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चीन के दलाल हैं षड़यन्त्रकारी साहित्यकार-रवीन्द्र शुक्ल अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा को तहस-नहस किया

Posted on 01 December 2015 by admin

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय मंत्री व उप्रः सरकार के पूर्व मंत्री रवीन्द्र शुक्ल ने कहा कि तथाकथित षड़यन्त्रकारी साहित्यकार चीन के दलाल हैं। उन्होंने कहा कि जो भारत की समृद्धि को देखना नहीं चाहते हैं वह चीन के इशारे पर विश्व पटल पर भारत का नाम खराब कर रहे हैं। वह मंगलवार को अखिल भारतीय साहित्य परिषद की ओर से हिन्दी संस्थान में आयोजित गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि इस बार विश्व हिन्दी सम्मेलन में शराब व शबाब नहीं मिला इसी से वह अपने साहित्य के माध्यम से भारत की छवि खराब कर रहे हैं। इसके पीछे अन्तर्राष्ट्रीय साजिश है ताकि भारत को सुरक्षा परिषद में सदस्यता न मिले।
रवीन्द्र शुक्ल ने कहा कि हमारी संस्कृति का जितना नुकसान मुगल शासनकाल में नहीं हुआ उससे कई गुना अधिक नुकसान अंग्रेजों के शासनकाल में हुआ। अंग्रेजों ने योजनाबद्ध ढं़ग से हमारी संस्कृति को नष्ट किया। अंग्रेज एक वर्ग विशेष को यह समझाने में सफल रहे कि भारत का चिंतन अधूरा है।
उन्होंने कहा कि जब दुनिया के लोग कबीलों में रहते थे उस समय हमारे यहां के मनीषियों ने वेदों की रचना की थी।
वरिष्ठ स्तम्भकार व भाजपा विधान परिषद दल के नेता हृदय नारायण दीक्षित ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि प्रकृति का संरक्षण हमारी परम्परा है। यह हमें जन्मजात मिला है और यह हमारी संस्कृति में रचा बसा है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण एक ऐसा आवरण है जिससे हम आच्छादित हैं। प्रकृति का यदि ठीक से अनुशरण नहीं किया तो हम नष्ट हो जायेंगे।
भाजपा नेता ने कहा कि वामपंथी साहित्यकार गलत भ्रम फैला रहे हैं कि भारत में देवी उपासना नहीं थी। जबकि हमारे यहां,नदियों,पर्वतों, अग्नि और वृक्षों तक को माता माना है। उन्होंने कहा कि भारत ही एक ऐसा देश है जहां साहित्य और धर्म एक साथ निकले हैं।
साहित्य परिषद के प्रदेश महामंत्री पवन पुत्र बादल ने कहा कि साहित्य न वामपंथी  होता है न दक्षिणपंथी। जो समाज को दिशा देता है वहीं साहित्य है। आज                                     साहित्य परिषद के नाम से  विश्व का मार्गदर्शन करने का काम साहित्य परिषद कर रहा है। पवन पुत्र बादल ने कहा कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद समस्त भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों का एक मात्र संगठन है। यह संगठन पूरे देश के साहित्यकारों को संगठित करने और नवोदित साहित्यकारों को एक दिशा देने का काम करता है।
मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि ने कहा कि पर्यावरण के संरक्षण के लिए सबको पहल करनी होगी। आज प्रकृति के कारण ही हम जिन्दा हैं। उन्होंने  कहा कि साहित्यकार समाज के स्तम्भ हैं। इसलिए वह अपने साहित्य के माध्यम से पर्यावरण के प्रति लोकजागरण करें।
इस अवसर पर साहित्यकारों ने पी.एस.चन्देल द्वारा लिखित पर्यावरण वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण पुस्तक का विमोचन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार सुशील चन्द्र त्रिवेदी और संचालन इं. सुनील बाजपेई ने किया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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