1. असम राज्य के राज्यपाल श्री पी. बी. आचार्य के इस असंवैधानिक व अत्यंत ही गै़र-जि़म्मेदाराना बयान कि हिन्दुस्तान केवल हिन्दुओं के लिए है’, तीखी आलोचना व भत्र्सना करते हुए उन्हें तत्काल बखऱ्ास्त करके उनके खिलाफ नियमानुसार क़ानूनी कार्रवाई करने की बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद (राज्यसभा) व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती जी माँग।
2. देश में लगातार बढ़ती जा रही असहिष्णुता व असहनशीलता के साथ-साथ उग्र, अमर्यादित व घृणा भरी बयानबाज़ी करने से मुल्क में हर तरफ अशान्ति व अफरा-तफरी फैलाना देश के समक्ष एक ’’नई घातक बीमारी’’: सुश्री मायावती जी।
नई दिल्ली, 23 नवम्बर, 2015: बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद (राज्यसभा) व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती जी ने असम राज्य के राज्यपाल श्री पी. बी. आचार्य के इस असंवैधानिक व अत्यंत ही गै़र-जि़म्मेदाराना बयान कि हिन्दुस्तान केवल हिन्दुओं के लिए है’, तीखी आलोचना व भत्र्सना करते हुए उन्हें तत्काल बखऱ्ास्त करके उनके खिलाफ नियमानुसार क़ानूनी कार्रवाई करने की माँग की है।
आज यहाँ जारी एक बयान में सुश्री मायावती जी ने कहा कि एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को यह थोड़ा भी शोभा नहीं देता है कि वे संविधान के विपरीत जा कर अत्यंत ही विवादित व अमार्यादित बयान दें। परन्तु दुर्भाग्यवश भाजपा की केन्द्र सरकार ने इसी ही प्रकार की दूषित सोच व ग़लत मानसिकता रखने वाले आर.एस.एस. से सम्बद्ध अनेक लोगों को उच्च संवैधानिक पदों पर बैठाया हुआ है, जो हमेशा ही संविधान की मूल व सही मंशा से काम नहीं करते हुए, उसके खि़लाफ ही बोलते व काम करते रहते हैं।
उन्होने कहा कि भारत विभिन्न जातियों व विभिन्न धर्मों से जुड़ा हुआ देश है और ’’अनेकता में एकता’’ ही हमेशा ही इसकी खूबसूरती व शक्ति भी रही है। भारत को किसी एक जाति व किसी एक धर्म से जोड़ना भारतीय आदर्श, परम्परा व भारतीय संविधान की गरिमा के पूरी तरह से विरूद्व होगा।
भारत को आर.एस.एस. व श्री गोलवालकर की संकुचित व संकीर्ण सोच व विचारधारा से जोड़ने का प्रयास हमेशा ही देश की जनता ने नापसंद किया और ऐसे तत्वों को एक सीमा से ज्यादा कभी भी नहीं आगे बढ़ने दिया है और यह पूर्णरूप से देश हित में ही है कि हर जाति व धर्म के मानने वाले लोगों को बराबरी व न्याय का उसका संवैधानिक हक मिले और कानूनी व संविधान की मंशा के विपरीत कार्य करने वाले ख़ासकर उच्च पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ तत्काल उचित कार्रवाई हो ताकि वैसे व्यक्तियों द्वारा अनर्गल, विवादित व अमार्यादित बयानबाज़ी करके अपने पद की गरिमा समाप्त करने का वर्तमान में जारी सिलसिला बन्द हो। साथ ही, इस प्रकार की कार्रवाई करके प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी यह साबित करें कि वे खाली उपदेश नहीं देते हैं, बल्कि अपनी कथनी के प्रति थोड़ा संवेदनशील व गंभीर भी हैं।
