किसी भी राष्ट्र को निष्ठावान प्रमाणिक एवं राष्ट्रहित के पवित्रभाव से अनुप्राणित होकर अपनी समस्त प्रतिभा एवं कार्यषक्ति को राष्ट्र के हित में अर्पित करने वाले तरूणी की आवष्यकता होती है। निष्चय ही अन्तः शक्तियों के विकास की यह षिक्षा मनुष्य को उसकी बाल एवं किषोरावस्था में दी जा सकती है। भारतीय षिक्षा का अर्थ संस्कार होता है। षिक्षा उस व्यवहार का नाम है जो बालिका के जीवन एवं आचरण में परिवर्तन लाती है।
विद्या भारती अखिल भारतीय षिक्षा संस्थान के मार्ग दर्षन में देषभर में 13,500 विद्यालय एवं 11,600 संस्कार केन्द्र एकल षिक्षण केन्द्र चल रहे कुल 15,100 संस्थान संचालित है। बालिका षिक्षा 6 वड्र्ढ से 15 वड्र्ढ की बालिकाओं को सरकारी पाठ्यक्रम के उपरान्त किस प्रकार की षिक्षा देनी चाहिए, ऐसा चिन्तन, क्रियान्वयन विद्यालयों में प्रयोग करती है। बालिका षिक्षा की दृष्टि से विद्या भारती 11 क्षेत्र में विभाजित कर कार्य का संचालन कुषलतापूर्वक करती है। 45 प्रान्त से बालिका षिक्षा कार्यषाला में 100 महिला प्रतिनिधि सरस्वती कुंज, निरालानगर, लखनऊ में आज एकत्र होने वाले है। यह कार्यषाला 18,19 व 20 दिसम्बर 2015 तक विभिन्न विड्ढयों की चर्चा परिचर्चा द्वारा पूर्ण होगी। आगामी विद्यालय स्तरीय कार्ययोजना का निर्माण किया जायेगा। इन विद्यालयों मेें 9,51,150 बालिकायें षिक्षारत् है उनके योग्य दिषा देने के लिए 63,566 (महिला) आचार्या दीदी कार्यरत है।
हमारा मुख्य उद्देष्य बालिका का समग्र विकास करना, बालिका का मूलभूत, नैसर्गिक भावात्मक विषेड्ढताओं से युक्त करना। प्रकृति प्रदत्त शक्तियों एवं गुणों के विकास का अवसर देना है। किषोरी एवं तरूणी का शारीरिक, मनोवैज्ञानिक चुनौती परामर्ष परिवार प्रबोधन से करना। बालिकाओं में भारतीय दृष्टि एवं भारतीय नारी के रूप में विकसित हो ऐसी पीढ़ी का निर्माण करना। बालिकाओं में आत्मवोध, मातृत्वभाव देखने की दृष्टि तथा वर्तमान चुनौतियों का सामना दृढ़तापूर्वक कर सके। भौतिकवाद, उपभोगवाद, अतिषय उपयोग ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने की क्षमता आ सके।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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