बेसिक शिक्षा सचिव ने उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत 24 फरवरी 2016 को अपने पिछले दो शासनादेशों में संशोधन कर उसे निजी स्कूलों में प्रवेश के लिये जारी किया है। इस आदेश में यह भी जरूरी किया है कि आर्थिक रूप से कमजोर 3-6 आयु वर्ग के बच्चों को निजी स्कूलों की प्री-प्राइमरी कक्षाओं में भर्ती कराया जायेगा, जबकि पिछले शासनादेश के तहत केवल कक्षा 1 व उसके आगे मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था थी। निजी स्कूलों के संगठनों के प्रतिनिधियों ने भ्रम की स्थिति पैदा करने वाले शासनादेश की आलोचना करते हुए कहा है कि इस अधिनियम को लागू करने में कठिनाई होगी।
यू.पी. बजट समुदाय स्कूल एसोसिएशन के श्री अनूप श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि न तो केन्द्रीय और न ही राज्य सरकार ने प्री-प्राइमरी प्रवेश की प्रतिपूर्ति के लिये किसी भी बजट का प्राविधान किया है। 2016-17 के उत्तर प्रदेश सरकार के बजट में केवल कक्षा 1 से 8 के लिये ही निजी स्कूलों की प्रतिपूर्ति के लिए वित्तीय प्रावधान किया है न कि प्री-प्राइमरी कक्षाओं के लिये।
भारत के इन्डिपेंडेन्ट स्कूलों के संघ के प्रदेश अध्यक्ष डा. मधुसूदन दीक्षित ने शिकायत की कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 12 (2) के तहत कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों के भी निजी स्कूलों में दाखिले के लिये प्रतिपूर्ति की रकम का आंकलन किसी कानूनी रूप से विधि से नहीं किया गया है। उन्होंनंे यह भी कहा कि शासन द्वारा प्रतिपूर्ति राशि प्रतिमाह रू. 450/- प्रति बच्चा तय की है जो धारा 12 (2) के प्राविधान के प्रतिकूल है। उन्होंने यह भी कहा की अधिकारी गण उन बच्चों को भी ई.डब्लू.एस. कोटे के तहत बिना उचित जाँच तथा पात्रता का सत्यापन किये हुए ही भेज देते हैं जो कि बिल्कुल भी गरीब नहीं होते हैं।
श्री दीक्षित का यह भी कहना है कि सरकार अपने शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत अपने स्वयं के दायित्वों को पूरा नहीं कर रही है तथा आर.टी.ई. एक्ट-2009 के कानून को नही मान रही है जिसमें उन्हें हर 300 लोगों की आबादी वाले इलाके तथा 1 कि.मी. के अन्दर एक स्कूल की स्थापना करनी है।
उन्होंने कहा कि ‘‘जब तक शासन उपरोक्त बिन्दुओं का कानूनी तौर पर निराकरण नहीं करता है। तब तक हमारे सदस्य स्कूलों को आर.टी.ई. अधिनियम 2009 के प्रावधानों को लागू करने में कठिनाई होगी।’’
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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