ख़ासकर असम के राज्यपाल श्री पी.बी. आचार्य के मामले में सख़्त कार्रवाई करके श्री नरेन्द्र मोदी सरकार को यह साबित करना चाहिए कि विदेशी दौरों में भी वे सस्ती लोकप्रियता व केवल वाहवाही लूटने वाली बातें नही करते हैं, बल्कि अब लगभग डेढ़ वर्ष के अपने कार्यकाल के बाद थोड़ा गंभीर हैं और आर.एस.एस. के डिकटैट से ज़्यादा उन्हें देशहित की चिन्ता है।
असहनशीलता: देश में लगातार बढ़ती जा रही असहिष्णुता व असहनशीलता के साथ-साथ उग्र, अमर्यादित एवं घृणा भरी बयानबाज़ी करने मुल्क में हर तरफ अशान्ति व अफरा-तफरी फैलाने की ’’नई घातक बीमारी’’ के सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि देश की ऐसी परिस्थिति पर चिन्तित होना और उसके समाधान का रास्ता तलाश करने हेतु गंभीर बहस करना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, क्योंकि देश का हित इन मामलों से सीधा-सीधा जुड़ा हुआ है।
इस बारे में हमारी पार्टी का यह कहना है कि वैसे तो असहिष्णुता व असहनशीलता एवं उपेक्षित व लाचार लोगों को दबाकर रखना, उन्हें अनेकों प्रकार से प्रताडि़त करना व शोषण का शिकार बनाना आदि, यह सब एक प्रकार की ’’सामाजिक बीमारी’’ के रूप में जाना और समझा जाता रहा है और इस सम्बन्ध में सरकारों की यह जि़म्मेदारी व कर्तव्य रहा है कि ऐसे उग्र व आसामाजिक तत्वों के खि़लाफ ’’समुचित कानूनी कार्रवाई’’ की जाये तथा इन पर अंकुश लगाकर इन्हें और आगे बढ़ने से हर प्रकार से रोका जाये।
हालांकि यह प्रवृत्ति भी आम रही है कि विरोधी पार्टियों की सरकारें अगर खुलेआम नहीं तो चोरी-छुपे ही सही ऐसे नापाक तत्वों असामाजिक तत्वों को सहायता व संरक्षण देती रही हैं, लेकिन इसके बावजूद भी इस प्रकार का ग़लत संरक्षण पाने वाले आसामाजिक व उग्र तत्वों की हिम्मत कभी भी इतनी ज़्यादा नहीं बढ़ पायी थी कि वे एक प्रकार से ’’आराजक तत्व’’ बन जाये, जो देश के लोग उद्ववेलित कर दे।
परन्तु जबसे भाजपा के नेतृत्व में केन्द्र में एन.डी.ए. की नई सरकार बनी है, तबसे ना केवल भाजपा एण्ड कम्पनी के लोग व इनकी संरक्षक संस्था के लोग इतने ज़्यादा असहनशील, असहिष्णु व उग्र हो गये हैं कि पूरे देश का सामाजिक व साम्प्रदायिक माहौल काफी ज़्यादा बिगड़ने लगा है। इतना ही नही, बल्कि पराकाष्ठा यह है कि काफी बड़े व ऊंचे जि़म्मेदार पदों पर बैठे लोगों के बयान भी इतने ज़्यादा अमर्यादित व विवादास्पद एवं गैर-संवैधानिक होते हैं कि उन्हें यहाँ पर दोहराया जाना भी मुश्किल ही है।
कुल मिलाकर आज देश में जो इस प्रकार की ’’विचित्र व अभूतपूर्व परिस्थिति’’ का निर्माण होता जा रहा है उससे देश की जनता आज नहीं तो कल ज़रूर निपट लेगी, परन्तु, इससे देश की जो जग-हंसाई हो रही है और देश की इमेज व प्रतिष्ठा पर जो आघात लगातार लग रहा है, उसका क्या होगा, उसकी भरपाई कैसे होगी? यह एक गंभीरतापुर्वक सोचने वाली बात है।
सुश्री मायावती जी ने कहा कि इस बारे में जैसा कि जग-ज़ाहिर ही है कि देश की बहुसंख्यक शान्ति-प्रिय जनता के साथ-साथ श्रमजीवी व बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों की चिन्ता यह नहीं है कि कुछ मुट्ठीभर असहष्णिु, असहनशील व उग्र रवैये व बयानबाज़ी करने वाले लोग बेख़ौफ हो गये हैं, बल्कि उनकी वास्तविक चिन्ता व बेचैनी इस बात को लेकर है कि केन्द्र की नई एन.डी.ए. सरकार ऐसे घोर आसामाजिक व आपराधिक तत्वों को ना केवल रोक पाने में जान-बूझ कर विफल साबित हो रही है, अपितु उनको हर प्रकार से उचित मानकर उनको हर स्तर पर सरकारी संरक्षण व सुरक्षा तक मुहैया करा रही है।
