आपदा राहत घोटाले पर मुख्य सचिव की लीपापोती पर जलजला?

Posted on 20 July 2015 by admin

हरीश रावत स्‍वयं के राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसे ;आपदा राहत घोटाले पर मुख्य सचिव से क्लीन चिट Execlusive Report: present by www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) CS JOSHI- EDITOR

भाजपा नेता अभिमन्‍यु जी कहते हैं कि मुख्य मंत्री हरीश रावत वैसे तो राजनीतिक चातुर्य के धनी हैं। परन्तु जैसे कि कहावत है कि तैराक ही डूबता है, आपदा रहत घोटाले में मुख्य सचिव से क्लीन चिट लेकर हरीश रावत खुद अपने ही रचाये राजनीतिक चक्र-व्यूह में बुरी तरह फंस गये हैं। इसमें से जितना ही वे निकलने का प्रयास करेंगे उतना ही धंसते चले जायेंगे। वही भाजपा प्रवक्‍ता बलराज पासी ने आपदा घोटाले की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुख्‍य सचिव ने अधिकारियों और सरकार को बचाने के लिए लीपापोती की, भाजपा सीबीआई जांच की मांग सत्र में उठायेगी-*
वही भाजपा की आगामी रणनीति को महसूस कर उत्तराखण्ड शासन के मुख्य सचिव श्री एन. रविशंकर ने 19 जुलाई 15 को राजभवन में राज्यपाल डा0 कृष्ण कांत पाल से भेंट करके उन्हें 2013 की आपदा राहत में अनियमितताओं से सम्बंधित शिकायत की जाॅच रिपोर्ट सौंपी। सूच्य है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत शिकायतों के आधार पर सूचना आयुक्त की संस्तुतियों सम्बंधी पत्र पर मुख्यमंत्री द्वारा एक जून को मुख्य सचिव को जाॅच सौंपी गई थी। उसी जाॅच रिपोर्ट और संस्तुतियों की प्रति मुख्य सचिव द्वारा आज राज्यपाल को सौंपी गई है।
वही ज्ञात हो कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने साफ ऐलान किया था भगवान भी आ जाएं तो भी सीबीआई जांच नहीं होगीःअब ऐसे में किस नौकरशाह की हिम्मनत थी कि राज्य सरकार से सीधे सीधे टकराता- वही ऐसे समय में जब स्वयं मुख्य् सचिव को अपनी नई नौकरी के लिए मुख्यमंत्री की खुशामद करनी है, और अपर सचिव को मुख्य सचिव बनना है- ज्ञात हो कि मुख्‍य सचिव का कार्यकाल पूरा हो रहा है और उनको राज्‍य का नया सूचना आयुक्‍त बनाये जाने की तैयारी चल रही है-
आपदा रहत घोटाले का RTI में खुलासा होने पर हरीश रावत की पहली प्रतिक्रिया एक राजनेता के अनुरूप थी कि दोषियों को कड़ी सजा दिलायेंगे। परन्तु न जाने किसने कान में फूँक मार दी उन्होंने यू टर्न लिया और दोषियों को बचाने के लिये मुख्य सचिव की जाँच बैठा दी।
मुख्य सचिव से क्लीन चिट पाकर मुख्य मंत्री सहित कांग्रेस पार्टी भले ही अपना गाल बजा रही हो उसे उत्तराखंड की जनता को जवाब तो देना ही होगा कि यदि आपदा राहत में कोई घोटाला नहीं हुआ तो तीन साल गुजर जाने के बाद भी आपदा पीड़ितों का अभी तक पुनर्वास क्यों नहीं हुआ? क्या मुख्य मंत्री हरीश रावत मानते हैं कि आपदा राहत के कार्यों में राज्य की नौकरशाही ने पूर्ण कर्तव्य-निष्ठां व ईमानदारी बरती? क्या इसी राजनीतिक चातुर्य के बल पर वो उत्तराखंड की जनता के दिलों पर राज करना चाहते हैं?
शायद वो नहीं समझ पा रहे कि आपदा राहत घोटाले पर मुख्य सचिव से क्लीन चिट लेकर उन्होंने उत्तराखंड कांग्रेस के death warrant पर हस्ताक्षर कर दिये हैं। मुख्य मंत्री जी चाहे न चाहे जनता का दबाव समय के साथ बढ़ता जायेगा और देर-सबेर CBI जाँच की मांग उन्हें माननी ही होगी।
