कर्मचारियों के मामले लम्बित होने से भड़की एकीकृत राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषदआन्दोलन को बाध्य न करें सरकार
लखनऊ,8 अप्रैल। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद एकीकृत के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी ने कहा कि नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग की मनमानी और कर्मचारियों की प्रति अनदेखी के चलते निर्णित मामलों का भी निस्तारण नही हो पा रहा हैं। उन्होंन मांग की है कि इन दोनों विभागों को अलग अलग कर दिया जाए ताकि समस्याओं का समय से निस्तारण हो सके। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नही किया गया तो एकीकृत परिषद को आन्दोलन पर विचार करना पड़ेगा। उनहोंने बताया कि लगभग 17 माह पूर्व कर्मचारियों ने मिलकर एक वृहद महाहड़ताल की थी। अधिकारी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं, छोटी-छोटी समस्या का समाधान नहीं, सहमतियों के बाद आदेष नहीं। अधिकारी द्वारा मुख्य सचिव के कड़े आदेषों को न मानने का शौक बढ़ता जा रहा है। प्रदेष के कुछ षीर्श अधिकारी जैसे दीपक सिंघल प्रमुख सचिव सिंचाई अपने को सरकार का खास बताकर कोई भी नीतिगत प्रस्ताव/सुझाव मानने को तैयार नहीं है। इसकी परिषद द्वारा षिकायत भी मुख्य सचिव से की गई, परन्तु वे मुख्य सचिव केे वष में भी नहीं दिखते है।
परिषद के कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत में श्री तिवारी ने कहा कि शासन में एक विभाग ’’नियुक्ति एवं कार्मिक’’ है इसका एक पार्ट नियुक्ति काफी ताकतवर है तत्काल निर्णय करके आदेष जारी करने वाला है। इसी के तहत जिलाधिकारियों सहित प्रदेष के बड़े प्रषासनिक अधिकारियों के स्थानान्तरण मात्र 2-3 घण्टों में हो जाते है।वही दूसरे पार्ट में ’’कार्मिक’’ की यदि समीक्षा की जाये तो संगठनों से पूरे प्रदेष में बैठके न होना, लिखित समझौतों का पालन न होना, कार्यवष्त्तियों की समीक्षा कार्यवाही न होना, आदि समस्या वर्षों तक लम्बित रहती है। यही कारण है कि आलोक रंजन की अध्यक्षता में गठित समिति दिसम्बर 2013 के 15 माह व्यतीत हो जाने तथा उच्च न्यायालय के आदेषों के बाद भी छोटी छोटी समस्याओं का समाधान न हो सका।
उन्होंने कहा कि परिषद की मांग है कि ’’कार्मिक’’ विभाग को कर्मचारियों/अधिकारियों से और अधिक सुदष्ढ़ करते हुये ’’नियुक्ति एवं कार्मिक’’ विभाग से अलग करके स्वयं के अस्तित्व का विभाग बनाया जाये ताकि उसमें समय देते हुये सभी अधिकारियों/कर्मचारियों की समस्याओं की तत्काल समीक्षा करते हुये आदेष जारी कर सके। इस सम्बन्ध में मुख्य सचिव द्वारा भी सहमति व्यक्त की गयी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बतमाया कि कुछ न्यायांेचित मांगें कार्मिक विभाग ,उ.प्र. शासन के द्वारा लटकायें रहने की प्रवृत्ति के कारण आदेष जारी नहीं किये जा रहें है, जैसे कि एसीपी के प्रत्येक संवर्ग हेतु अगला ग्रेड पे इग्नोर किया जाये।सभी विभागों की लम्बित वेतन विसंगतियाॅ 7वें आयोग के आने के पूर्व दूर की जाये।केन्द्र के समान राज्य कर्मचारियों को भी समस्त भत्ते दिये जायें।
एस.जी.पी.जी.आई. में प्रदेष के समस्त कर्मचारियों की ’कैषलेस’ चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करायी जाये।प्रदेष के विभिन्न विभागों में 1991 के पूर्व के वर्कचार्ज/दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का विनियमितीकरण अभी तक नहीं हुआ है। शासनादेष के अनुरूप इनका विनियमितीकरण सुनिष्चित किया जाये।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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