केन्द्र व भाजपा-शासित राज्य की सरकारों द्वारा जिन लोगों को जनता के गाढ़े पैसे की कमाई पर सरकारी सुरक्षा दी गई है, उस सूची का विश्लेषण कर लिया जाये तो पूरा मामला साफ तौर पर सामने आ जायेगा कि किस प्रकार का ग़लत रवैया भाजपा की सरकारों ने अपनाया हुआ है। यही कारण है कि देश की जनता ने भाजपा की कथनी और करनी में भयावह अन्तर को समझ लिया है और इससे पी.एम. तक की इमेज दाव पर लग गई है, ऐसा जनता के रवैये से साफ तौर पर मालूम पड़ता है।
परन्तु माननीय प्रधानमंत्री जी को इसकी परवाह नहीं है, यह भी स्पष्ट तौर पर झलकता है। इसकी ख़ास वजह यह है कि मा. प्रधानमंत्री जी व केन्द्र की सरकार में बैठे लोग बार-बार अपने आपको उस आर.एस.एस. का ’’स्वयंसेवक’’ कहते हुये गर्व का अनुभव करते हैं, जिस संस्था की सोच व विचारधारा, भारत की मूल आत्मा ’’हिन्दुस्तान केवल हिन्दुओं का नहीं बल्कि सभी जाति व धर्म को मानने वाले समस्त देशवासियों का है तथा अनेकता में एकता’’ के सिद्धान्त में विश्वास नहीं करती है। साथ ही, उनका यह मानना है कि केवल ’’हिन्दू राष्ट्र’’ में रहने वाले हिन्दू समाज के लोग ही केवल देश भक्त हो सकते हैं।
वैसे तो और भी बहुत सी बातें हैं, परन्तु क्या ऐसी ’’संकीर्ण व उग्र ग़ैर-मानवतावादी सोच व विचारधारा’’ के तहत काम करने वाली संस्था के लोगों से आप एक ’’धर्मनिरपेक्ष समता व मानवतावादी सरकार’’ की कल्पना कर सकते हैं क्या? यही कारण है कि इस प्रकार की संकीर्ण व उग्र सोच व विचारधारा रखने वाले लोगों के विपरीत, संवैधानिक सोच रखने वाले हमारे देश के राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति आदि इस बारे में जब कुछ बोलते हैं तो उसका प्रभाव होता है और लोग गम्भीर होकर उनकी बातों पर सोचते हैं। परन्तु उसी प्रकार की बात जब वर्तमान एन.डी.ए. सरकार के लोग बोलते हैं तो उसमें वज़न नहीं होता, बल्कि उस उपदेश का उन्हीं के लोग हर तरफ खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुये नज़र आते हैं।
इस बारे में हमारी पार्टी का यही कहना है कि भारत का मानवतावादी संविधान, हमारी देश की तमाम सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक समस्याओं का समाधान प्रदान करता है। इसमें ग़लत कारणों से ख़ामियां या त्रुटियां निकालकर उसमें अनुचित संशोधन करने का प्रयास व इस संविधान के तहत ’’आरक्षण’’ जैसे मानवीय प्रावधानों को निष्क्रिय व निष्प्रभावी बनाने वालों को देश की जनता ने हमेशा उचित सबक़ सिखाया है। और अगर इस पवित्र संविधान को इसकी सही मंशा के तहत् लागू करने का प्रयास नहीं किया गया तो इससे मुल्क का बड़ा भारी नुक़सान होगा और देश अनेको प्रकार की समस्याओं से घिरकर कभी भी आपेक्षित उन्नति व तरक्की नहीं कर पायेगा, जैसाकि काफी कुछ असर अब लोगों को दिखने भी लगा हैे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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