नेता प्रतिपक्ष उत्तराखण्ड विधानसभा श्री अजय भटृ ने आपदा घोटाले में सूचना आयुक्त द्वारा मामले को अत्यधिक गम्भीर व बडा घोटाला बताते हुए इसकी सी०बी०आई० जॉच कराये जाने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि सरकार ने सी०बी०आई० जॉच न कराकर मुख्य सचिव को इसकी जॉच सौंप दी और हमने उसी दिन कह दिया था कि सरकार इस जॉच में सभी को क्लीन चिट दे देगी तथा मुख्य सचिव वही जॉच करेंगे जो सरकार चाहेगी और इस घोटाले में पूरी सरकार संलिप्त है तो भला मुख्य सचिव की देख-रेख वाली कमेटी कैसे इसमें घोटाला साबित कर सकती थी।
चंद्र प्रकाश बुडाकोटी जन लोक केसरी उत्तराखंड लिखते हैं कि साल 2013 में आयी भीषण आपदा के बादराहत अभियान में जब पिछले दिनों घोटाला उजागर हुआ तो उत्तराखंड और कांग्रेस सरकार की खूब किरकिरी हुई। उस घोटाले को लेकर सरकार की राज्य ही नहीं देशभर में भी आलोचना हुई। घोटाला उजागर होने के बाद सकते में आई राज्य सरकार ने इसकी जांच मुख्य सचिव को सौंप दी।
लेकिनजांच की रिपोर्ट जब सामने आई घोटाला कहीं गायब हो गया। राज्य सरकार की जांच के अनुसार असल में घोटाला हुआ ही नहीं।जांच रिपोर्ट में सामने आया कि आपदा राहत में हुई गड़बड़ी कोई घोटाला नहीं बल्कि लिपिकीय त्रुटिहै। शुक्रवार को जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करते हुए मुख्य सचिव एन.रविशंकर ने यह जानकारी दी। मुख्य सचिव के मुताबिक जांच में भुगतान में किसी तरह की कोई अनियमितता सामने नहीं पायी गई। साथ ही उन्होंने सूचना के अधिकार कानून के तहत उजागर हुए आपदा राहत घोटालेके मामले में राज्य सरकार को क्लीनचिट दे दी।उन्होंने कहा कि इस त्रुटि की जिम्मेदारी तय करने और प्रशासनिक कार्यवाही करने का अधिकार मंडलायुक्त गढ़वाल और कुमाऊं को दिया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष से भी आग्रह किया है कि आपदा प्रबंधन के मामलों को लेकर सर्वदलीय समिति का गठन किया जाए जो स्थलीय निरीक्षण करें और सरकार को सुझाव भी दें।शुक्रवार को सचिवालय में जांच रिपोर्ट पर जानकारी देते हुए एन. रविशंकर ने कहा कि लिपिकीय त्रुटि के कारण सूचना के अधिकार में गलत सूचनाएं दी गईं। इससे सूचना आयुक्त ने यह निष्कर्ष निकाला कि आपदा राहत में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है। उन्होंने बताया कि एक जून 2015 को मुख्यमंत्री के निर्देश पर आपदा राहत घोटाले की जांच शुरू की गई थी। जांच में सहयोग के लिए संबंधित विभागों के सचिवों की समिति भी बनाई गई थी।उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर और पिथौरागढ़ के जिलाधिकारियों से तथ्यात्मक रिपोर्ट ली गई। 30 जून को मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपी दी गई। मुख्य सचिव के मुताबिक जांच रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री ने जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की की अनुमति दे दी है। जांच रिपोर्ट विभागीय वेबसाइट पर सोमवार तक अपलोड कर दी जाएगी।राज्य सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष से सर्वदलीय समिति का गठन करने का आग्रह भी किया है। सर्वदलीय समिति से यह भी अपेक्षा की गई है कि समिति2013 की आपदा प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों से विवरण हासिल करे। स्थलीय निरीक्षण करे और आपदा प्रबंधन में सुधार के लिए संस्तुति दे
