दलितों की ज़मीन ग़ैर-दलितों द्वारा ख़रीदे जाने पर लगी क़ानूनी रोक समाप्त करने का उ.प्र. सपा सरकार का फैसला ’’घोर दलित-विरोधी व उसकी जातिवादी सोच व साजि़श का परिणाम’’।

Posted on 13 August 2015 by admin

दलितों की ज़मीन ग़ैर-दलितों द्वारा ख़रीदे जाने पर लगी क़ानूनी रोक समाप्त करने का उ.प्र. सपा सरकार का फैसला ’’घोर दलित-विरोधी व उसकी जातिवादी सोच व साजि़श का परिणाम’’। दलितों को आजीवन शोषित-पीडि़त व भूमिहीन एवं खेतिहर मज़दूर ही बनाये रखने की सपा की ज़हरीली साजि़श: बी.एस.पी. प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती जी

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद (राज्यसभा) व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती जी ने उत्तर प्रदेश में दलितों की ज़मीन ग़ैर-दलितों द्वारा ख़रीदे जाने पर लगी क़ानूनी रोक को समाप्त करने सम्बंधी प्रदेश समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार द्वारा हाल ही में लिये गये फैसले की तीखी आलोचना करते हुये कहा कि यह घोर दलित- विरोधी फैसला वास्तव में दलितों को पूर्ण रूप से भूमिहीन बनाये रखने की जातिवादी सोच व साजि़श का ही परिणाम है और इससे अब ख़ासकर सपा के गुण्डों व माफि़याओं द्वारा प्रदेश भर में दलितों की ज़मीन पर जबरन क़ब्ज़ा करने की होड़ लग जाने की आशंका बढ़ गयी है।

बी.एस.पी. प्रमुख सुश्री मायावती जी ने आज यहाँ जारी एक बयान में कहा कि वैसे तो दलित समाज के लोग इस देश में व्याप्त वर्ण व्यावस्था के कारण सदियों से ही भूमिहीन रहे हैं, परन्तु परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के अथक प्रयासों के कारण यहाँ देश में उनके द्वारा बनाये गये मानवतावादी संविधान व उसमें आरक्षण की व्यावस्था के कारण देश की आज़ादी के बाद इस शोषित वर्ग के लोग जो थोड़ी भूमि अपनी रोज़ी-रोटी के लिये अर्जित कर पाये हैं, उसे भी उत्तर प्रदेश की सपा सरकार अपनी जातिवादी सोच व ज़हरीली नीति के कारण उन दलितों से छीन करके उन्हें आजीवन भूमिहीन ही बने रहने को विवश करना चाहती है। इसी कारण सम्बन्धित क़ानून में संशोधन करने का प्रस्ताव प्रदेश मंत्रिमंण्डल द्वारा दिनांक 4 अगस्त सन् 2015 को पारित किया गया है।

जबकि उत्तर प्रदेश ज़मीनदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था क़ानून, 1950 की धारा 157 (क) में स्पष्ट प्रावधान है कि अनुसूचित जाति के भूमिधर व्यक्ति कलेक्टर की पूर्व स्वीकृत के बिना दलित वर्ग के व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को ना तो ज़मीन बेच सकते हैं और ना ही दान, बंधक, या पट्टा द्वारा अंतरित कर सकते हैं। साथ ही, कलेक्टर दलित समाज के व्यक्ति को किसी अन्य वर्ग के लोगों को ज़मीन बेचने की अनुमति तभी दे सकते हैं जब दलित के पास कम-से-कम  1.26 हेक्टेयर से अधिक ज़मीन हो। यही नहीं, बेचने के बाद भी इतनी ही ज़मीन उसके पास बची भी रहनी चाहिये।

इसी ही क़ानूनी प्रतिबन्ध के कारण दलित समाज के कुछ लोगों के पास आज थोड़ी भूमि बच पायी है, वरना इस वर्ग की ज़्यादातर आबादी भूमिहीन हैं और खेतिहर मज़दूरी व दैनिक मजदूरी करके अपना जीवन किसी प्रकार गुज़र-बसर करने को विवश हैं।
ठीक ऐसे समय में जबकि आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था को निष्क्रिय व निष्प्रभावी बनाकर दलित समाज के लोगों को सरकारी नौकरियों से भी वंचित रखने का षड़यंत्र रचा जा रहा है व साथ ही वर्षो पहले प्रमोशन पाने वाले सरकारी कर्मचारियों को नीचे के पद पर ढकेलने का जुल्म ढाया जा रहा है, उत्तर प्रदेश सपा सरकार द्वारा दलित वर्ग के लोगों को भूमिहीन बनाये रखने का फैसला दलित वर्ग के लोगों के हितों पर एक बड़े कुठारघात जैसा है।

निश्चित रूप से वर्तमान सपा सरकार का यह फैसला भी उन फैसलों जैसा ही है जोे बी.एस.पी. सरकार बनने पर उसे फौरन ही रद्द करके कूड़े की टोकरी में डाल दिये जाने योग्य है। वर्तमान में भी विधानमण्डल सत्र के दौरान इस विधेयक का डटकर विरोध करके इसे पारित होने से रोकने का हर संभव लोकतांत्रिक प्रयास किया जायेगा।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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