प्रदेश राज्यपाल श्रीराम नाईक ने कहा कि राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का जीवन असाधारण था। उनका मानना था कि हिंदी ही एक मात्र ऐसी भाषा है, जो देश भर को एक सूत्र में जोड़ सकती है। हिंदी के प्रचार- प्रसार के लिए उन्होंने काफी कष्ट उठाए। वह भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जयंती एवं सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे।राजर्षि टंडन के जीवन पर प्रकार डालते हुए उन्होंने कहा कि मैंने उन्हें नजदीक से देखा है। टंडन जी देश के इतिहास में असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे। सन 1857 के संग्राम को अंग्रेजों ने बगावत कहा था। यह बगावत नहीं बल्कि भारत की स्वतंत्रता का पहला युद्ध था। सावरकर ने उसे उजागर किया था। सन 1857 के बाद लगभग 25 वर्ष बाद राजर्षि का जन्म हुआ। उस समय सबसे बड़ी चुनौती देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने की थी। स्वाधीनता आंदोलन में टंडन शामिल हुए और महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई, लेकिन उनका उद्देश्य स्वतंत्रता के बाद कैसा देश बने यह था। यह उनकी सोच थी। इसी भूमिका में उन्होंने हिंदी का आकलन किया। हिंदी सबको जोड़ सकती है। हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने जीवन भर कष्ट उठाया।
वह पत्रकार भी थे। उस समय की पत्रकारिता आजादी प्राप्त करने का ध्येय थी। राज्यपाल श्रीराम नाईक ने पत्रकार सुरेंद्र कुमार अग्निहोत्री, को राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया।शतरंग टाइम्स पत्रिका का बिमोचन राज्यपाल श्रीराम नाईक ने किया ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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