जनता की समस्याओं के तुरंत समाधान के लिए राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन 12 दिसम्बर को पूरे प्रदेश की सभी अदालतो में कर के एक बार फिर देश में रिकार्ड कायम करने की कोशिश शुरू हो गयी है। प्रदेश के सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के निदेशक आशुतोष निरंजन ने बताया है कि बीते बर्ष में उ0प्र0विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत में देश में सबसे अधिक मामलो का निपटारा करने के कारण कीर्तिमान बना था। उ0प्र0विधिक सेवाप्राधिकरण के सचिव एस.एन. अग्निहोत्री ने बताया कि लोक अदालत से जनता को सस्ता, षीघ्र और सुलभ न्याय मिलता हैं। हर साल हजारों फरियादियों को लोक अदालत से न्याय मिलता रहा हैं। इसलिये लोक अदालत की प्रासंगिकता और उपादेयता बनी हुई हैं। राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन 12 दिसम्बर को पूरे प्रदेश की सभी स्थानो पर होगा।सचिव तेज प्रताप तिवारी ने लोक अदालत में लिए जाने बाले बाद के बारे में बिस्तार से जानकारी देते हुए सफलता के लिए मीडिया का जागरूकता अभियान में सहयोग की बात कही। ज्ञातव्य हैं कि लोक अदालत जनता को सस्ता, शीघ्र और सुलभ न्याय के लिये आयोजित किये जाते हैं। इन न्यायालयों में आपसी समझौते से प्रकरणों का निराकरण किया जाता हैं। वर्षो से लंबित प्रकरण एक दिन में निराकृत हो जाते हैं, जिससे फरियादी का समय और धन दोनों की बचत होती हैं। लोक अदालत में न्यायालय, अभिभाषक और फरियादी की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। तीनों के सहयोग से प्रकरणों का निराकरण सम्भव हो पाया हैं। लोक अदालत द्वारा मुकदामों का निपटारा करने के निम्नलिखित लाभ हैं वकील पर खर्च नहीं होता। कोर्ट-फीस नहीं लगती। पुराने मुकदमें की कोर्ट-फीस वापस हो जाती है।
किसी पक्ष को सजा नहीं होती। मामले को बातचीत द्वारा सफाई से हल कर लिया जाता है। मुआवजा और हर्जाना तुरन्त मिल जाता है। मामले का निपटारा तुरन्त हो जाता है। सभी को आसानी से न्याय मिल जाता है। फैसला अन्तिम होता है। फैसला के विरूद्ध कहीं अपील नहीं होती है।वर्ष 1976 में 42वें संशोधन के द्वारा भारत के संविधान में अनुच्छेद 39 के जोड़ा गया जिसके द्वारा शासन से अपेक्षा की गई कि वह यह सुनिश्चित करे कि भारत को कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य अक्षमताओं के कारण न्याय पाने से बंचित न रह जाये। इस उददेश्य की प्राप्ति के लिए सबसे पहले 1980 में केन्द्र सरकार के निर्देश पर सारे देश में कानूनी सहायता बोर्ड की स्थापना की गई। बाद में इसे कानूनी जामा पहनाने हेतु भारत सरकार द्वारा विधिक सेवा प्राधिकार अधिनियम 1987 पारित किया गया जो 9 नवम्बर 1995 में लागू हुआ। इस अधिनियम के अन्तर्गत विधिक सहायता एवं लोक अदालत का संचालन का अधिकार राज्य स्तर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकार को दिया गया।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकारण में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत अथवा सेवारत न्यायाधीश और सदस्य सचिव के रूप में वरिष्ट जिला जज की नियुक्ति की जाती है। इसके अतिरिक्त महाधिवक्ता, सचिव वित, सचिव विधि, अध्यक्ष अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग, मुख्य न्यायाधीश जी के परामर्श से दो जिला न्याशीधीश, अध्यक्ष बार काउन्सिल, इस राजय प्राधिकरण के सचिव सदस्य होते हैं और इनके अतिरिक्त मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से 4 अन्य व्यक्तियों को नाम निर्दिष्ट सदस्य बनाया जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक जिले में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया है।लोक अदालत को सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ के तहत सिविल कार्यवाही की शक्ति होगी। दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 195, और के अध्याय 6 के प्रयोजन हेतु की कार्यवाही सिविल कार्यवाही होगी। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193ए, 219 - 228 के तहत की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com