उत्तर प्रदेष हिन्दी संस्थान के स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर बुधवार, 30 दिसम्बर, 2015 को अभिनन्दन पर्व -2014 एवं हास्य नाटक ‘ढोंग‘ का आयोजन किया गया। श्री उदय प्रताप सिंह, माननीय कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित अभिनन्दन पर्व में मुख्य अतिथि के रूप में श्री गोपाल चतुर्वेदी, विशिष्ट साहित्यकार आमंत्रित थे।
दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति डाॅ0 अलका निवेदन द्वारा की गयी।
मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत डाॅ0 सुधाकर अदीब, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
अभ्यागतो का स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक, डाॅ0 सुधाकर अदीब ने कहा - बाल साहित्यकार समाज को दिशा प्रदान करते हैं। बाल साहित्य की रचना ऐसी हो जिससे बाल मन के मानसिक विकास व नैतिक मूल्यों की संरचना में बढोत्तरी हो। बाल साहित्य की रचना अपने आप में बहुत बड़ा साहसिक कार्य है। बाल साहित्य बाल मन को समझने व सुधारने का कार्य करता है। बाल साहित्यकार बधाई के पात्र हैं।
अभिनन्दन समारोह में ‘सुभद्रा कुमारी चैहान महिला बाल साहित्य सम्मान‘ से श्रीमती स्नेहलता, ‘सोहन लाल द्विवेदी बाल कविता सम्मान‘ से श्री रमाकान्त मिश्र ‘स्वतंत्र‘, ‘निरंकार देव सेवक बाल साहित्य इतिहास लेखन सम्मान‘ से डाॅ0 विजयानंद तिवारी, ‘अमृत लाल नागर बाल कथा सम्मान‘ से श्री रमाषंकर, ‘लल्ली प्रसाद पाण्डेय बाल साहित्य पत्रकारिता सम्मान‘ से श्री बन्धु कुषावर्ती, ‘डाॅ0 रामकुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान‘ से श्री विनय कुमार मालवीय, ‘कृष्ण विनायक फड़के बाल साहित्य समीक्षा सम्मान‘ से डाॅ0 शेषपाल सिंह‘ शेष‘, ‘जगपति चतुर्वेदी बाल विज्ञान लेखन सम्मान‘ से डाॅ0 ज़ाकिर अली ‘रज़नीष‘ एवं ‘उमाकान्त मालवीय युवा बाल साहित्य सम्मान‘ से श्री आषीष शुक्ल को मंचासीन अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया ।
अभिनन्दित साहित्यकारों के प्रतिनिधि के रूप में बोलते हुए डाॅ0 ज़ाकिर अली रज़नीष ने कहा -विश्व मंे हिन्दी की पताका उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने फहराई है। संस्थान अपनी कर्तव्य निष्ठा से विश्व के कोने-कोने से ढूंढकर साहित्यकारों को सम्मानित करता है। बाल साहित्यकारों को लेकर पूरे देश में हलचल है। बाल सृजन करना एक कठिन कार्य कार्य है। बाल साहित्य की बाल मनोरंजन, मानसिक स्तर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बाल साहित्यकारों के समक्ष काफी चुनौतियाँ हैं। हमें बच्चों के मानसिक स्तर पर जाकर लिखना होगा।
श्रीमती स्नेह लता द्वारा काव्य पाठ करते हुए कहा -
जकड़ लिया सारी दुनियाँ को नित नवीन मृगतृष्णाओं ने,
वातावरण प्रदूषित करती धरती रौंदी आकाओं ने
नव विचार कर नव अन्वेषण धरती को मानव से जोड़ों
मांग समय की फिर से सोचों बिसरी कविता फिर से खोजो।
मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री गोपाल चतुर्वेदी ने कहा - बाल साहित्य की एक नयी विधा हैं आज बाल साहित्य में चुनौतियाँ हैं लेकिन उसमें लचीलापन है। पंचतंत्र की कहानियाँ बच्चों के लिए सर्वाधिक प्रचलित है सार्वभौमिक हैं। बाल कविता के पहले कवि सोहन लाल द्विवेदी थे। पहले बाल साहित्य की महत्ता जन सामान्य को नहीं थी।
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हरि कृष्ण देवसरे ने बाल साहित्य को वैज्ञानिकता प्रदान की। चन्दामामा, पराग, नन्दन बाल पत्रिकाओं ने भी बाल साहित्य को बढ़ावा दिया। बाल साहित्य वह विधा है जो बच्चों को संस्कार सिखाता है। बाल साहित्य का नैतिक आयाम होना चाहिए।
समारोह में अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए मा0 उदय प्रताप सिंह ने कहा - बाल साहित्य मुख्य साहित्य की धारा से कम नहीं है उन्होंने एक महान साहित्यकार के विचार उद्धृरित किये - अपने बच्चों को इस लिए प्यार करो कि उन बच्चों के माध्यम से आगे चलकर आप जीवित रहेंगे। बच्चों में नैतिक मूल्यों को पैदा कर हम राष्ट्र को आगे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
समारोह का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ0 अमिता दुबे, प्रकाशन अधिकारी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
इस शुभ अवसर पर संस्थान के यशपाल सभागार, हिन्दी भवन में श्री रमेश मेहता द्वारा लिखित तथा वरिष्ठ रंगकर्मी श्री संगम बहुगुणा द्वारा निर्देशित हास्य नाटक ‘ढोंग‘ का मंचन युवा उत्थान समिति, लखनऊ द्वारा किया गया। जिसमें प्रमुख रूप से मंच पर (हकीम गंधाधर) की भूमिका में श्री संगम बहुगुणा, (जमुना) सुश्री ममता प्रवीण, (नरेश) श्री अंकुर सक्सेना, (नीना) सुश्री माही त्रिपाठी, (हरिया) श्री रविकांत शुक्ला, (चंद्रा) सुश्री सिमरन अवस्थी, (प्रेम) श्री अम्बरीश बाॅबी, (पंडित सीताराम) श्री हरीश बडोला ने अभिनय किया। मंच परे (संगीत) श्री आलोक श्रीवास्तव, (प्रकाश परिकल्पना एवं संचालन) श्री मनीष सैनी, (मुख सज्जा) श्री शहीर अहमद, (मंच निर्माण) श्री शिव रतन एवं (प्रस्तुति प्रबन्धन) श्री अनुपम ने की। नाटक के प्रस्तुतकर्ता श्री शैलेन्द्र यादव थे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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