गोमती तट स्थित झूलेलाल पार्क में २५ नवम्बर २०१५ को प्रातः हर्षोल्लास के साथ लखनऊ के ओडिआ समुदाय द्वारा कार्तिक पूर्णिमा तथा बोइत बन्दाण(पूजन) उत्सव मनाया गया।
लखनऊ शहर के कोने कोने से ओडिआ समुदाय के सदस्य प्रातः गोमती तट पर एकत्र हुए थे । सैकडों महिलायें अपनी पारम्परिक वेशभूषा में आयी थीं। उन्होनें केले की छाल से बनी हुई छोटी छोटी नावों को गोमती नदी में प्रवाहित किया।
’बोइत बन्दाण’ ओडिआ समुदाय का एक मुख्य पर्व है, जो कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन प्रातः अनुष्ठित किया जाता है। यह उत्सव ओडिशा कि गौरवमय सामुद्रिक यात्रा की स्मृति में मनाया जाता है। प्राचीन काल में ओडिशा के साधव गण(सामुद्रिक व्यापारी गण) व्यापार के लिए सुदूर जावा,सुमात्रा,बोर्निओ,बाली तथा सिलोन आदि द्वीपों को बडी बडी नाव(बोइत) में सवार होकर जाते थें। साधव कुलवधूओं के द्वारा साधव गण पूजित होकर विदाई लेते थें। वह समय अब इतिहास बन चुका है परन्तु उसकी स्मृति आज भी शेष है। आज के समय में कार्तिक पूर्णिमा के दिन ओडिशा के लोग केले की छाल से छोटी छोटी नाव बना कर उन दिनों को याद करते हुए पानी में बहाते हैं। यह ’बोइत बन्दाण’ के नाम से जाना जाता है।
इस अवसर पर लखनऊ ओडिआ समाज द्वारा एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिस में ओडिशा की प्रख्यात पार्श्वगायिका श्रीमती सुस्मिता दास अनेक नये एवं पुराने ओडिआ गीतों को प्रस्तुत कर श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध किया।
लखनऊ ओडिआ समाज के अध्यक्ष श्री गोपबन्धु पट्टनायक जी ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा का यह उत्सव ओडिआ समाज द्वारा वर्ष २०११ में मनाना प्रारम्भ किया गया था और तभी से प्रतिवर्ष एक पारम्परिक एवं सांस्कृतिक उत्सव के रूप में निरन्तरता से आयोजित किया जा रहा है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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