: ये थेआरोप और जांच के बाद स्पष्टीकरण:——–राहत अभियान के दौरान मांस खाया गया। आपदा के समय पिकनिक मनाई गई।*.आधा किलो दूध की कीमत 194 रुपये बताई गई*.मोटरसाइकिल में डीजल भरवाने का बिल पाया गया*.हेलीकाप्टर से फंसे यात्रियों कोनिकालने का बिल 98 लाख*.रुद्रप्रयाग में अधिकारियों के रहने और खाने पर 25.19 लाख का भुगतान*.पर्यटक आवास गृह कुमाऊं मंडल के लाखों रुपये के बिल मानवता को शर्मसार/कलंकित करने वाले हैं।दरअसल आरटीआई के तहत देहरादून निवासी भूपेंद्र कुमार ने प्रशासनसे आपदा राहत का पूर्ण विवरण मांगाथा। जब यह जानकारी पूरी नहीं मिली तो मामला राज्य सूचना आयुक्त तक पहुंचा। राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने आपदा राहत के मामलेमें आपदा प्रबंधन पर तल्ख टिप्पणी की। आयुक्त ने मामले की सुनवाई करते हुए यह साफ कहा कि आपदा राहत कार्य में मिली जानकारी किसी बड़े घोटाले की तरफ इशारा कर रही है।आयुक्त ने सरकार से सीबीआई जांच कराने को कहा था। इस पर विपक्ष ने भी खूब हो-हल्ला मचाया तो मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्य सचिव को आरटीआई में उठे बिंदुओं परजांच करने के निर्देश दिए।ये है आरोपों पर बिंदुवार सफाई*.आपदा के अवसर पर मांसाहारी पदार्थों का सेवन किया गया। राहत दल में सेना के लोग भी शामिल थे। सेना में मांसाहार की परंपरा है। विषम परिस्थितियों में मांसाहार को अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए। इसको पिकनिक मनाना परिभाषित करनाउचित नहीं है।*.आधा किलो दूध तरल नहीं बल्कि पाउडर दूध था। आरटीआई में सूचना देते समय यह स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाया गया। तहसील कपकोट का यह मामला पिंडारी ट्रैक में फंसे 47लोगों को निकालने का है। राजस्व निरीक्षक ने 25 किलोमीटर पैदल चलकर इस दूध को पहुंचाया, ऐसे मेंयह छोटी सी गलती संभव है।*.वाहन UA 07A 0881 में 25 लीटर डीजल भरवाना दर्शाया गया जो कि एकमोटरसाइकिल का नंबर है। वास्तव में यह वाहन UA 07TA 0881 है जो एक टैक्सी का नंबर है।*.बचाव कार्य में जरूरत को देखते हुए यात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिए हेलीकॉप्टर की ट्रिप और यात्रियों की संख्या तो है पर यात्रियों के नाम नहीं है। जिलाधिकारियों ने बताया कि आपदा बचाव कार्य में इतना समय नहीं था कि यात्रियों के नाम पते भी लिखे जाते। हालांकि इस खर्च में अनियमितता नहीं पाई गई।*.एक मामला कैलास रेंसीडेंसी गुप्तकाशी का है। वास्तविक रूप से भुगतान 4000 रुपये प्रति कमराप्रति दिन का हुआ। जरूरी वस्तुओं की कमी होने पर खाने-पीने के बिलों को अनुचित बताया जाना सही नहीं होगा। एक लाख रुपये का भुगतान वVायुसेना के अधिकारियों के हिसाबसे आपदा घोटाला उजागर होते ही जाँच की बात करते समय जिसका अंदेशा था वही हुवा जाँच रिपोर्ट के मुताबिक घोटाला हुवा ही नहीं यह लिपिकीय त्रुटि थी

regards
CS JOSHI
Journalist
Ddun
mob. 9412932030
mail; csjoshi_editor@yahoo.in

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