संसद में आज प्रस्तुत रेलवे बजट 2010-11 निराशाजनक है। आम आदमी की उम्मीदों पर वह खरा नहीं उतरने वाला है। यह बजट सम्पूर्ण भारत नहीं, पश्चिम बंगाल के मतदाताओं को दृष्टि में रखकर बनाया गया है। रेलमन्त्री ने देश के सबसे बड़े प्रदेश के साथ नाइंसाफी की है। यू0पी0 के मायने सुश्री ममता बैनर्जी ने सिर्फ अमेठी-रायबरेली को मान लिया है। वह सोनिया-राहुल के प्रति उनका कृतज्ञता ज्ञापन है, जो खासकर पं0 बंगाल में उन्हें पूरी मनमानी की छूट दिए हुये है और केन्द्र सरकार में उनकी घोैसपट्टी की अनदेखी करती रहती है।
रेल बजट में ज्यादातर पुरानी घोषणाएं ही दुहराई गई हैं। इटावा-मैनपुरी रेल लाइन की बात बेमानी है जो श्री मुलायम िंसंह यादव के जोर देने पर शुरू हुई थी पर उस पर काम बहुत ही धीमी गति से चल रहा है। रेलमन्त्री ने घोषणाएं तो बहुत की हैं किन्तु ऐसा लगता नहीं कि उनके रेलमन्त्री रहते वे पूरी भी हो पाएंगीं। वह इच्छाशक्ति केन्द्र सरकार और रेल मन्त्रालय में दिखाई ही नहीं देती जो समग्र विकास की गारंटी देती है। नया रेलमन्त्री पुराने रेलमन्त्री के मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय बनने की चाहत में ऐसी ही घोषणाएं करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। सुश्री ममता बैनर्जी ने भी उसी परम्परा का पालन किया है। मन्दी -महंगाई की मार से पीड़ित अर्थ व्यवस्था में उनकी घोषणाओं का हश्र क्या होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है।
रेल मन्त्री ने एक घंटे 50 मिनट के लम्बे भाषण में न तो यह भरोसा दिलाया कि वे ट्रेनों की लेट लतीफी पर रोक लगाएगी और न हीं यात्री सुरक्षा और सुविधाओं की खस्ता हालत में सुधार की कोई बात की। रेलवे के हादसों से उन्होंने कोई सबक लिया ऐसा दिखता नही । रेलवे में सफाई, प्लेटफार्मों पर अव्यवस्था तथा प्रतीक्षालयों की दिक्कतों पर वे मौन रह गई हैं। स्वतन्त्रता सेनानियों को कोई राहत देने के बजाए उन्होंने स्टेशनों के नाम शहीदों के नाम पर रखने की बात करके उनसे मजाक किया हेै। उनकी महिला वाहिनी कब बनेगी और कब सुरक्षा देगी, यह भी साफ नहीं है। वे वायदे तो पहले भी कर चुकी हैं जो आज भी पूरे नहीं हुए हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि रेलमन्त्री ने वास्तविकता की पड़ताल किए बिना ऐटलस सामने रखकर योजनाएं घोषित कर दी है। तमाम योजनाओं के लिए पैसा कहॉ से आएगा, इनका कोई उल्लेख रेल बजट में नहीं है। संसाधनों के बढ़ाने पर बजट में कोई ध्यान नहीं दिया गया है। ऐसे में यही आशंका होती है कि जैसी कि अब नई परम्परा चल पड़ी है, बजट के बाद कर लगाए जाएंगे और जनता की जेब पर अप्रत्यक्ष रूप से डाका डाला जाएगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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