उत्तर प्रदेशीय चतुर्थ श्रेणी राज्य कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष रामराज दुबे ने गैर राजपत्रित पदों की भर्ती में साक्षात्कार खत्म करने के निर्णय पर प्रश्न करते हुए कहा कि मन की बात करने के दौरान भारत के प्रधानमंत्री दूसरे पक्ष को ध्यान में नही रख सके। उनके इस निर्णय से एक तबका गैर राजपत्रित सरकारी सेवाओं से पूरी तरह वंचित रह जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्यों अधीन चल रहे बोर्ड एवं उनकी पढ़ाई का स्तर काफी कमजोर है। ऐसे में गैर राजपत्रित सरकारी सेवा में केवल सीबीएससी और आईसीएससी के छात्रों को ही मेरिट के आधार पर सेवा का मौका मिल पाएगा। ऐसे में प्रधानमंत्री को एक बार मन की बात के दौरान लिये गए निर्णय पर पुर्नविचार करना चाहिए।
श्री दुबे ने कहा कि गैर राजपत्रित पदों की भर्ती में इन्टरव्यू समाप्त करने से बेहतर था कि श्री मोदी देश में एक जैसी शिक्षा प्रणाली पर जोर देने के साथ गिरते शिक्षा के स्तर को सुधारने एवं राज्यों के शैक्षणिक ढाॅचे का पुर्नगठन करने, संसाधन बढ़ाने तथा बेहतर शिक्षकों की कमी को पूरा करने का कोई अहम निर्णय लेते। श्री दुबे ने कहा कि इन्टरव्यू समाप्त कर केवल मेरिट के आधार पर जो निर्णय लिया गया है उसका परिणाम यह होगा कि राजकीय बोर्डो से उत्र्तीण छात्र जिनका औसतन उत्र्तीण परिणाम 60 से 70 प्रतिशत रहता है। वे सीबीएसई तथा आईसीएससी के उन छात्रों जिनका औसतन उत्र्तीण परिणाम 80 से 98 प्रतिशत रहता है उनके सामने मेरिट में पिछड़ जाएगे और राज्यों के बोर्ड से उत्र्तीण हाईस्कूल एवं इन्टर के छात्रों के लिए गैरराजपत्रित पदों पर सेवा केवल एक स्वप्न बनकर रह जाएगी। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय विद्यालयों एवं सीबीएसई तथा आईसीएससी की शिक्षा दे रहे निजी संस्थानों की अपेक्षा राज्यों के विद्यालय संसाधन विहिन होने के साथ ही कई अन्य असुविधाओं के बीच संचालित हो रहे है। ऐसे में बेहतर होता कि प्रधानमंत्री राज्यों की शिक्षा प्रणाली को भी आईसीएससी एवं सीबीएससी के मुकाबले बेहतर बनाते तो यह निर्णय एकतरफा न होता।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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