‘‘छायावाद नवचेतना एवं नवजागरण का काव्यान्दोलन था। देवरिया की माटी में जन्मे डा. शम्भुनाथ सिंह ने वाराणसी को केन्द्र बनाकर समकालीन कवि गीतकारों के साथ मिलकर इस प्रगतिशील चेतना को नवस्वर प्रदान किया।’’ यह विचार साहित्यकार एवं दीनानाथ पाण्डेय महिला राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डा. दिवाकर प्रसाद तिवारी ने विश्व भोजपुरी सम्मेलन एवं डा. शम्भुनाथ सिंह शोध संथान के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘‘डाॅ शम्भुनाथ सिंह स्मृति समारोह एवं काव्य संध्या’’ में मुख्य अतिथि पद से व्यक्त किए। साहित्यिक पत्रिका ‘अंचल भारती’ के सम्पादक श्री जयनाथ मणि त्रिपाठी जी ने कहा कि उन्होने नवगीत को नई ऊँचाई और नूतन संस्कार दिया। वे छायावादोत्तर गीतधारा के सुयोग्य-सशक्त हस्ताक्षर थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्री गिरीधर ‘करूण’ ने कहा कि ‘‘छायावादी गीतो के अवसान के समय डाॅ. शम्भुनाथ सिंह ने नवगीतात्मकाता की शक्ति लेकर गीतों को एक सहज और सहज अभिव्यक्ति दी।‘‘
प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत करते हुए फाउण्डेशन के महासचिव एवं मुख्य कार्यकारी डा. राजीव कुमार सिंह ने कहा कि देवरिया की माटी के सपूत तथा हिन्दी गीतों को नया तेवर देने वाले तथा साहित्य की सभी विधाओ पर समान रूप से हस्तक्षेप रखने वालो मूर्धन्य साहित्यकार स्व. डा. शम्भुनाथ सिंह की जन्मशती समारोह श्रृंखला की कड़ी में आज यह कार्यक्रम देवरिया में आयोजित हो रहा है। इस श्रृंखला का उद्घाटन विगत 16 जून 2015 को वाराणसी में देश के शीर्षस्थ कवि-समालोचक डा. केदारनाथ सिंह ने किया था। उन्होने कहा कि देवरिया जिले के ग्राम- राउतपार अमेठिया में 17 जून 1916 को जन्मे डा. शम्भुनाथ सिंह का स्मारक उनके जन्म स्थान पर बनाने के लिए समाज के सभी वर्गो को आगे आने की जरूरत है।
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में श्री योगेन्द्र नारायण मिश्र ‘वियोगी’ के संयोकत्व में आयोजित काव्य गोष्ठी में कवियों ने अपने काव्य सुमन अर्पित किए।
छेदी प्रसाद गुप्त ने पढ़ा-‘‘प्रशासन आजकल बा हो गइल, अन्धा और बहरा, भला फरियाद के सुनी, जहाँ बा धूर्तन का पहरा।’’ गौरी बाजार से आए सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ ने कहा-‘‘चीर हरण आज भी है जारी, मौन है नारी’’
उत्तराखण्ड में कार्यरत डा. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘नन्द’ ने पढ़ा, ‘‘दुनिया निष्ठुर तुमको कहती, मुझसे नही सहा जाता है, मुझको इक लावारिस व्यक्ता, फेंकी नाम दिया जाता है।’’ दयाशंकर कुशवाहा ने पढ़ा, ‘‘चल रही कैसी हवा, जल रहा तन-मन यहाँ। छा रहा ये बबूल कैसे, खो गया चन्दन कहाँ।’’
मुझे चिंता नही उसकी, उसे चिंता हमारी है।
खुदा से कम नही है वो, मेरी बेटी जो प्यारी है।।
-योगेन्द्र तिवारी ‘‘योगी’’
देवी गीत-
‘‘आइल नवरात्रि त्योहार, सजि गइल मैया के घर-बार।
मलिया करेला पुकार, कि माई के पहरा आइल बा।।’’
-प्रस्तुति- शैलेष चन्द्र तिवारी
यह वक्त बदलता ही रहता है हर छन,चेहरा बदले पर नहीं बदलता दर्पण,
कैसे अनजाने भी पहचाने हो जाते हैं, मैने देखा है !’’
-उमाशंकर द्विवेदी
तीनो लोक जानेला, मईया दुर्गाकाली की तरे,
दर्शन दे द मईया हमके महतारी की तरे।।
-सौदागर सिंह
परिवर्तन से गुजर रही है मानवता की भाषा
तुम्ही कहो मै कैसे लिख दूँ जीवन की परिभाषा।।
-इन्द्रकुमार दीक्षित
जय आदि शक्ति देवी जननी, भगवती जयति दुर्गा माता,
सबसे सुन्दर सबसे पावन, अति मन भावन भारत माता।।
-विनोद पाण्डेय
वंसती विवाह के झोकों में, रूपयों का दिवार अड़ा है।
कैसे कहें संबध इसे, जब रिश्तों में व्यापार खड़ा है।।
-सच्चिदानन्द पाण्डेय
आह बाकी कराट बाकी है,उनसे मिलने की माह बाकी है।
जिन्दगी ने सजा सुना दी,अब तो केवल गुनाह बाकी है।।
-योगेन्द्र नारायण ‘वियोगी’
भाव नहीं तो आदर की, राह कहाॅ दिखती
भाव मिल जाते, तो आदर की आशा कहाॅ रहती।
मुलाकातें स्नेह की प्रतीक होती है जनाब
बिछुड़े हुओं से मिलने की आषा कहाॅ रहती।।
-कृष्ण मुरारी तिवारी
शहर-शहर गली आइल चुनाव बा
ओटवा के नाम पर समाज इ लुटात बा।
-अनिल गौतम
कार्यक्रम का संयोजन व संचालन श्री उद्भव मिश्र एवं धन्यवाद ज्ञापन पं. जगदीश उपाध्याय ने किया। इस अवसर पर सर्वश्री जगन्नाथ श्रीवास्तव, अभिनव मिश्र, रविन्द्र बरनवाल, राजेश मणि आदि उपस्थित थे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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