प्रो0 महमूद इलाही की विशेषताओं और सेवाओं वर्णन करने के लिए कई गोष्ठियों का आवश्यकता है। वह अपने विचार एवं रचनात्मक क्षमता से ऐसे यथार्त को प्रकाशमय करते थे, जहाँ इन्सान का चिन्तन बढ़ाता है और आज के इस दौर में जहाँ की जीने की तम्मना सहमी सिसकती, बिलकती है उस चिता के समान दहकते हुए अंगारों में खड़ी है वह चिन्तन रूपी प्रकाश पकट करते थे। वह आम जिन्दगी के यर्थात को उजागर करना चाहते थे, जो आम तौर से मनुष्य के मस्तिष्क में नहीं आती है।
उपरोक्त विचार प्रो0 फजले इमाम ने ने आज यहां आयोजित प्रो0 महमूद इलाही की पहली बरसी के अवसर पर एक साहित्यिक गोष्ठी में व्यक्त कर रहे थे। इस गोष्ठी का आयोजन डा0 सलीम अहमद ने हरदोई रोड, अलमासबाग स्थित अपने आवास पर कर किया। प्रो0 फजले इमाम ने कहा कि गुरू तो बहुत देखे है, लेकिन एक उस्ताद के अन्दर जो खूबी और विशेषता होनी चाहिए, जो इन्सान व मानवीय चिन्तन होना चाहिए वह उस्ताद मोहतरम प्रो0 इलाही के अलावा किसी और में नहीं देखा। उप महादीप के तमाम शिक्षण संस्थाओं में उनके शिष्यों की मौजूदगी इस बात की सुबूत है कि वह किस स्तर के उस्ताद और बुद्विजीवी थे। उन्होंने कहा कि प्रो0 महमूद इलाही को केवल एक मोहक्कि कहा जाता है, लेकिन जो आलोचक चिन्तन उन के अनदर था। वह कम देखने में आता है। यही वजह है कि अनारकली पर लिख गया जैसा लेख प्रो.महमूद इलाही के क़लम से निकला निकला वैसा लेख पूरे उप महादीप में अब तक किसी और के क़लम से नही निकला। अलहलाल का जो मुक़दमा उन्होने ने लिख दिया कि अगर आज मौलाना अबुलकलाम आज़ाद जीवित होते तो उस पर फिदा हो जाते। उन्होने कहा कि सच तो यह है कि मह़मूद इलाही एक शख्स नही एक चिन्तन का नाम है।
इससे पूर्व गोष्ठी का प्रारम्भ़ क़ारी निसार अहमद मीनाई ने किया। मुख्य अतिथि के तौर पर माधव राजकीय डिग्री काॅलेज, उज्जैन से डाॅ0 ग़ुलाम हुसैन और मऊ से आये विशिष्ठ अतिथि डाॅ0 शकील अहमद उपस्थित थे, जबकि उनके शिष्य मुख्यमंत्री मीडिया प्रभारी डाॅ0 वज़ाह़त हुसैन रिज़वी और डाॅ0 अकबर अली ने गोष्ठी को ज़ीनत बख्शी। गोष्ठी का संचालन ़ डाॅ0 हारून रशीद ने किया। डाॅ0 ज़ेबा महमूद ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संवेदनशील ढ़ंग ़ में प्रो0 महमूद इलाही के व्यक्तित्व और कृेतत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रो इलाही का जीवन सदैव अध्ययन एवं अध्यापन में गुजरा, लेखनीय कार्यो का क्रियान्वयन ही उनका उद्देश्य था।1958 में उनकी नियुक्ति गोरखपुर विश्वविधालय में प्रवक्ता के रूप में हुई। 1972 में प्रोफेसर नियुक्त हुए। 32 वर्ष अध्यापन एवं लेखन के सेवा के उपरान्त 1990 में सेवानिवृत हुए। गोरखपुर विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति भी रहे और तीन कार्यकार्ल उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी के चेयरमैन भी रहे। उनकी गवेशणात्मक क्षमता ने शोध़ के स्तर पर उन्हे सदैव क़ायम रखा। उन्होंने ने कहा कि प्रो0 मह़मूद इलाही एक ऐसे बुद्विजीवि थे कि जिनकी दृष्टि वर्तमान और भविष्य के क्षितिज पर सदैव रहती थी। कहना चाहिए कि वातस्व में वह एक दूरस्थ दृष्टि के मालिक थे, जिसका उदाहरण उनकी ेलेखनीय है जो उनके क़लम से निकल कर काग़जों पर रौशन है। डाॅ0 गुलाम हुसैन ने इस अवसर पर कहा कि मह़मूद इलाही ने अपने ेशिष्यों और अपने पुत्रों में कोई फर्क नही रखा। जिस तरह अपने बेटे और बेटियों से प्रेम और स्नेह करते थे उसी प्रकार अपने शिष्यों से भी । डाॅ0 शकील ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इलाही साहब की शिक्षा और दीक्षा इस्लामी वातावरण में हुई थी और ये धार्मिक विचार और इस्लामी बन्धुत्व उनके अन्दर सदैव नीहित रहा। आम तौर पर खिक्षकगण में शिष्यों को संतुष्ट करने का समय नहीं मिलता, पर वह सदैव अपने शिष्यों को संतुष्ट करने के लिए तत्पर रहते थे। उनकी उर्दू दोस्ती के आधार पर ही गोरखपुर में उर्दू विभाग की स्थापना हुई और उनके ही प्रयास रहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के 27 महाविद्यालयों में उर्दू विभाग की स्थापना हुई।
मासिक पत्रिया नया दौर के एडिटर डाॅ0 वजाहत हुसैन रिज़वी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रो0 महमूद इलाही एक अच्छे उस्ताद ही नहीं, बल्कि कई खूबियों के मालिक थे। उन्होंने कहा कि उर्दू विषय से एम0ए0 इलाही साहब के कहने पर ही मैंने किया। साथ ही, यह भी प्रण किया कि उर्दू के हवाले से ही नौकरी तलाश करूंगा। आदरणीय इलाही साहब के मशवरे पर ही डाॅ0 अफगानुल्लाह के प्रवेक्षण में उर्दू नाॅवलेट पर अपना शोध ग्रन्थ तैयार किया। वह जिस प्रकार अपने शिष्यों का नेतृत्व करते थे, वह स्नेह और प्रेम आज के शिक्षकगण में कम ही नजर आता है। सम्पादक नया दौर ने इस मौके पर यह घोषणा की कि पत्रिका नया दौर का मार्च अंक प्रो0 महमूद इलाही पर ही केन्द्रित होगा। उन्होंने ये भी कहा कि इस विशेषांक में अप्रकाशित लेखों का ही समावेश किया जाएगा। डाॅ0 अकबर अली ने अपने ख्यालात का इजहार करते हुए महमूद इलाही को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर डाॅ0 शकील अहमद के खाकों पर आधारित पुस्तक ‘सिमटता सायबान’ का विमोचन भी किया गया। डाॅ0 मखमूर काकोरवी, शाहिद कमाल, सलीम ताबिश और मोईद रहबर ने अपनी कविताओं के द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस समारोह में प्रो0 महमूद इलाही की धर्मपत्नी श्रीमती वरकतुन्निशा के अतिरिक्त डाॅ0 कुदशिया बानो, डाॅ0 बुशरा बानो, डाॅ0 अज़रा बानो, मशहूद इलाही, डाॅ0 अहमद अब्बास रूदौलवी के साथ बड़ी संख्या में उर्दू प्रेमी मौजूद थे। समारोह के संयोजक डाॅ0 सलीम अहमद ने मेहमानों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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