओं का रूझान कम होने के कारण मात्र 34 प्रतिशत (21) पदक ही छात्राओं के पक्ष में गये।
2ण् विश्वविद्यालयों द्वारा कुल 191 छात्र/छात्राओं को ‘चान्सलर मेडल‘ प्रदान करने हेतु चयनित किया गया, जिनमें से 62 प्रतिशत (118) पदक पर छात्राओं द्वारा कब्जा किया गया।
3ण् कुल 964 छात्र/छात्राओं को ‘स्वर्ण पदकों‘ से सम्मानित किया गया, उनमें 63 प्रतिशत (609) स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाली छात्राएं हैं। विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित विश्वविद्यालयों में प्रदत्त स्वर्ण पदकों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्राविधिक शिक्षा मंे 71 प्रतिशत पदक छात्राओं ने प्राप्त किये, वहीं सामान्य विश्वविद्यालय, चिकित्सा शिक्षा एवं राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में भी छात्राओं द्वारा क्रमशः 65, 65 एवं 63 प्रतिशत पदक प्राप्त किए गए।
4ण् ‘रजत पदक‘ प्राप्त करने वाले कुल 142 छात्र/छात्राओं में से 66 प्रतिशत (94) पदक छात्राओं ने प्राप्त किये। प्राविधिक शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा एवं सामान्य विश्वविद्यालयों द्वारा वितरित किये गये रजत पदकों में से छात्राओं द्वारा क्रमशः 81, 70 एवं 72 प्रतिशत पदक हासिल किये गये।
5ण् ‘कांस्य पदक‘ हेतु चयनित कुल 134 छात्र/छात्राओं में से 73 प्रतिशत (98) पदक छात्राओं ने प्राप्त किये। प्रदत्त कांस्य पदकों की संख्या के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि लगभग तीन चैथाई पदक छात्राओं द्वारा प्राप्त किए गए। चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में छात्राओं द्वारा 89 प्रतिशत पदक प्राप्त किये गये।
6ण् ‘अन्य श्रेणी‘ पदक (जो किसी व्यक्ति विशेष के नाम से दिये जाते हैं) के अन्तर्गत विश्वविद्यालय स्तर पर कुल 255 पदक भी वितरित किये गये। इस श्रेणी से 76 प्रतिशत (193) पदक छात्राओं द्वारा प्राप्त किये गये, जो लगभग तीन चैथाई से अधिक है।
7ण् कुल 69 दिव्यांग छात्र/छात्राओं को भी विभिन्न पदकों से सम्मानित किया गया जिनमें से 33 प्रतिशत (23) पदक प्राप्त करने वाली छात्राएं रही।
आॅकड़ों के विश्लेषण से यह भी स्पष्ट होता है कि जिन संकायों में छात्राओं का अध्ययन में रूझान कम देखा गया, वहाॅं भी छात्राओं के प्रदर्शन में वृद्धि हो रही है।
उच्च शिक्षा क्षेत्र में कुल प्रवेश अनुपात (ळतवेे म्दतवसउमदज त्ंजपव) प्रगतिशील देशों यथा अमेरिका, इग्लैण्ड में जहाँ 89 प्रतिशत एवं 59 प्रतिशत है वहीं भारत में यह मात्र 17.90 प्रतिशत है। देश में छात्राओं की उच्च शिक्षा में प्रवेश की दर और भी कम है जो मात्र 12.70 प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षण संस्थाओं के अभाव में स्थिति और भी दयनीय है। अतः छात्राओं की शिक्षा के विकास हेतु यथा सम्भव सभी स्तर पर प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
वर्तमान समाजिक परिवेश में किन्ही कारणों से दिव्यांग छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। अतः परिवार एवं समाज का दायित्व है कि दिव्यांग छात्राओं को भी समाज की मुख्य धारा से जोड़ने हेतु प्रोत्साहित किया जाय।
उच्च शिक्षा के संस्थानों में उन्मुक्त प्रतिस्पर्धी वातावरण में बेटियाँ उत्कृष्ट प्रदर्शन करने में सक्षम हुई है। उच्च शिक्षा महिला सशक्तिकरण का प्रतिबिम्ब है और यदि बेटियों को उच्च शिक्षा प्रदान करने हेतु सुअवसर प्रदान किया जाय तो वह आने वाले समय में देश के विकास को नई दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकेंगी। राजनैतिक क्षेत्र में आरक्षण प्रदान कर नीति निर्धारण एवं समाज के विकास में उनकी सहभागिता सुनिश्चित किया जाना देश के चहुँमुखी विकास हेतु समय की मांग है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com