काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से काशी विद्यापीठ तक छात्रों-प्रोफेसरों-नागरिकों की पदयात्रा
नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा अपने विवादास्पद भू-अधिग्रहण अध्यादेश, 2014, में नौ संशोधनों के तथा 13 ऐसे कानूनों को भू-अधिग्रहण बिल के अंतर्गत लाना जिनके तहत भू-अधिग्रहण हो सकता है लेकिन वे पहले बाहर रखे गए थे के बावजूद इस बिल का मूल चरित्र किसान विरोधी ही बना हुआ है। इसलिए हम तमाम जन संगठन, राजनीतिक दल व छात्र, प्रोफेसर व नागरिक इसका विरोध करते हैं और मांग करते हैं निम्न कारणों से इसे अस्वीकृत किया जाए।
ऽ भले ही सरकार अपने लिए ही भूअर्जन करे किंतु 70 प्रतिशत किसानों की सहमति के प्रावधान को खत्म करना गलत है।
ऽ बिना सामाजिक प्रभाव आंकलन के भू-अधिग्रहण नहीं होना चाहिए।
ऽ स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा रहा है कि सिंचित बहुफसली जमीन अधिग्रहित नहीं की जाएगी, जो खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी है।
ऽ प्रत्येक विस्थापित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की बात पहले भी रही है किंतु भारत में अभी तक किस परियोजना में ऐसा हुआ है? जो बात कही नहीं जाती वह है कि योग्यता होने पर हीे नौकरी मिलेगी।
ऽ पांच साल तक भूमि का कोई उपयोग न होने पर वह किसान को लौटा दी जाएगी को संशोधन में शामिल नहीं किया गया है।
ऽ औद्योगिक गलियारे के नाम सड़क या रेल लाइन के दोनों तरफ 1 कि.मी. भूमि जो कितना भी लम्बा हो सकता है ली जा सकती है।
ऽ सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश कि मुआवजा न्यायालय में या बैंक खाते में दिया जाए अब अनिवार्य नहीं है।
ऽ यदि कोई अधिकारी कुछ गलत करता है तो उसके विभाग की अनुमति के बगैर उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही हो सके इस प्रावधान को भी शामिल नहीं किया गया है।
यानी सरकार ने अधिनियम में सुधार के नाम पर इसे और जन विरोधी बना दिया है। यदि सरकार को जमीन चाहिए ही तो पहले से अधिग्रहित जमीन, विशेष आर्थिक क्षेत्र के नाम पर अधिग्रहित जमीन, बंद पड़े उद्योगों की जमीन, रेल, सेना व अधिकारियों के अंग्रेजों के जमाने में बने बंगलों की अतिरिक्त जमीनें पहले ली जाएं।
किसान विरोधी भू-अधिग्रहण बिल को वापस करवाने की मांग को लेकर आचार्य नरेन्द्र देव, जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय व काशी विद्यापीठ दोनों के ही कुलपति रहे, की स्मृति में एक पदयात्रा का आयोजन किया गया।
इस यात्रा में गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति, साझा संस्कृति मंच, जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, लोक समिति, प्राकृतिक कृषि अभियान, इंडियन पीपुल्स फ्रंट, भगत सिंह छात्र मोर्चा, समाजवादी जन परिषद, सोशलिस्ट छात्र सभा, सोशलिस्ट किसान सभा व सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के सदस्यों और आम छात्र, प्रोफेसरों व नागरिकों ने भाग लिया। उन्नाव जिले से सोशलिस्ट किसान सभा के प्रदेष संयोजक अनिल मिश्र विषेष रूप से इस यात्रा में भाग लेने आए थे।
अनिल मिश्र ने कहा कि किसान की जिदंगी बद से बदत्तर होती जा रही है। उसकी जमीन को छीनना उसकी आजादी के साथ खिलवाड़ है। वर्तमान सरकार अंग्रजों के जुल्म को भी पीछे छोड़ना चाहती है। किसान तो पहले से ही पीडि़त है। उसको अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलता, खाद, पानी मिलने में दिक्क्त आती है, प्रकृति के प्रकोप का शिकार बनता है और कर्ज न चुका पाने पर आत्महत्या भी कर लेता है। जिस विकास में किसान की भागीदारी होनी चाहिए वह उसकी कीमत पर क्यों किया जाना जरूरी है?
काषी विद्यापीठ के प्रोफेसरों राम प्रकाष द्विवेदी, अनिल उपाध्याय, संजय, रमन पंत व काषी हिन्दू विष्वविद्यालय से डाॅ. संदीप पाण्डेय ने इस आयोजन में भाग लिया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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